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राष्ट्रीय सुरक्षा पर रचनात्मक चर्चा जरुरी

आवश्यक है कि भारत की सभी पार्टियां एक स्वर में आतंकवाद की निंदा करें और उसके हर स्वरूप से लड़ने में भारत की सरकार के हाथ मजबूत करें। यह ध्यान रखने की जरुरत है कि इस मामले में दुनिया के देश भारत के साथ खड़े हैं। हाल ही में ब्रिटेन के दौरे पर गए   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर को आतंकवाद के मसले पर भारत का समर्थन करने के लिए धन्यवाद दिया।

संसद के मानसून सत्र के दूसरे हफ्ते के पहले दिन यानी सोमवार, 28 जुलाई को लोकसभा में और उसके अगले दिन राज्यसभा में पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा होगी। जम्मू कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए भीषण आतंकवादी हमले और धर्म पूछ कर 26 निर्दोष नागरिकों की हत्या करने की नृशंस घटना के तीन महीने बाद संसद में इस विषय पर चर्चा होगी। साथ ही आतंकवादी संगठनों का ढांचा नष्ट करने के लिए हुई भारत की सैन्य कार्रवाई यानी ऑपरेशन सिंदूर पर भी चर्चा होगी। आरंभिक सहमति के आधार पर दोनों सदनों में 16-16 घंटे की चर्चा का समय तय हुआ है। परंतु निश्चित रूप से चर्चा लंबी चलेगी। चर्चा के अंत में   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बोलेंगे। वे संसद में   सदस्यों की ओर से उठाए गए सभी प्रश्नों का उत्तर देंगे। ध्यान रहे केंद्र सरकार संसद सत्र शुरू होने से पहले सर्वदलीय बैठक में ही कह चुकी थी वह पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर सहित सभी मसले पर चर्चा के लिए तैयार है। दुर्भाग्य की बात है कि विपक्षी पार्टियों ने इतने अहम मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया।

विपक्ष की प्राथमिक चिंता में आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला नहीं है, बल्कि अपनी चुनावी राजनीति उसकी प्राथमिकता है। बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है और वहां विपक्ष को लग रहा है कि चुनाव आयोग की ओर से चलाए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण से उसकी जमीन खिसक रही है तो उसे लेकर मानसून सत्र में पहले पूरे हफ्ते कोई कामकाज नहीं होने दिया गया। कांग्रेस और बिहार की उसकी सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल के साथ साथ देश भर की विपक्षी पार्टियों ने मतदाता सूची के पुनरीक्षण के मामले में संसद के अंदर और बाहर खूब हंगामा किया। सवाल है कि अगर चुनाव आयोग मतदाता सूची से फर्जी नाम हटा रहा है तो किसी को भी इस पर क्यों आपत्ति होनी चाहिए?

चुनाव आयोग ने इस पूरी प्रक्रिया में सभी राजनीतिक दलों को भी शामिल किया है फिर भी विपक्षी पार्टियों ने अपने चुनावी हितों को आगे रखते हुए संसद की कार्यवाही ठप्प की। अगर विपक्ष के सरोकार में राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद का मामला भी प्राथमिकता में होता तो मानसून सत्र के पहले हफ्ते में ही पहलगाम कांड और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा हो जाती। यह कितने आश्चर्य की बात है कि 22 अप्रैल को हुए पहलगाम कांड और छह व सात मई की रात को हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद इस पर चर्चा के लिए विपक्ष के सारे नेता संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग करते रहे और जब संसद का सत्र शुरू हुआ तो वे दूसरा मुद्दा लेकर बैठ गए!

