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19-07-2025 Vol 19

ईरान को मारना है तो ट्रंप ने पाक को पुचकारा

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साइंस, टेक्नोलाजी, अंग्रेजी के इस जमाने में इस्लामिक मुल्क यदि अपने यहां मार्डन एजुकेशन और दूसरे सुधारों की शुरूआत नहीं करते हैं तो उनके लिए वक्त और खराब आने वाला है। इजराइल अपनी सीमाओं के विकास के लिए सिर्फ गजा तक सीमित नहीं रहेगा दूसरे अरब मुल्कों तक उसकी निगाहें जाएंगी। और फिर अमेरिका रक्षा करेगा मगर कहेगा इतनी जमीन दे दो! खुद अपनी तरक्की करने के बदले अमेरिका की सुरक्षा छतरी बहुत महंगी पड़ेगी!

ईरान को मारना है तो अमेरिका को पाकिस्तान को पुचकारना ही होगा। क्या यह डिप्लोमेसी अरब देशों और बाकी इस्लामिक मुल्कों के समझ में नहीं आती? और यह भी नहीं आता कि उनकी मध्यस्थता से अगर अमेरिका ने ईरान व इजराइल के बीच कोई सीजफायर करवा भी देता है तो वह इस संघर्ष के मूल मुद्दे गजा के नागरिकों को कोई राहत नहीं देगा। फिलिस्तीन का सवाल इससे हल नहीं होगा। बल्कि सीजफायर की खुशी में वह मसला कमजोर हो, हाशिए में चला जाएगा।   

मूल मुददे फिलिस्तीन से दुनिया का ध्यान हटाने के लिए ही इजराइल ने ईरान पर हमला किया था। और अब राष्ट्रपति ट्रंप ईरान के आकाश पर कब्जे की बात कर रहे हैं। सबका ध्यान सीजफायर पर आ गया है। और यह कोई नहीं सोच रहा कि जिस तरह मुम्बइया फिल्मों में और हालीवुड की फिल्मों में भी गुंडे हत्या की धमकी देते हैं, कहते हैं कि हमें मालूम है तुम कहां छुपे हो वैसे ही दो राष्ट्रों इजराइल और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष दे रहे हैं। बेशर्मी के साथ सद्दाम हुसैन की हत्या का उदाहरण दिया जो रहा है कि जैसे उन्हें मार दिया वैसे ही ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामनेई को मार देंगे। 

हत्या इतनी नार्मल चीज बनाई जा रही है। कल को किसी भी देश के राष्ट्राध्यक्ष के लिए यह कहा जाएगा कि इसे मार देते हैं। अन्तरराष्ट्रीय हत्याएं अगर इतनी आसान हो जाएंगी तो सोचिए दुनिया का क्या होगा। और अभी तो नेता नेता की हत्या की बात कर रहे हैं फिर अन्तरराष्ट्रीय सुपारी दी जाने लगेंगी। दुनिया फिर वहां पहुंच जाएगी जहां अंडरवर्ल्ड के गेंग वार होते हैं।

बड़ी ही भयावह स्थिति है। अमेरिका एक डान की तरह व्यवहार कर रहा है। सोचना पूरी दुनिया को है। लेकिन हम यहां केवल दो चीजों पर केन्द्रीत कर रहे हैं। एक अपने देश भारत पर और दूसरे फिलिस्तीन और इससे जुड़े इस्लामिक मुल्कों पर। पहले देश की बात। हम सबसे गंभीर संकट के दौर में खड़े हुए हैं। पहली बार ऐसा है कि पाकिस्तान ने चीन और अमेरिका दोनों को एक साथ साध लिया है। मगर यह कहना शायद गलत है कि उसने साध लिया है। सही यह है कि हमारी विदेश नीति पूरी तरह असफल हो गई है। विदेश नीति विदेश में होती है। मगर हम घर में

नेहरू को गालियां देकर विदेश नीति को सफल मान रहे हैं। आश्चर्यजनक रूप से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहलगाम के आतंकवादी हमले के साजिशकर्ता पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर को व्हाइट हाउस में बुलाकर उनके साथ लंच करते हैं। और हमें बताया जाता है कि ट्रंप ने इतने मिनट हमारे प्रधानमंत्री से फोन पर बात की। उन्हें अमेरिका बुलाया मगर फिलहाल उन्होंने असमर्थता व्यक्त कर दी।

शायद पहलगाम के हमले के बाद यह पहला फोन काल था। या सीजफायर के बाद तो निश्चित ही रूप से पहला था जो आर्मी चीफ के लंच को काउंटर करने के लिए अपने देश वालों को बताया गया। एक आर्मी चीफ और वह भी वह जिस पर आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोप हों जो खुद से फील्ड मार्शल बन गया हो उसके लंच को काउंटर करने के लिए हमारे प्रधानमंत्री को सामने लाना देश के सम्मान के साथ मजाक है। ट्रंप हमारे आर्मी चीफ के साथ बात करते और वह बताया जाता तो समझ में आता। मगर हर जगह मोदी मोदी को ही रखने से देश की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ती। कम होती है।

सीजफायर के बाद दुनिया भर सहित अमेरिका में भी प्रतिनिधिमंडल भेजे गए। क्या हुआकैसा भारत का पक्ष रखा? कैसा पाकिस्तान के आतंकवाद और खासतौर से उसके आर्मी चीफ के उसे बढ़ावा देने के बारे में बताया गया कि ट्रंप उसे व्हाइट हाउस में लंच देकर सम्मानित कर रहे हैं ? दरअसल जो प्रतिनिधिमंडल गए वे वहां देश का पक्ष कितना रख रहे थे और कितना मोदी का नेतृत्व सबसे मजबूत बताते घूम रहे थे और कितना वहां विदेश से ही रोज नेहरु ऐसे थे, या इन्दिरा ऐसी, राजीव गांधी ने यह किया और राहुल को सीधे अपशब्द कह रहे थे यह कोई नहीं देख रहा! प्रतिनिधिमंडलों का काम क्या था? विदेश से कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्रियों का चरित्र हनन ?

