जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा में बहुत भावुक करने वाला भाषण दिया। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी स्वीकार की और कहा कि उनके पास माफी मांगने के लिए शब्द नहीं हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे मौके पर वे केंद्र सरकार से जम्मू कश्मीर के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग नहीं करेंगे। उनके साथ अब दोहरी समस्या है। एक समस्या तो यह है कि जम्मू कश्मीर के पहलगाम में सैलानियों पर हमला हुआ और उनका धर्म पूछ कर उनकी हत्या की गई। यह हिंदुओं पर लक्षित हमला था। ऐसे में वे केंद्र सरकार और भाजपा से अलग नहीं दिखना चाहते हैं। उनकी मजबूरी है कि वे इस पूरे प्रकरण में केंद्र सरकार का समर्थन करें और उसके साथ खड़े रहें। विशेष राज्य के दर्जे की मांग भी इसी मजबूरी में छोड़नी पडी।
उनकी दूसरी समस्या यह है कि भाजपा से दूरी कैसे दिखाएं। जम्मू कश्मीर की राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए भाजपा से दूरी दिखाना भी जरूरी है क्योंकि वे अगर ज्यादा नजदीक जाते दिखेंगे तो फिर उनका आधार वोट नाराज होगा और यह महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी के लिए बहुत फायदे की बात होगी। पिछले कुछ दिनों से इस बात की चर्चा है कि वे भाजपा के नजदीक जा रहे हैं। वक्फ संशोधन बिल पेश करने वाले केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजिजू के साथ ट्यूलिप गार्डेन की तस्वीर वायरल होने के बाद उन पर और सवाल उठ रहे हैं। सो, उनकी स्थिति सांप छुछुंदर वाली है। वे इस समय केंद्र सरकार और भाजपा से दूरी नहीं दिखा सकते हैं और ज्यादा नजदीकी दिखाते हैं तो वोटों के नुकसान का खतरा है।