सवाल क्या हैं? एक, जब हम जीत रहे थे, जो भाजपा बार बार कहती है पीओके पर कब्जा वह सेना करने में समर्थ थी तो अचानक युद्ध विराम क्यों? किसका दबाव? और किस पर ? भारत पर तो सवाल ही नहीं। अमेरिका 1965, 1971 में कभी नहीं डाल पाया। तो जाहिर है दबाव मोदी पर था। क्यों? दूसरा, लोग पूछ रहे हैं कि अमेरिका की मध्यस्थता से मोदी इनकार क्यों नहीं कर पा रहे?
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहे जितनी कोशिश कर लें वे वापस 56 इंची छाती की अपनी इमेज नहीं लौटा सकते। उनके साथ कोई नहीं है। मगर सब देश के साथ थे, सेना के साथ थे। मगर जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने सभी को सोचने के लिए मजबूर किया, लोगों ने अपने साथ धोखा, छल हुआ मसहूस किया वह सामान्य बात नहीं है। हालांकि बीजेपी और आरएसएस से सहानुभूति रखने वाले विश्वासघात शब्द का प्रयोग कर रहे हैं जो शायद थोड़ा ज्यादा कठोर है, मगर उन्हें सिखाए गए राष्ट्रवाद के हिसाब से यह उनके लिए विश्वासघात ही है। मोदीजी की छवि पूरी तरह तार तार हो गई है।
यों नुकसान तो देश का हुआ है मगर मोदी इसे मानने, उसे ठीक करने के बदले केवल अपनी छवि सुधारने में लग गए। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप रोज कुछ न कुछ नया बोल रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी को पाकिस्तान के साथ डिनर पर जाने के लिए बोल रहे हैं। शायद चार या पांच बार वह भारत के बारे में बोल चुके हैं और गुरुवार सुबह जब तक यह लिखा हुआ आप तक पहुंचेगा एकाध बार और बोल दें मगर एक बार भी मोदी इसका खंडन नहीं कर पाए।
56 इंच की छाती, लाल आंखे. विश्व गुरु का शोर सब कुछ गुल है, गुम हो गया है। सोचे, पाकिस्तान की हैसियत हमारे सामने क्या थी और दुनिया की निगाहों में अब क्या हो गई है? खुद मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि हम पहले भी कई बार पाकिस्तान को धूल चटा चुके हैं। मगर कब कब यह नहीं बताया। बता भी नहीं सकते। कांग्रेस का नाम तो ले नहीं सकते।
जिस कांग्रेस के खिलाफ रात दिन बोलते रहते हैं। ऐसे युद्ध समान स्थिति में भी भाजपा ने कांग्रेस के खिलाफ वीडियो जारी किया धूल उसी कांग्रेस ने चटाई थी। सेना यही होती है। देश यही होता है मगर नेतृत्व का साहस होता है। 1965 में छोटे से कद के, धीमे बात करने वाले लाल बहादुर शास्त्री ने। 1971 में जिन्हें महिला और विडो होने के कारण बीजेपी ( उस समय जनसंघ) के व्यंग्य बाणों का निशाना होना पड़ा था उन इन्दिरा गांधी ने पाकिस्तान को हर तरह से पराजित किया। देश के दो टुकड़े कर दिए थी। वह थी भारत की असली और पूर्ण विजय।
तब अमेरिका हाथ मलता रह गया था। उसकी धमकी काम नहीं आई थी। लेकिन आज अमेरिका हमारी तरफ से सीजफायर की घोषणा कर रहा है। कश्मीर पर मध्यस्थता की बात कर रहा है। और हमारे प्रधानमंत्री जिनका दावा था कि 2014 से पहले भारत में पैदा होना शर्म और अपमान की बात थी वे अपने मुंह से अमेरिका या ट्रंप का नाम भी नहीं ले पा रहे।
मोदी की चुप्पी और जनता के तीखे सवाल
पूरे देश में लोग दुःख और निराशा में हैं। उन वीडियो की बाढ़ आई हुई है जिनमें प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह कांग्रेस पर मनमाने हमले करते हुए कह रहे हैं कि ये पाकिस्तान का कुछ नहीं कर सकते। पाकिस्तान के दो टुकड़े करने वाली कांग्रेस से कुछ नहीं कर सकने वाले भाजपा के भाषण उस समय लोगों ने उतनी गंभीरता से नहीं लिए मगर आज उन्हें सुन सुनकर कह रहे हैं कि कांग्रेस ने दो दो बार 1965, 1971 में पूरी तरह पाकिस्तान को हराया मगर आपने जो रोज पीओके लेने की घोषणा करते थे अचानक सेना के हाथ क्यों रोक दिए?
