जीडीपी की अवधारणा सामने आने का खास संदर्भ था। बाद में आईएमएफ- विश्व बैंक निर्देशित आर्थिक नीतियों में विकास संबंधी बहस को संकुचित बनाए रखने के लिए इस पैमाने को प्रचार दिया गया। जबकि विकास को मापने के बेहतर पैमाने मौजूद हैं।
आईएमएफ ने बीते अप्रैल में कहा कि इस वर्ष भारत जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। आईएमएफ के अनुमान के मुताबिक तब भारतीय अर्थव्यवस्था 3.91 ट्रिलियन डॉलर की थी, जिसके इसी वर्ष 4.19 ट्रिलियन तक पहुंच जाने की संभावना है। मगर शायद समय में छलांग लगाते हुए नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम ने पिछले दिनों एलान कर दिया कि भारत जापान से आगे निकल गया है।
जबकि अब नीति आयोग के ही सदस्य अरविंद विरमानी ने कहा है- “भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। मुझे यकीन है कि ऐसा 2025 में हो जाएगा। मगर ये कहने के लिए हमें साल के सभी 12 महीनों के आंकड़ों की जरूरत होगी।”
भारत की जीडीपी और विकास की बहस
बहरहाल, भारत इस मुकाम पर कब पहुंचता है, यह एक तकनीकी और समय की बात भर है। देर-सबेर ऐसा होगा। अब चूंकि बात इस ध्रुवीकृत देश में अपने- अपने दायरों में सिमटे समूहों के बीच हो रही है, तो ऐसी हर बात पर मोदी विरोधी खेमा हमेशा सवाल लेकर आ जाता है कि आखिर भारत प्रति व्यक्ति जीडीपी में कहां है? उसमें तो हम 144वें नंबर पर हैं।
उधर सुब्रह्मण्यम के दावे के बाद कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने भारत की इस उपलब्धि पर तो खुशी जताई, लेकिन यह जोड़ दिया कि यूपीए के शासनकाल में जीडीपी बढ़ने की दर मोदी सरकार के दौर से अधिक थी। जबकि ये तमाम दलीलें एक संकुचित दायरे में सिमटी हुई हैँ।
इन सबमें समानता यह है कि ये जीडीपी को विकास एवं आर्थिक वृद्धि का अंतिम पैमाना मान कर चलती हैं। इसी पैमाने पर देश या विभिन्न सरकारों के विकास संबंधी रिकॉर्ड की व्याख्या की जाती है। जबकि जीडीपी की अवधारणा सामने आने का एक खास संदर्भ था। बाद में आईएमएफ- विश्व बैंक निर्देशित आर्थिक नीतियों में विकास संबंधी बहस को संकुचित बनाए रखने के लिए इस पैमाने को प्रचार दिया गया।
बेशक, जीडीपी आर्थिक गतिविधियों को मापने का एक पैमाना है, मगर विकास को मापने के अन्य बेहतर पैमाने मौजूद हैं। बहस के दायरे में उन्हें अधिक तरजीह देने की जरूरत है।
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