देख लीजिए उसका नतीजा! हमने डिनर दिया। अपने विदेश गए नेताओं को। और उसमें चुन चुन कर प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस के नेताओं से मिल रहे थे। वहीं फोटो और वीडियो मीडिया में भेजे गए। मकसद क्या था? राहुल पर हमला।मगर राहुल पर हमले से क्या दुनिया में हमारी विदेश नीति सफल हो गई? ट्रंप ने लंच देने के साथ क्या पाकिस्तान के आर्मी चीफ को खरी खरी सुनाई? वे तो इससे पहले वहां के नेतृत्व यानि की प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को बहुत मजबूत ताकतवर बता चुके हैं।

हमारी विदेश नीति सबसे खराब दौर में! कोई हमारे साथ नहीं है इससे बुरा पाकिस्तान के साथ लोगों का खड़ा होना। निश्चित ही रूप से इसमें पाकिस्तान का कोई सकारात्मक योगदान नहीं है। कोई कारनामा नहीं। हमारी गलतियां। देश से आगे मोदी को रखना। अभी साइप्रस में सुन लिया होगा कि एक महिला कह रही है कि पहले लोग हमें भारतीय कहते थे। सम्मान नहीं मिलता था। अब मोदी के देश का कहते हैं। सम्मान मिलता है। भारत से ऊपर मोदी। और इसे दिखाया जा रहा है। मतलब सरकार का समर्थन। अगर हो जाते चार सौ पार तो नाम भी हो जाता मोदी का देश!

दूसरी बात। आसमान पर कब्जा! अब लड़ाई पूरी तरह बदल गई है। बाकी देश भी सब ड्रोन और मिसाइल बनाने लग जाएंगे। मकर संक्रान्ति पर जयपुर का आकाश किस किस ने देखा है? दिखता ही नहीं। पूरा आसमान पतंगों से ढक जाता है। पतंगे तो खैर रंगबिरंगी होती हैं। अच्छी लगती हैं। मगर ड्रोन और मिसाइल अब ऐसे ही आसमान ढक लेंगे। और उनका विषेला धुंआ जहां से छोड़े जाएंगे वहां से लेकर जहां गिरेंगे वहां तक सब जहरीला बना देंगे।

अरब और इस्लामिक मुल्क जिनकी संख्या 57 हैं जो दुनिया के कुल देशों का करीब एक तिहाई होते हैं क्या अपने ऐशो आराम को छोड़कर इस साइंस और टेक्नोलाजी की दुनिया में जाएंगेया अपनी रक्षा के लिए अमेरिका को सुरक्षा शुल्क और ज्यादा देना शुरू कर देंगे। फिल्मों में डरे हुए मोहल्ले वाले देते हैं ना  गुंडों को प्रोटेक्शन हफ़्ता (रंगदारी) जैसे!

दो साल हो रहे हैं गजा में इजराइल के नरसंहार को। कोई नहीं रुकवा पाया। और अब ईरान पर हमला करके उसने यह और बता दिया कि जो भी गजा के निरिह नागरिकों की रक्षा की बात करेगा उसकी रक्षा भी खतरे में डाल दी जाएगी। मूल सवाल फिलिस्तीन एक स्वतंत्र राष्ट्र गुम हो गया। पहले ईरान में सीजफायर फिर गजा के मासूम बच्चों की दवाइयां और खाने के सवाल। एक रिक्वेस्ट सी हो गई है। गजा में हत्याएं बंद हों, फिलिस्तीन एक स्वतंत्र राष्ट्र बने लगता है कोई बहुत दूर की कल्पनाएं हैं।

क्या कर रहे हैं इस्लामिक मुल्कसबसे पैसे वाले  सउदी अरब से लेकर बाकी सब अमेरिका के साथ खड़े हैं। पाकिस्तान के आर्मी चीफ को वह लंच खिला रहा है। साइंस, टेक्नोलाजी, अंग्रेजी के इस जमाने में इस्लामिक मुल्क यदि अपने यहां मार्डन एजुकेशन और दूसरे सुधारों की शुरूआत नहीं करते हैं तो उनके लिए वक्त और खराब आने वाला है। इजराइल अपनी सीमाओं के विकास के लिए सिर्फ गजा तक सीमित नहीं रहेगा दूसरे अरब मुल्कों तक उसकी निगाहें जाएंगी। और फिर अमेरिका रक्षा करेगा मगर कहेगा इतनी जमीन दे दो!

खुद अपनी तरक्की करने के बदले अमेरिका की सुरक्षा छतरी बहुत महंगी पड़ेगी!

शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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