अमेरिका के कहने से? उस अमेरिका के जिसने ऐसी ही कोशिश 1971 में की थी। और उस समय की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने कहा था अपने काम से काम रखो। हमें बताने की कोशिश मत करो। भाजपा के आज तक के सबसे बड़े नेता हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐसे ही इन्दिरा गांधी को दुर्गा नहीं कहा था। आज तो खुद भाजपा या संघ के नेता भी मोदी को कोई सम्मानसूचक विशेषण देने के बदले इन्दिरा गांधी को याद कर रहे हैं।
देश में क्या माहौल है, यह मोदी जी को पता चल गया है। इसीलिए वे देश को संबोधित करने आए। तीन दिन खामोश रहे। शायद अपने द्वारा पाले पोसे मीडिया पर भरोसा था कि वह ट्रंप द्वारा घोषित यह संघर्ष विराम को उनके पक्ष में मोड़ देगा। व्हट्सएप के अपने बड़े नेटवर्क पर भरोसा था। भक्तों पर था कि वह तो हार को भी जीत बता सकते हैं। मगर सब असफल हो गए। देश के रक्षा विशेषज्ञों ने एक स्वर में कहा कि जब जीत हमारे जबड़े में थी तब हमने उसे छोड़ दिया। रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने कहा कि यह जीत के मुंह से
हार लेकर आने जैसी बात है। इतिहास भारत के इस निर्णय ( सीजफायर ) को अच्छी नजरों से नहीं देखेगा। इसके बाद मोदी ने देश को संबोधित तो किया। भारी भारी शब्द बोले। मगर जनता पर असर नहीं हुआ। आखिर उसके किसी भी सवाल का जवाब नहीं था। प्रधानमंत्री ने कहा कि पाकिस्तान ने हमसे गुहार लगाई। सब इससे सहमत थे। भारत ने रिक्वेस्ट मान ली यह भी स्वीकार कर लिया। मगर फिर ट्रंप ने सीजफायर की घोषणा क्यों की? शाम पांच बजे का टाइम तक बताया। यह क्यों?
हमने क्यों नहीं कहा कि पाकिस्तान के डर जाने, हार जाने पर उसकी रिक्वेस्ट पर हम संघर्ष विराम कर रहे हैं? इसका जवाब नहीं मिल रहा। प्रधानमंत्री इन सवालों से बचने के लिए आदमपुर एयरबेस गए। भाजपा ने तिरंगा यात्रा निकालना शुरू की। मगर जनता को उसके सवालों का एक जवाब भी नहीं मिला। सवाल क्या हैं?
एक, जब हम जीत रहे थे, जो भाजपा बार बार कहती है पीओके पर कब्जा वह सेना करने में समर्थ थी तो अचानक युद्ध विराम क्यों? किसका दबाव? और किस पर ? भारत पर तो सवाल ही नहीं। अमेरिका 1965, 1971 में कभी नहीं डाल पाया। तो दबाव मोदी पर था। मोदी जी के लिए यही सवाल सबसे बड़ा है। इन्दिरा की तरह वे अमेरिका को जवाब क्यों नहीं दे पाए?
दूसरा सवाल यह है और जो लोग जनता के बीच जा रहे हैं, उन्हें मालूम है। लोग पूछ रहे हैं कि अमेरिका की मध्यस्थता से मोदी इनकार क्यों नहीं कर पा रहे? एक के बाद एक ट्रंप रोज कह रहा है। मगर खुद मोदी जी ने एक बार भी नहीं कहा कि अमेरिका बीच में नहीं है। उसें बीच में नहीं आने देंगे। मोदी जी का गुब्बारा फूट गया। कोई रिपेयर की गुंजाइश नहीं। अब देखना यह है कि मोदी के नेतृत्व की कमजोरी सामने आने का नुकसान देश को नहीं हो।
भक्त लोग, मीडिया राहुल गांधी पर हमला करके कांग्रेस से सवाल पूछ कर मोदी का कद बढ़ाना चाहते है। इससे कुछ नहीं होगा। मामला गंभीर है। मोदी को सच्चाई स्वीकार करना पड़ेगी। कि जिसे वे माइ डियर फ्रेंड ट्रंप कहते थे वह किसी का दोस्त नहीं है। हां, उस दोस्त या अभी तो दुश्मन बना हुआ है उससे यह जरूर सीख सकते हैं कि किसी भी देश के राष्ट्र प्रमुख के लिए अपने राष्ट्रहित सबसे उपर होते हैं।
ट्रंप के लिए व्यापार है। लेकिन हमारे लिए इस समय सबसे बड़ा सवाल आतंकवाद है। चार या पांच बार बोल चुका है ट्रंप मगर एक बार भी आतंकवाद का नाम नहीं लिया। और हर बार भारत और पाकिस्तान को एक ही पलड़े में रखा।
दूसरा, मोदी को यह स्वीकार करना पड़ेगा कि 11 साल में उन्होंने देश में जो नफरत फैलाई वह सबसे भयानक बीमारी है। उनके पैदा किए हुए ट्रोल ऐसे संकट काल में उनके विदेश सचिव विक्रम मिसरी और उनके परिवार, बेटी के पीछे पड़ सकते हैं। कर्नल सोफिया कुरैशी पर तो भाजपा का मध्यप्रदेश सरकार का मंत्री घटिया टिप्पणी करता है।
इससे पहले पहलगाम में शहीद हुए नेवी के आफिसर विनय नरवाल की पत्नी के पीछे ये ट्रोल पड़े। ये देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं। मोदी इन्हें दोस्त समझना बंद करें। किसी दिन यह उनके पीछे भी पड़ सकते हैं। भस्मासुर की तरह जिससे वरदान लिया था उसी को मारने दौड़ा था।
मोदी जी के लिए 11 साल में पहली बार संकट बड़ा आया है। मगर यह उनसे ज्यादा देश की सार्वभौमिकता पर है। जो कभी नहीं हुआ वह हो रहा है। अमेरिका हमें टर्म डिक्टेट कर रहा है ( बता रहा है क्या करें, क्या न करें ) । देश उससे निपटने में समर्थ है। मगर मोदी जी को साहस बताना होगा। नाम न लें इन्दिरा का मगर उनकी तरह बनना होगा! पर कहां इन्दिरा गांधी और कहां मोदी।
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