बहरहाल, लोकसभा अध्यक्ष महोदय की बुलाई बैठक में इस पर सहमति बनी है कि मानसून सत्र के दूसरे सप्ताह में यानी 28 जुलाई से शुरू हो रहे सप्ताह में संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलेगी। दूसरे सप्ताह के पहले दिन लोकसभा में पहलगाम कांड और ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा शुरू होगी। अगर विपक्षी पार्टियां न्यूनतम अनुशासन और राष्ट्रीय सुरक्षा व नागरिकों की जान की सुरक्षा के प्रति न्यूनतम प्रतिबद्धता दिखाती हैं तो निश्चित रूप से यह चर्चा रचनात्मक होगी। विपक्षी पार्टियों से उम्मीद की जाती है कि वे अपनी दलगत प्रतिबद्धता और राजनीतिक लाभ हानि की चिंता से ऊपर उठ कर देश की चिंता के साथ इस चर्चा में सम्मिलित होंगे। चर्चा में शामिल होते हुए वे इस बात का भी ध्यान रखेंगे कि ऑपरेशन सिंदूर अब भी जारी है।

यह बात बहुत स्पष्ट शब्दों में देश के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने कही है। ऑपरेशन सिंदूर जारी है इसका सीधा अर्थ है कि भारत के सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान की सीमा में स्थित आतंकवादी ठिकानों की निगरानी जारी रखी है और उन्हें किसी भी भारत विरोधी कदम का संकेत मिलेगा तो वह फिर कार्रवाई करेगी। ध्यान रहे पिछले कुछ दिनों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि पाकिस्तान फिर से दुनिया भर के देशों से भीख के रूप में मिले कर्ज के पैसे से पाक अधिकृत कश्मीर और अपने पंजाब के कुछ हिस्सों में आतंकवादी ठिकानों को खड़ा कर रहा है।

भारतीय सेना और खुफिया एजेंसियों की नजर इस पर है। भारत के सशस्त्र बल, खुफिया एजेंसियां और राजनीतिक नेतृत्व हर दिशा में भारत की सुरक्षा को लेकर सजग है। तभी पिछले दिनों पूर्वोत्तर को लेकर खबर आई थी कि म्यांमार की सीमा में बने अलगाववादी संगठन उल्फा के कुछ ठिकानों को नष्ट किया गया। हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई। परंतु सामरिक अभियानों में बहुत कुछ गोपनीय रखा जाता है।

तभी यह आवश्यक है कि भारत की सभी पार्टियां एक स्वर में आतंकवाद की निंदा करें और उसके हर स्वरूप से लड़ने में भारत की सरकार के हाथ मजबूत करें। यह ध्यान रखने की जरुरत है कि इस मामले में दुनिया के देश भारत के साथ खड़े हैं। हाल ही में ब्रिटेन के दौरे पर गए   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर को आतंकवाद के मसले पर भारत का समर्थन करने के लिए धन्यवाद दिया। दुनिया भर के देश आतंकवाद के खतरे को मानवता के लिए और राष्ट्रों की एकता, अखंडता व संप्रभुता के लिए खतरा मान रहे हैं और उससे लड़ने की आवश्यकता बता रहे हैं।

दुनिया के सारे देश आतंकवाद से लड़ने और आतंकवाद को पालने पोसने वाले देशों के खिलाफ एक समान रूप से कार्रवाई के समर्थक हैं। भारत की विपक्षी पार्टियों को इस वास्तविकता की रोशनी में अपनी बात रखनी चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत की विपक्षी पार्टियां अभी तक राजनीतिक आवश्यकता के हिसाब से तुष्टिकरण की नीति को प्राथमिकता देती रही हैं। तुष्टिकरण की उनकी नीति ने देश की सुरक्षा को खतरे में डाला है। कम से कम अब उन्हें यह नीति छोड़नी चाहिए और देश की रक्षा, एकता व अखंडता और नागरिकों की जान की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए।

