वैसे तो दिल्ली नगर निगम में भाजपा को बहुमत की समस्या नहीं है। उसके पाक 116 पार्षद हैं और आम आदमी पार्टी से अलग होकर बनी इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी के 15 पार्षदों का समर्थन भी उसको है। इस तरह उसके पास 131 पार्षद हो जाते हैं, जबकि सदन की संख्या ढाई सौ की है। फिर भी इसमें से खाली हुई 12 सीटों पर भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच जबरदस्त जोर आजमाइश है। इसका कारण यह है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में आप के बुरी तरह से हारने के बाद आम आदमी पार्टी को अपनी ताकत दिखानी है। अगर वह इसमें बुरी तरह से हारती है तो उसको खतरा है कि कांग्रेस के लिए जगह बनने की शुरुआत हो जाएगी। कांग्रेस भी इस चुनाव में जोर आजमा रही है।
दिल्ली में रविवार, 30 नवंबर को नगर निगम की जिन 12 सीटों पर चुनाव हुए हैं उनमें मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की शालीमार बाग सीट भी है। इसके अलावा दक्षिण दिल्ली की सांसद कमलजीत सहरावत की सीट भी इसमें है। इन 12 सीटों में से भाजपा की नौ और आम आदमी पार्टी की तीन सीटें हैं। भाजपा को अपनी सभी सीटें हर हाल में बचानी है। वह जीती हुई सीट हारने का जोखिम नहीं ले सकती है। यह रेखा गुप्ता के नेतृत्व की परीक्षा है। इसी तरह आम आदमी पार्टी का प्रयास अपनी तीन सीटें वापस जीतने और भाजपा को कहीं न कहीं नुकसान पहुंचाने का है। यह दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की जगह आप को संभाल रही विधायक दल की नेता आतिशी और प्रदेश अध्यक्ष सौरव भारद्वाज की भी परीक्षा है। सो, भले एमसीडी में बहुमत पर कोई खास फर्क नहीं पड़े लेकिन नतीजों का असर दिल्ली की राजनीति पर जरूर पड़ेगा।


