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मोदी मोदी नहीं क्योंकि नौकरी, नौकरी

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मेट्रो स्टेशन पर बाहर जितनी दुकानें बनाई थीं। बंद पड़ी हैं। कभी इतनीचलती थीं कि वहां ज्योतिषियों ने भी दुकान ले ली थी। मगर अब जूस की शेककी जो गर्मियों में सबसे ज्यादा चलती थीं वे भी बंद पड़ी हैं। हर दुकानपर दो तीन लड़कों को रोजगार मिलता था। मगर अब दुकान वाला खुद ही बेरोजगारहो गया है। यह मोटा आकलन है। बेरोजगारी, काम नहीं, जेब खाली। यही असल मसला है। …महंगाई इसीलिए दूसरे नंबर पर है। जेब में पैसा ही नहीं है तो क्या महंगा क्या सस्ता।

तीसरे चरण के मतदान के साथ ही आधी से ज्यादा सीटों पर चुनाव हो गया। 543में से 282 पर। सिर्फ 261 और बची हैं। अब चुनाव पलटा नहीं जा सकता। हां, जो माहौल बन गया है वह और तेज हो सकता है।

माहौल इस समय मुद्दों का है। जिन्दगी से जुड़े ठोस मुद्दों का। बेरोजगारीइनमें सबसे ऊपर है। उसके साथ महंगाई। आम आदमी बहुत मुश्किल वक्त से जूझरहा है। जिन घरों में दो दो, तीन तीन तनखाएं आया करती थीं, उनमें एक भीनहीं आ रही है। बेरोजगारी का ऐसा आलम कभी नहीं था। आदमी को कोई न कोई काममिल जाता था। सबसे आसान काम हुआ करता था दुकानों पर सेल्स मेन सेल्ल गर्ललगना। कोई खास एजुकेशन, अनुभव, योग्यता की जरूरत नहीं होती थी। दुकान,स्टोर, शोरूम के बाहर हमेशा पर्चा लगा रहता था। जरूरत है! लड़के लड़कियोंकी।

मगर आज लड़के लड़की घूमते हैं। यह पर्चियां ढुंढते हुए। कहीं नहींमिलतीं। वैसे ही किसी शोरूम में घुस जाओ, पूछो तो निराशा भरा जवाब मिलताहै। काम ही नहीं है। रख कर करेंगे क्या? बड़े बड़े माल की हालत तो और बुरी है। वहां लाइन से दुकानें बंद पड़ी मिल जाएंगी। ग्राहक ही नहीं है।

मेट्रो स्टेशन पर बाहर जितनी दुकानें बनाई थीं। बंद पड़ी हैं। कभी इतनीचलती थीं कि वहां ज्योतिषियों ने भी दुकान ले ली थी। मगर अब जूस की शेककी जो गर्मियों में सबसे ज्यादा चलती थीं वह भी बंद पड़ी हैं। हर दुकानपर दो तीन लड़कों को रोजगार मिलता था। मगर अब दुकान वाला खुद ही बेरोजगारहो गया है। केवल कुछ बड़े मेट्रो स्टेशन, जंक्शन वाले ( जहां दो लाइनेंमिलती हैं) पर ही वह भी एंट्री के अंदर ही खाने पीने के स्टाल बचे हैं।

यह एक मोटा आकलन है। तस्वीर जो लोग रोज देख रहे हैं। बेरोजगारी, कामनहीं, जेब खाली। इस पर अब मीडिया सर्वे नहीं करता है। बाकी ऐजेन्सियां भीनहीं। अगर आप कभी कुछ लिख दो तो भक्त जरूर आ जाएंगे चिल्लाने की ऐसा नहींहै। लेकिन अगर कभी मिल जाएं और आप उनसे पूछो कि क्या हाल है? तो वह भी अपनी खाली जेब दिखा देगा।

महंगाई इसीलिए दूसरे नंबर पर है। जेब में पैसा ही नहीं है तो क्या महंगाक्या सस्ता। पढ़े लिखे लोग अपनी योग्यता से कम काम करने पर मजबूर हैं।

कैब ड्राइवर, टू व्हीलर पर लाने ले जाने वाले, खाना डिलिवर करने वाले,जमेटो, स्वीगी वाले लड़के लड़कियां सब पढ़े लिखे युवा हैं। बड़े सपनेलेकर डिग्रियां, डप्लोमा लिए थे। इंजीनियर हैं, ला ग्रेजुएट हैं, बीएड

हैं और कई दूसरे तकनीकी क्षेत्रों में विशेष योग्यता प्राप्त मगर काम वहकर रहे हैं जिसमें उनकी एजुकेशन कोई काम नहीं आ रही।ऐसे में मोदी जी के शिकवे शिकायत, भावुक मुद्दे, हिन्दू मुसलमान, रोनाधोना कैसे चल सकता है? देश की जनता भोली है, भावनाओं में जल्दी बह जातीहै, एक बार नहीं दो बार बहकाई जा सकती है। मगर इतनी भी बेवकूफ नहीं किउसका बच्चा भूखा हो और झूठ बोलने वाले उससे कहें कि तुम्हारे बच्चे का खूब पेट भरा हुआ है और वह मान जाए। खुद उसके भूखे रहने पर कहते हैं किदेखो उसका हवा पानी हमने रोक दिया तो वह एक बार गर्व में आ सकता है। मगरबच्चों की भूख पर उसे यह सुनकर तसल्ली नहीं होती कि वह ज्यादा बच्चे पैदाकरते हैं और कांग्रेस आएगी तो तुमसे छीनकर उन्हें दे देगी। वह आज कह नहीं

पाए मगर सोचता है कि हमारे पास छोड़ा क्या?  कोई क्या ले लेगा?  हमारेबच्चों की भूख, उनकी पढ़ाई न होना, इलाज न मिलना!