भारत सरकार ने आतंकवाद पर जीरो टालरेंस की नीति के साथ साथ इससे लड़ने के लिए बनी नीति में नए तत्व शामिल किए हैं। सरकार ने तय किया है कि भारत के खिलाफ होने वाले आतंकवादी हमलों को अब एक्ट ऑफ वॉर यानी युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा। यह बहुत बड़ा नीतिगत फैसला है। अब तक आतंकवादी हमलों की आड़ में पाकिस्तान परोक्ष युद्ध लड़ रहा था और भारत को हजार घाव देने की नीति पर चल रहा था। अब ऐसा नहीं हो पाएगा। अगर भारत के ऊपर कोई आतंकवादी हमला होता है तो उसे युद्ध की कार्रवाई मान कर भारत जवाबी कार्रवाई करेगी।

दूसरा बड़ा नीतिगत बदलाव यह हुआ है कि आतंकवादी संगठनों और उनको आर्थिक मदद देने वालों को अलग अलग नहीं देखा जाएगा। आतंकवादी संगठनों को प्रश्रय देने वालों को भी आतंकवादी माना जाएगा और उनके ऊपर भी कार्रवाई होगी। भारत सरकार के इस संकल्प को दुनिया ने स्वीकार किया है। विपक्ष को भी इसे स्वीकार करना चाहिए और सरकार के संकल्प का समर्थन करना चाहिए।

लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष बेहद आवश्यक है ताकि वह सरकार को जवाबदेह ठहराए। परंतु विपक्ष को हमेशा नकारात्मक नहीं होना चाहिए। विपक्ष निश्चित रूप से सवाल पूछे और जवाब भी मांगे लेकिन राजनीतिक हठधर्मिता नहीं दिखाए। यह नहीं होना चाहिए कि सरकार कुछ भी कहे तो विपक्ष सिर्फ इसलिए विरोध करे की वह विपक्ष है। हो सकता है कि जम्मू कश्मीर में कुछ सुरक्षा चूक हुई हो, जिससे आतंकवादियों को उतनी बड़ी घटना को अंजाम देने का मौका मिला। सैन्य संघर्ष के दौरान भारत को भी कुछ नुकसान हुआ। इस ओर कई सैन्य अधिकारियों ने ध्यान दिलाया है।

परंतु इसके लिए भारत के सशस्त्र बलों और राजनीतिक नेतृत्व को कठघरे में खड़ा करने की बजाय उसके बाद उठाए गए कदमों को देखना चाहिए और आगे इस तरह की घटनाएं नहीं हों इस संदर्भ में रचनात्मक सुझाव दिए जाने चाहिए। भारत ने पहलगाम हमले का जैसा जवाब दिया है वह मिसाल है। एक झटके में भारतीय सेनाओं ने तीन सबसे बड़े आतंकवादी संगठनों के नौ ठिकानों को मिट्टी में मिला दिया। दर्जनों बड़े आतंकवादी मारे गए और इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान की आतंकवादियों से मिलीभगत का भी पर्दाफाश हो गया। आतंकवादियों के जनाजे में पाकिस्तान के सैनिक अधिकारी शामिल हुए, जिसे दुनिया ने देखा।

भारत ने इन समस्त विषयों और प्रमाणों को लेकर 59 नेताओं और राजनयिकों के सात प्रतिनिधिमंडल दुनिया के 33 देशों में भेजे।

इसमें कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के भी अनेक नेता शामिल हुए। भारत का यह कूटनीतिक अभियान बेहद सफल हुआ। इस तरह भारत ने पहले आतंकवादियों और उनके सरपरस्त पाकिस्तान को सैन्य कार्रवाई के जरिए करारा जवाब दिया और उसके बाद कूटनीतिक अभियान के जरिए उसकी पोल खोल कर विश्व बिरादरी में उसे अलग थलग किया। भारत की ये उपलब्धियां मामूली नहीं हैं। संसद में चर्चा के दौरान विपक्ष को इसे स्वीकार करना चाहिए। इसके साथ ही उन्हें निश्चित रूप से भारत के सशस्त्र बलों के शौर्य की प्रशंसा करनी चाहिए। विपक्ष को कमी निकालने और सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना करने से बचते हुए कुछ रचनात्मक सुझाव भी देना चाहिए।  (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

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