Thursday

31-07-2025 Vol 19

परदे से बाहर आइए

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ये आशंका तार्किक है कि ट्रंप की शर्तों पर टैरिफ समझौता हुआ, तो सरकारी खरीद के नियम, कृषि सब्सिडी, पेंटेट कानून, अनियंत्रित डेटा प्रवाह आदि जैसे मुद्दे अगला निशान बनेंगे। पेंटेट मुद्दे पर तो अमेरिका ने अभी ही तलवार चमका दी है।

कांग्रेस ने भारत सरकार से डॉनल्ड ट्रंप के इस बयान पर सफाई मांगी है कि उन्होंने भारत के ऊंचे आयात शुल्क को “बेपर्द” किया, तो भारत ‘टैरिफ में भारी कटौती’ करने जा रहा है। नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक- ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनशिएटिव (जीटीआरआई) का आकलन ठोस है कि अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता पूरी तरह से ट्रंप की मांगों पर हो रही है। यानी जो भी मांग मानी जाए, वह अमेरिका के फायदे में होगी। इसलिए जीटीआरआई की ये मांग गौरतलब है कि भारत को तुरंत इस वार्ता से अलग हो जाना चाहिए। खास कर यह याद करते हुए कि वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति समझौतों के आदर के लिए नहीं जाने जाते।

मसलन, अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने कनाडा और मेक्सिको को नाफ्टा (नॉर्थ अमेरिका फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) को नए सिरे से करने के लिए मजबूर किया था। अब वे खुद उनके प्रथम प्रशासन के दस्तखत से हुए करार को नहीं मान रहे हैं। तो जीटीआरआई की आशंका तार्किक है कि केंद्र ने ट्रंप की मांगों के मुताबिक शुल्क समझौता किया, तो अमेरिका के लिए सरकारी खरीद के नियमों, कृषि सब्सिडी, पेंटेट कानून, अनियंत्रित डेटा प्रवाह आदि जैसे मुद्दों पर भारत को घेरने का रास्ता खुल जाएगा। पेंटेट मुद्दे पर तो ट्रंप प्रशासन ने अभी ही तलवार चमका दी है।

एक नई रिपोर्ट में उसने इल्जाम लगाया है कि भारत बौद्धिक संपदा अधिकारों को संरक्षण देने में नाकाम रहा है। खासकर ऐसा औषधि, मेडिकल उपकरण, डिजिटल सेवाओं और सूचना एवं संचार तकनीक (आईसीटी) के क्षेत्र में हुआ है। उधर अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक कह चुके हैं कि व्यापार वार्ता उत्पाद-दर- उत्पाद नहीं हो रही है, बल्कि अमेरिका ने व्यापक रूप से सभी वस्तुओं पर टैरिफ घटाने की मांग रखी है। इनमें कृषि पैदावार भी हैं, जिन्हें डब्लूटीओ के तहत विशेष संरक्षण मिला था। कृषि क्षेत्र में खुले व्यापार का मतलब भारत के किसानों की मुसीबत का आयात करना होगा। स्पष्टतः सवाल गंभीर हैं। स्थिति चिंताजनक है। ऐसे में केंद्र का अकेले चलना और वार्ता प्रक्रिया को परदे में रखना सही नीति नहीं है। उसे देश को भरोसे में लेना चाहिए।

NI Editorial

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