Wednesday

30-04-2025 Vol 19

चुनावी मुद्रा में मचलने लगा मध्य प्रदेश

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भोपाल । अभी जबकि 4 महीने बाद प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होंगे तब मध्य प्रदेश का रग-रग चुनावी मुद्रा में पहुंच गया है। इस बार प्रदेश के चुनाव अभूतपूर्व परिस्थितियों के चलते असमंजस और आशंकाओं के बीच होने जा रहे हैं। जिसमें कोई भी भविष्य के प्रति निश्चित नहीं है सभी को किसी न किसी बात का खटका सताये जा रहा है सुखी केवल जनता का दास हो सकता है।

दरअसल, मध्यप्रदेश विधानसभा के जब चुनाव होंगे तब दोनों ही दलों को अपने सरकार के समय के और विपक्ष के समय के कार्यकाल का ब्यौरा जनता के सामने रखना पड़ेगा। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद लगभग डेढ़ साल कांग्रेस सत्ता में रही और उसके बाद विपक्ष की भूमिका में चुनावी तैयारी कर रही है। वहीं डेढ़ साल भाजपा विपक्ष में रही और वर्तमान में सत्ता में रहते हुए चुनावी परीक्षा देने जा रही है। वैसे तो डेढ़ साल का कांग्रेस का कार्यकाल अलग कर दिया जाए तो भाजपा को लगभग 18 साल से सरकार में है। मध्य प्रदेश के साथ-साथ पांच राज्यों के विधानसभा  चुनाव होने जा रहे हैं और इन राज्यों के चुनाव परिणाम 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव को भी प्रभावित करेंगे। इस कारण राष्ट्रीय नेतृत्व भी इन चुनाव पर पूरा फोकस बनाए हुए हैं।

बहरहाल, प्रदेश में जिस तरह से छोटे-छोटे मुद्दों पर बड़ी-बड़ी राजनीति होने लगी है। उससे आम जनता भी समझ गई है कि अब उसके दरवाजे खटखटाने वाले आने वाले हैं। अब किसी भी प्रकार का आयोजन राजनीति से सराबोर दिखाई देने लगा है। एक तरफ जहां राजनीतिक दल अपनी जमावट कर रहे हैं। वहीं व्यक्तिगत स्तर पर भी चौसर बिछाई जाने लगी है। जिन्हें हर हाल में जीतना है वे अपने अहम का त्याग कर विनम्र हो चलें और जांचे परखे संबंधों को सुधारने लगे हैं। जिस तरह से भाजपा और कांग्रेस प्रदेश में सरकार बनाने के लिए “तू डाल में पात-पात” की तर्ज पर तैयारी कर रहे हैं उसमें अभी दावेदारों की अग्नि परीक्षा टिकट को लेकर है क्योंकि केवल और केवल जीतने वालों को टिकट देने की नीचे से लेकर ऊपर तक सहमति बन गई है और विभिन्न स्तरों पर सर्वे हो रहे हैं।

भाजपा और कांग्रेस के साथ-साथ तीसरे मोर्चे के दल भी सक्रिय हो गए  हैं। ग्वालियर में हाल ही में आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से शक्ति प्रदर्शन किया है और नगरीय निकाय चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। उससे भाजपा और कांग्रेस के वे असंतुष्ट नेता जिन्हें अपनी-अपनी पार्टी में टिकट नहीं मिलेगा वह आम आदमी पार्टी से भी चुनाव लड़ सकते हैं। इसके अलावा चंबल बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में खासकर उत्तर प्रदेश से सटे इलाकों में बसपा और सपा भी जोर अजमाइश कर रही है।

कुल मिलाकर प्रदेश चुनावी मुद्रा में पहुंच चुका है और राजनीति की चौसर कुछ इस तरह बिछाई जा रही है जिससे कि चुनावी नैया पर हो सके देश का हृदय प्रदेश कहा जाने वाला मध्य प्रदेश राजनीतिक दलों के लिए दिल जीतने जैसा चुनाव माना जा रहा है यही कारण है की सौगातों की झड़ी लग रही है। आश्वासनों का अंबार खड़ा किया जा रहा है फिर भी मचलते लोगों को पूरी तरह मनाने के जतन अभी अधूरे लग रहे हैं क्योंकि कोई भी दल निश्चित नहीं है और कोई भी दावेदार अभयता को नहीं पा रहा है। बदलते राजनीतिक पैटर्न और परिस्थितियों ने चुनावी उलझन कुछ ज्यादा ही बढ़ा दी है। ऐसे में राजनैतिक चतुराई की कसौटी भी यह चुनाव बन गया है।

देवदत्त दुबे

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