हां, ले ले कोई। भूख ले ले। रोटी दे दे। ये जो पांच किलो अनाज है इससेगुजर नहीं होती। गुजर के लिए तो काम चाहिए। नौकरी रोजगार। वह छीन लिया।कांग्रेस ने नहीं, तुमने! गांव देहात में सबसे ज्यादा काम मनरेगा में मिलरहा था। गांव वालों का जीवन स्तर सुधर रहा था। उनके पास पैसा आ रहा था तोबाजार चल रहा था। बाजार के चलने से खाने पीने का सामान बनाने वालेक्षेत्रों में उत्पादन बढ़ रहा था।

आपको आश्चर्य होगा कि आज जब मोदी जी कहते हैं बताओ कौन बनेगाप्रधानमंत्री? कौन है उनके यहां?  तो लोग बहुत सारे नाम लेने के साथरघुराम राजन का भी नाम लेते हैं। अर्थ विशेषज्ञ। जैसे मनमोहन सिंह ने एक नया मीडिल क्लास बना दिया था। गरीब तक पैसा पहुंचा दिया था। वैसे ही लोगअब रघुराम राजन से उम्मीद कर रहे हैं।

देश की अर्थव्यवस्था खराब है यह बातें होने लगी हैं। और इसका आधार बहुतही सिम्पल है। जब हमारी जेब खाली तो सबकी खाली। भूखे को सब भूखे ही दिखतेहैं।

मोदी जी यह बात नहीं समझ रहे। वह सिर्फ मैं मैं मैं ही कर रहे हैं। मेरेजीते जी यह नहीं हो सकता। मेरे साथ यह हुआ। मैं यह करूंगा। मैने यह कियाके अलावा वह कोई बात ही नहीं करते हैं। मोदी सरकार। मोदी परिवार। कहां हैभाजपा? कहा है संघ परिवार? सौ साल हो रहे हैं संघ को। मगर मोदी जी उसकीबात नहीं करके 23 साल बाद के 2047 की बात कर रहे हैं। जबकि संघ अगले सालही सौ साल का होने वाला है।

संघ और भाजपा तो सामूहिक नेतृत्व की बात करते थे। इतना व्यक्तिवाद तोउन्होंने कभी देखा नहीं था। दस साल में भाजपा और संघ कहीं हैं नहीं।सिर्फ और सिर्फ मोदी जी हैं। बाकी संवैधानिक संस्थाएं तो गईं मगर संघ औरभाजपा भी चले गए।

अगर बचे हुए चार चरणों में चुनाव पलट लिया। जो कि बहुत मुश्किल है। लेकिनमान लीजिए की कोई ईवीएम का खेल, कोई मतदान प्रतिशत तीसरे चरण में और उसकेबाद अन्य चरणों में बहुत ज्यादा बढ़ाकर कुछ कर लिया तो फिर वह मोदी युगशुरू हो जाएगा। जब पूरी भाजपा और संघ मोदी परिवार हो गया तो देश मोदी देश क्यों नहीं हो पाएगा?

लेकिन फिलहाल तीन चरणों आधी से ज्यादा सीटों पर मतदान होने के बाद यह साफदिख रहा है कि मोदी जी पिछड़ रहे हैं। इंडिया गठबंधन बढ़त पर है। लेकिनबस विपक्ष को यह ध्यान रखना होगा कि पहले दो चरणों में जैसे कई दिनों बादमतदान प्रतिशत आया और वह भी बढ़ा हुआ वैसा अब होने से रोकना है। मतदानप्रतिशत बढ़ाना मतलब नकली मतदान है। इसे चाहे सुप्रीम कोर्ट के जरिए याचाहे कड़े तेवर दिखाकर रोकना होगा।

मोदी जी की वापसी का बस यही एक रास्ता बचा है। इंडिया गठबंधन उसे कैसेबंद कर पाता है इसी पर सब निर्भर है।

वैसे खेल हो चुका है। सिर्फ नतीजे का इंतजार है। कुश्ती में बाक्सिंग मेंहोता है ना राउंड पूरे हो जाने के बाद कुछ देर का सस्पेंस। सबको दिख जाताहै कौन अच्छा लड़ा। मगर फिर भी रैफरी के इशारे का इंतजार होता है। दोनोंमें किसका हाथ ऊंचा करता है।

भारत की कुश्ती का तो सत्यानास कर दिया। ओलंपिक में इसी में व्यक्तिगतपदक आता था। उन्हें कुश्ती संघ के तत्कालीन अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह नेही दो कौड़ी का बता दिया। और भाजपा ने उसके बेटे को टिकट देकर उसकी यहबात साबित कर दी कि दबदबा है दबदबा रहेगा।

लेकिन खैर देखना यह है कि चार जून को किस का दबदबा रहता है। भाजपा में तोब्रजभूषण शरण सिंह का हो गया। देश में जनता का बनता है या नहीं! आवाजेंतो अब चारों तरफ से नौकरी नौकरी की आ रही हैं। मोदी मोदी की आवाजें तोबंद हो गईं।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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