Wednesday

30-04-2025 Vol 19

वहां काबिलियत यहां आरक्षण!

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अमेरिका में सरकारी कर्मचारी की हैसियत भारत जैसी नहीं है। कितनी गजब बात है कि डोनाल्‍ड ट्रंप ने एक आदेश से केंद्र सरकार में आरक्षण, सामाजिक सशक्तिकरण, एफर्मेटिव एक्शन से भर्ती हुए सभी कर्मचारियों को एक महीने का वेतन दे कर घर बैठा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने प्राइवेट सेक्टर, बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इन कसौटियों में भर्ती को ले कर चेतावनी दी। अर्थात इस तरह की भर्तियां बंद करें और केवल काबिलियत की कसौटी पर नौकरी दी जाए।

डोनाल्ड ट्रंप के आदेश पर वहा हड़ताल नहीं हुई। न विरोधी पार्टी और सांसदों का हल्ला हुआ। किसी लेवल पर वोट राजनीति की कोई चिंता नहीं। क्यों? वजह सिस्टम है। अमेरिका में राष्ट्रपति और उनकी सरकार अर्थात केंद्र सरकार की कार्यपालिका का स्वतंत्र, अलग अस्तित्व है तो संसद का एकदम अलग। वही न्यायपालिका व प्रदेशों की सरकार का एकदम अलग अस्तित्व। राष्ट्रपति अपनी कार्यपालिका में नियुक्ति, नौकरी व निर्णयों का अधिकारी है। राष्ट्रपति खुद ही शपथ के बाद जैसे अपने मंत्री और आला अधिकारी तय (हालांकि संसद उनकी पड़ताल कर उसे अमान्य भी कर सकती है, ट्रंप के चुने मंत्री, अधिकारी भी रिजक्ट हो रहे हैं।) करते हैं तो राष्ट्रपति के हटने के साथ वे भी हटते हैं। वहां कोई सरकारी नौकरी से चिपका नहीं रहना चाहता है क्योंकि प्राइवेट क्षेत्र में कम अवसर नहीं।

इसमें एक रोल दो पार्टियों की अलग-अलग दो विचारधाराओं का है। वहां आरक्षण, एफर्मेटिव एक्शन का आइडिया डेमोक्रेटिक पार्टी का है तो डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति व संसद अपने विचारों में खमठोक निर्णय लेते हैं वही रिपबल्किन पार्टी अपने विचारों में रीति-नीति बनाती है। डोनाल्ड ट्रंप चाहे जो करें, चार साल बाद चुनाव में जनता फैसला देगी कि वह सही था यह गलत। दोनों पार्टियों के दायरे अमेरिका, देश के संदर्भ में है। इन्हें यह चिंता नहीं होती कि आगे मध्यावधि चुनाव में जीतेंगे या हारेंगे? वॉशिंगटन की सत्ता देश के सरोकारों की प्राथमिकता लिए हुए होती है। लेकिन भारत में केंद्र सरकार इस चिंता में रहती है कि कहीं दिल्ली के चुनाव नहीं हार जाएं। इसलिए दिल्ली के कर्मचारियों को खुश करने के लिए वेतन आयोग का ऐलान करो!

सो, भारत में ‘वोट’ भारत को खाता है! जाति, आरक्षण, रेवड़ियां, वर्ग और वर्ण की राजनीति विकास को खोखला बनाती है। बुद्धि को कुंद बनाए रखती है। काबिलियत, मौलिक मेधा का ब्रेन ड्रेन कराती है। तभी विकसित देश, अमेरिका आदि लगातार विकसित होते हुए है। अब एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की सुपर महाशक्ति बन रहा है और भारत की बुद्धि आईटी कुलीगिरी याकि विदेशी प्रोजेक्टों की ठेके पर कोडिंग, प्रोग्रामिंग करती है। यह सिलसिला आज से नहीं कंप्यूटर क्रांति, आईटी क्रांति के जन्म से है।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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