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15-06-2025 Vol 19

घाटी में पहली बार पाकिस्तान से नफरत

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जम्मू कश्मीर में आतंकवाद पिछले करीब चार दशक से चल रहा है। पिछली सदी में आठवें दशक के मध्य में इसकी शुरुआत हुई थी। उसके बाद करीब 40 साल में कोई मौका ऐसा नहीं आया, जब जम्मू कश्मीर में और खास कर कश्मीर घाटी के स्थानीय निवासियों के मन में पाकिस्तान के प्रति ऐसी नफरत पैदा हुई हो और उसका प्रकटीकरण भी हुआ हो, जितनी पहलगाम की घटना के बाद हुई है।

पहली बार ऐसा हुआ है कि कश्मीर घाटी के लोग  पाकिस्तान के खिलाफ आंदोलित हुई। अपने हिंदू बिरादरान के साथ खड़े हुए और आतंकवादियों को अपना दुश्मन बताया। इससे पहले किसी न किसी रूप में आतंकवादियों को स्थानीय लोगों का समर्थन मिलता रहता है। वे अपने आर्थिक हितों और अपने जीवन से ज्यादा पाकिस्तान के इस नैरेटिव की लड़ाई लड़ते थे कि, ‘कश्मीर उसके गले की नस है’।

पहलगाम हमला: कश्मीर में उभरा पाक विरोध

पहलगाम में धर्म पूछ कर 27 हिंदुओं की हत्या किए जाने के बाद कश्मीरी आवाम आंदोलित हुआ है। हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरे और उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी की। ऐसा नहीं है कि कोई पार्टी लोगों को मोबिलाइज कर रही थी। भाजपा ने भी अपनी ओर से कुछ प्रयास नहीं किया, जबकि उसके 29 विधायक हैं और वह एक बड़ी राजनीतिक ताकत है। लोग खुद ब खुद घरों से निकले और पाकिस्तान का विरोध किया। सबने एक स्वर में कहा कि यह हमला कश्मीरियत की भावना के ऊपर है।

जाहिर है इतने बड़े विरोध के पीछे एक कारण यह भी था कि पहली बार आतंकवादियों ने धर्म पूछ कर इतना बड़ा नरसंहार किया था और कश्मीर लोगों को भी इसके असर का अंदाजा होगा। लेकिन उसके साथ साथ एक कारण यह भी था कि आतंकवादियों ने इस अलिखित नियम का उल्लंघन किया था कि पर्यटकों या दूसरे बाहरी लोग, जो स्थानीय अर्थव्यवस्थ को सपोर्ट करते हैं उन पर हमला नहीं होना चाहिए।

पर्यटकों पर हमले का पहला असर तो यह हुआ है कि पर्यटन का हाई सीजन होने के बावजूद सारी बुकिंग रद्द होने लगी है। होटलों की 90 फीसदी बुकिंग रद्द हो गई है। हवाई जहाज की टिकटें कैंसिल की जा रही हैं। लोग श्रीनगर, पहलगाम, गुलमर्ग, सोनमर्ग आदि छोड़िए लोग वैष्णो देवी की यात्रा रद्द कर रहे हैं। सोचें, पिछले साल दो करोड़ 30 लाख पर्यटक कश्मीर गए थे। भारत के कुल 25 करोड़ लोगों ने घरेलू पर्यटन किया, जिसका 10 फीसदी अकेले कश्मीर गया था। इससे कितना राजस्व सरकार को और वहां के कारोबारियों को मिला होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

पिछले कुछ समय से जम्मू कश्मीर के बारे में धारणा बदली थी और अनुच्छेद 370 हटाए जाने का सकारात्मक असर दिखने लगा था। अनुच्छेद 370 हटाए जाने को जितने सहज रूप से वहां के आम लोगों ने स्वीकार किया और उसके बाद जैसे चुनाव के बाद लोकप्रिय सरकार का गठन हुआ उससे देश भर के लोगों में विश्वास बना और उन्होंने कश्मीर जाना शुरू किया। कश्मीर के लोग भी मुख्यधारा से जुड़ने लगे। वहां के नौजवान देश भर में पढ़ाई के लिए जाने लगे और अचानक अखिल भारतीय सेवाओं से लेकर खेल कूद में कश्मीरी नौजवानों की भागीदारी बढ़ गई।

तभी वहां के स्थानीय कारोबारी, होटल वाले, टैक्सी वाले, खच्चर, घोड़े और डोली वाले सबकी जीविका पर खतरा मंडरा रहा है। कहीं भीड़ पर आतंकवादियों द्वारा गोली चलाना और कुछ लोगों को मार देना, बिल्कुल अलग मामला है लेकिन सबसे लोकप्रिय पर्यटक स्थल पर जाकर पर्यटकों से धर्म पूछ कर उनकी हत्या कर देना, अलग मामला है। इससे लोगों का मनोविज्ञान बहुत प्रभावित हुआ है। वे काफी समय तक कश्मीर जाने से कतराएंगे और इसका असर वहां के लोगों के जीवन पर पड़ेगा। तभी लोग इतने नाराज हुए। पहली बार ऐसा हुआ कि पूरा जम्मू कश्मीर बंद हुआ। पहलगाम की घटना के खिलाफ स्वंयस्फूर्त बंद रहा।

यहां तक कि पाकिस्तान विरोधी नारे लगे और पाकिस्तान का झंडा जलाया गया। जिस तरह का गुस्सा देश के अन्य हिस्सों में दिख रहा है वैसा ही गुस्सा कश्मीर में भी दिख रहा है। कश्मीर लोगों का यह गुस्सा आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सरकार के बहुत काम आ सकता है। इससे वहां आतंकवाद के खात्मे और स्थायी शांति की उम्मीदें बढ़ गई हैं।

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Pic Credit: ANI

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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