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23-07-2025 Vol 19

आधार का अब क्या होगा?

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देश के 99.9 फीसदी लोगों को मिले यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर और आधार कार्ड का अब क्या होगा? यह लाख टके का सवाल है, जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। वैसे तो यह सवाल बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण होने के बाद से ही पूछा जा रहा है लेकिन अब ज्यादा प्रासंगिक हो गया है क्योंकि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर इसकी उपयोगिता को शून्य कर दिया है। बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण के मसले पर 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है। उससे पहले पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 21 जुलाई तक हलफनामा देने को कहा था।

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह सलाह दी थी कि आयोग को मतदाता सूची के सत्यापन में आधार, मनरेगा कार्ड और राशन कार्ड को स्वीकार करने पर विचार करना चाहिए। चुनाव आयोग ने 21 जुलाई को हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा कि किसी को भी मतदाता बनाने के लिए जरूरी है कि चुनाव आयोग उसकी नागरिकता का सत्यापन करे, जो आधार के जरिए नहीं हो सकता है। चुनाव आयोग ने लिख करके बता दिया कि आधार की कोई उपयोगिता नहीं है।

ध्यान रहे केंद्र सरकार ने आधार कार्ड बनवाने के लिए राज्य की सारी ताकत लगाई थी। सरकार ने इतना दबाव बनाया था कि नागरिक समूहों को राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने सितंबर 2018 में आम लोगों को राहत देते हुए कहा कि सरकार किसी भी सेवा के लिए आधार अनिवार्य नहीं कर सकती है। इसके बावजूद सरकार नहीं मानी और उसने नागरिकों पर दबाव बनाए रखा। सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद भी नागरिकों को कई किस्म की सेवाओं के लिए आधार की अनिवार्यता बनी रही। भले सेवाएं रोकी नहीं गईं, लेकिन यह दबाव बनाए रखा गया कि नागरिक आधार बनवाएं और उसे अपने बैंक खातों से जुड़वाएं, आईटी रिटर्न के अपने खाते से जुड़वाएं, गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन और जमीन खरीद के दस्तावेजों में आधार नंबर लिखवाएं, कर्मचारी प्रॉविडेंट फंड के साथ जुड़वाएं और यहां तक कि वोटर आईडी के साथ भी आधार जुड़वाने का दबाव बनाए रखा गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद चुनाव आयोग ने करीब 66 करोड़ मतदाताओं का आधार हासिल कर लिया।

सोचें, चुनाव आयोग ने देश के मतदाताओं की गर्दन पर तलवार रख दी कि उन्हें हर हाल में अपने यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर को अपने इपिक नंबर के साथ यानी आधार को वोटर आईडी के साथ लिंक करना है। आयोग के निर्देश में बहुत साफ कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति आधार को वोटर आईडी के साथ लिंक नहीं करता है तो उसे इसका वाजिब कारण बताना होगा और चुनाव आयोग को संतुष्ट करना होगा। जाहिर चुनाव आयोग किसी भी कारण से संतुष्ट नहीं हो सकता था। जिस चुनाव आयोग ने सारी आपत्तियों को खारिज करके आधार को वोटर आईडी से लिंक कराने का अभियान चलाया वह अब कह रहा है कि आधार किसी काम नहीं है! आधार को वोटर आई कार्ड से जोड़ने का विरोध करने वाले लोग सबसे बड़ा कारण बता रहे थे कि उनकी निजता का हनन होगा क्योंकि आधार के साथ बायोमीट्रिक डिटेल्स यानी नागरिकों की उंगलियों के निशाना और आंखों की रेटिना का स्कैन होता है। लेकिन चुनाव आयोग का कहना था कि उसके पास डेटा प्रोटेक्शन का बेहतरीन सिस्टम है और किसी का डेटा लीक नहीं होगा।

कुछ समय पहले तक चुनाव आयोग हर हाल में आधार और मतदाता सूची को लिंक कराने का अभियान चला रहा था उसने अब कह दिया है कि आधार से मतदाता सूची नहीं बनाई जाएगी। य़ानी अगर किसी के पास पहचान के लिए एकमात्र दस्तावेज आधार है वह मतदाता नहीं बन पाएगा। चुनाव आयोग ने इसका कारण बताते हुए कहा कि आधार से न तो आवास का पता प्रमाणित होता है, न जन्म की तारीख प्रमाणित होती है और न उससे नागरिकता प्रमाणित होती है। इसका मतलब है कि आधार से सिर्फ यह प्रमाणित होता है कि आप इंसान हैं, एलियन या पशु नहीं हैं। वैसे भी आधार बनाने की प्रक्रिया बहुत ढीली ढाली थी। विधायकों और पार्षदों के लिख कर दे देने से आधार बन जाता था। बिहार के कई जिलों में आबादी से ज्यादा आधार बना हुआ है। ऐसा नहीं है कि सरकार और चुनाव आयोग को यह पता नहीं है। फिर भी कुछ दिन पहले तक आधार को हर पहचान और हर सेवा के लिए जरूरी बताया जा रहा था और अब उसकी उपयोगिता शून्य कर दी गई है।

सभी नागरिकों के बैंक खातों को आधार से लिंक किया गया है और सरकार की ओर से डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर यानी डीबीटी के जरिए नागरिकों को मिलने वाली हर योजना का पैसा आधार से लिंक्ड खातों में ट्रांसफर होता है। एक अनुमान के मुताबिक केंद्र और राज्यों का मिला कर कुल 44 लाख करोड़ रुपए की राशि या सेवा देश के नागरिकों को आधार से जुड़े खातों के जरिए दी जाती है। प्रधानमंत्री सौ बार दावा कर चुके हैं कि जनधन खाता, आधार और मोबाइल यानी जैम के जरिए लाखों करोड़ रुपए की बचत की गई है। ये सारे दावे आधार का महत्व बताने के लिए किए गए। आधार को जीवन का आधार बना दिया गया। हजारों करोड़ रुपए इसके ऊपर खर्च किए गए। देश के नागरिकों को करोड़ों घंटे इसे बनवाने में लगे। और अब स्थिति यह है कि इससे न तो किसी नागरिक का पता प्रमाणित होगा, न जन्मतिथि प्रमाणित होगी और न उसकी नागरिकता प्रमाणित होगी।

तभी अब सवाल है कि इसका क्या होगा?

क्या यह पूरी तरह से बेकार दस्तावेज हो गया? क्या अब पासपोर्ट बनवाने के लिए आधार नहीं मान्य होगा? बैंक खाते खुलवाने या फोन का कनेक्शन लेने के लिए इसे नहीं स्वीकार किया जाएगा? बैंक खातों या आईटी रिटर्न के साथ आधार को लिंक करना अब जरूरी नहीं रह जाएगा? आयुष्मान भारत से लेकर किसान सम्मान निधि तक क्या जितनी योजनाओं का लाभ लोग ले रहे हैं उनके लिए आधार की बजाय किसी दूसरे दस्तावेज की जरुरत होगी और उसके लिए क्या लोगों को नए सिरे से अपने खातों की केवाईसी दूसरे दस्तावेजों के जरिए करानी होगी? अगर ऐसा होता है तो यह आम लोगों के लिए एक बड़ी मुश्किल वाली बात होगी क्योंकि देश के ज्यादातर लोगों के पास आधार के जरिए बने दस्तावेजों के अलावा दूसरे दस्तावेज नहीं हैं। मैट्रिक पास होने का प्रमाणपत्र या जन्म का और आवास का प्रमाणपत्र या सरकारी नौकरी का प्रमाणपत्र कितने लोग दे पाएंगे?

अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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