Tuesday

01-07-2025 Vol 19

सियासी पारा 60 डिग्री पार!

141 Views

न चुनाव है, न मोदी सरकार को कोई संकट है फिर भी राजनीति में उबाल लाने में वापिस बेइंतहां ईंधन फूंका जा रहा है! मोदी सरकार के 11 साल होने वाले है। तीसरे टर्म का भी एक साल पूरा हो रहा है। पर फिर भी चैन नहीं। नेहरू का 18 साल का शासन (हां, दो सितंबर 1946 में वे अंतरिम प्रधानमंत्री बन गए थे। तब से वे 27 मई 1964 तक प्रधानमंत्री थे।) था वही इंदिरा गांधी का कोई 16 वर्ष का शासन रहा। इन दोनों के समय राजनीतिक हंगामा विपक्ष से होता था और सरकार की एप्रोच फायर ब्रिगेड़, जवाब देने या शांति सुलह की थी। लेकिन नरेंद्र मोदी का यह वह अकेला, अनहोना शासन है, जिसमें 11 वर्षों से सरकार खुद ही अपनी और से राजनीति में उबाल लाती हुई है! शासन का नाम है उबालना।

क्या इससे भ्रष्टाचार मिटा? सरकार की वाहवाही हुई? जो समर्थक वोट हैं वे भी मानते हैं कि सब राजनीति है! पूरे कार्यकाल में छह महीने के लिए भी देश ने कभी सर्द, वसंत ऋतु का सियासी मौसम महसूस नहीं किया। हर समय टकराव का, नफरत का, ललकार का, बुलडोजर-ईडी-सीबीआई का बना रहा। यह प्राथमिकता कभी रही ही नहीं कि राजनीति ठंड़ी पड़े, देश में ठंडक, सुकून, शांति बने और हम इंसान हैं तो राजनीति भी हम इंसानी सौहार्द से खेलें!

राजनीति में गर्मी: पारा 60 डिग्री पार

सोचें, जलवायु परिवर्तन के बावजूद देश में गर्मी का पारा अभी 40-42 डिग्री के आसपास है। जबकि राजनीति आज कितनी जबरदस्त खौलती हुई है! मुस्लिम संगठनों ने औपचारिक रूप से वक्फ बिल बोर्ड को धर्म की लड़ाई बताते हुए स्थायी तौर पर उसी सघनता से लड़ने का ऐलान किया है जैसे शाहबानो के मामले में मुसलमान के घर-घर में खिलाफत का माहौल बना था। मुसलमान सड़क पर उतर रहे हैं। और उतरे नहीं कि पश्चिम बंगाल के वीडियो देश भर में फैल रहे हैं। इनमें हिंदू रो रहे हैं, भाग रहे हैं और भाजपा का स्यापा है कि ऐसा ममता बनर्जी के कारण है।

सुप्रीम कोर्ट में इतनी याचिकाएं दाखिल हुई हैं कि अदालत को सुनवाई करनी पड़ रही है। मतलब यह कि देर सबेर सुप्रीम कोर्ट से फैसला होगा। और वह कुछ भी फैसला दे उससे लोगों का सिस्टम से भरोसा टूटेगा।

सुप्रीम कोर्ट एक वह औजार हो गया है, जिसके एक के बाद एक फैसलों से मुसलमान का विश्वास टूटना ही है। और ऐसा होने देने के पीछे की बेसिक गणित है कि वह जितना टूटेगा, उतना कमजोर होगा और हिंदुओं में मोदी सरकार के वोट पकेंगे। भाजपा बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश सभी तरफ जीतती जाएगी। यदि यह बिसात है तो सवाल है तब राहुल गांधी, सोनिया गांधी, रॉबर्ट वाड्रा याकि कांग्रेस से आर-पार की राजनीति का ताजा उबाल क्यों? क्यों स्टालिन से पंगा तो क्यों योगी आदित्यनाथ का सीधे ममता बनर्जी पर इतना बोलना? क्या मोदी-शाह ने तय किया है कि हिंदू-मुस्लिम झगड़े में अब योगी आदित्यनाथ को अखिल भारतीय राजनीतिक नैरेटिव की खुली छूट है?

आम आदमी पार्टी के गुजरात प्रभारी दुर्गेश पाठक के खिलाफ सीबीआई के छापों का अर्थ और भी हैरान करने वाला है? क्या गुजरात के चुनाव की भी भाजपा में चिंता है? और यदि मोदी-शाह को गुजरात असुरक्षित लग रहा है तो इतना भान तो होना चाहिए कि 25 वर्षों की एकक्षत्रपता के बावजूद नरेंद्र मोदी, अमित शाह गुजरात में कांग्रेस, राहुल गांधी, आप और केजरीवाल को जिंदा मान खतरा बूझ रहे हैं तब भविष्य का जरा तो अनुमान करें। नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री भले 15-20 बीस साल रहें, पर देश हमेशा के लिए संघ परिवार, भाजपा, योगी आदित्यानाथ, अमित शाह की जागीर नहीं बना रहेगा।

तब फिर आगे क्या होगा? 11 साल तक देश को लगातार उबाले रख कर भी मुसलमान डर नहीं रहा है, राहुल गांधी डर नहीं रहे हैं या दिल्ली में बुरी हार के बाद भी केजरीवाल से खतरा है, तेजस्वी से खतरा है और खतरों, चिंताओं, टकराव में ही रहना है तो राजनीति के लगातार, बढ़ते पारे में झुलसते रहने से देश का क्या बनेगा? और संघ-परिवार की भावी पीढ़ियों की क्या दशा होगी, उनसे क्या सलूक होगा?

Also Read: गुजरात बचाने के लिए ईडी?

Pic Credit: ANI

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *