Climate Change

  • hot weather: मानसून में जुलाई का यह दिन 84 सालों में सबसे गर्म, सारे रिकॉर्ड टूटे…

    hot weather: मानसून का मौसम चल रहा है. देशभर में मानसून की रिमझिम बारिश हो रही है. लेकिन पिछले कुछ दिनों की बात करें तो मानसून सुस्त चल रहा था. पिछले कुछ दिनों से मानसून में बारिश होने की जगह धूप और गर्मी का मौसम हो रहा था. इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन को माना जा रहा है. (hot weather) दुनियाभर में भीषण गर्मी, बाढ़, बेमौसम बरसात जैसी घटनाएं आम हो चुकी हैं. इस बीच वैश्विक स्तर पर तापमान के परिवर्तन पर नजर रखने वाली एजेंसी ने झुलसा देने वाली गर्मी को लेकर आंकड़े जारी किए. पिछले हफ्ते अमेरिका समेत...

  • मानव त्रासदी की यह सदी!

    सैकड़ों लोगों का तीर्थयात्रा के दौरान मरना पैगम्बर की लीला है या मनुष्य की? सोच नहीं सकते कि हज की यात्रा में मक्का-मदीना में भी इतने लोग मरेंगे और ऊपर से सऊदी अरब बताएगा भी नहीं। उसकी बजाय अलग-अलग देशों के विदेश मंत्रालय हज यात्रा में मरे नागरिकों की संख्या बता रहे हैं! और त्रासद सत्य कि मौत की वजह भीषण गर्मी! वह भी उस देश में जो तेल की कमाई से लबालब है और अपने को विकसित बताता है लेकिन गर्मी से बचाव में समर्थ नहीं। पर सवाल यह भी है कि मौसम के मामले में पृथ्वी पर मनुष्य...

  • खाद्य सुरक्षा पर खतरा

    मौसम के बदलते पैटर्न का असर सभी तरह की फसलों पर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी आशंका पहले से थी, लेकिन तब मौसम के मुताबिक खेती को समायोजित करने के उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया। दालों के बाद अब गेहूं के दाम में भी तेजी से उछाल की खबर है। चर्चा यहां तक शुरू है गई है कि दालों की तरह भारत में गेहूं के आयात की स्थितियां भी लगातार बनी रह सकती हैं। दालों की उपज लगातार खपत से कम बनी हुई है, जबकि गेहूं के साथ अभी हाल तक यह बात नहीं थी। बल्कि...

  • पर पेट्रोल, कोयला ईधन क्या खत्म होगा?

    सीओपी28 जलवायु सम्मेलन में एक समझौता मंजूर हुआ  है। इसमें दुनिया को तेल, गैस और कोयले जैसे फॉसिल फ्यूल से दूर रहने का स्पष्ट आव्हान है। समझौते के समर्थकों का दावा है कि इससे पहली बार देश फॉसिल फ्यूल्स का उपयोग बंद करेंगे ताकि जलवायु परिवर्तन के भयावह नतीजों से पृथ्वी बच सके। संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में हुए इस सम्मेलन में दो हफ्ते जोरदार बहस हुई। अंत में समझौते पर सहमति बनी। जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों से जिन देशों को सबसे ज्यादा खतरा है, उन्होने और यूरोपीय नेताओं  ने समझौते में फॉसिल फ्यूल्स के उपयोग को पूर्णतः...

  • दुबई की सीओपी बैठक में होगा क्या?

    हम अपनी पृथ्वी का क्या बुरा हाल कर रहे हैं, इस बारे में खतरे की घंटी पेरिस में सन 2015की सीओपी (कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज) शिखर बैठत में बजा दी गई थी।तब पहली बार दुनिया ने तथाकथित विकास की वजह से जलवायु को हुई हानि की ओर ध्यान दिया। पेरिस सीओपी में अनुमान लगा था कि यदि दुनिया नहीं जागी  और सभी देशों ने आवश्यक नीतिगत फैसले नहीं किए तो सन् 2100 तक ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान औद्योगिकरण से पहले की तुलना में 3 डिग्री सेंटीग्रेड से भी अधिक बढ़ जाएगा।इसके बावजूद तब कोई ठोस कदम नहीं उठे। बस इतना...

  • करे कोई, भरे कोई

    हम अपनी पृथ्वी का क्या बुरा हाल कर रहे हैं, इस बारे में खतरे की घंटी पेरिस में सन 2015की सीओपी (कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज) शिखर बैठत में बजा दी गई थी।तब पहली बार दुनिया ने तथाकथित विकास की वजह से जलवायु को हुई हानि की ओर ध्यान दिया। पेरिस सीओपी में अनुमान लगा था कि यदि दुनिया नहीं जागी  और सभी देशों ने आवश्यक नीतिगत फैसले नहीं किए तो सन् 2100 तक ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान औद्योगिकरण से पहले की तुलना में 3 डिग्री सेंटीग्रेड से भी अधिक बढ़ जाएगा।इसके बावजूद तब कोई ठोस कदम नहीं उठे। बस इतना...

  • दो समझौतों से उम्मीद

    हम अपनी पृथ्वी का क्या बुरा हाल कर रहे हैं, इस बारे में खतरे की घंटी पेरिस में सन 2015की सीओपी (कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज) शिखर बैठत में बजा दी गई थी।तब पहली बार दुनिया ने तथाकथित विकास की वजह से जलवायु को हुई हानि की ओर ध्यान दिया। पेरिस सीओपी में अनुमान लगा था कि यदि दुनिया नहीं जागी  और सभी देशों ने आवश्यक नीतिगत फैसले नहीं किए तो सन् 2100 तक ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान औद्योगिकरण से पहले की तुलना में 3 डिग्री सेंटीग्रेड से भी अधिक बढ़ जाएगा।इसके बावजूद तब कोई ठोस कदम नहीं उठे। बस इतना...

  • फेफड़ों की बीमारी में अधिक जोखिम बढ़ा सकता है जलवायु परिवर्तन

    हम अपनी पृथ्वी का क्या बुरा हाल कर रहे हैं, इस बारे में खतरे की घंटी पेरिस में सन 2015की सीओपी (कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज) शिखर बैठत में बजा दी गई थी।तब पहली बार दुनिया ने तथाकथित विकास की वजह से जलवायु को हुई हानि की ओर ध्यान दिया। पेरिस सीओपी में अनुमान लगा था कि यदि दुनिया नहीं जागी  और सभी देशों ने आवश्यक नीतिगत फैसले नहीं किए तो सन् 2100 तक ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान औद्योगिकरण से पहले की तुलना में 3 डिग्री सेंटीग्रेड से भी अधिक बढ़ जाएगा।इसके बावजूद तब कोई ठोस कदम नहीं उठे। बस इतना...

  • अब यह नया खतरा

    हम अपनी पृथ्वी का क्या बुरा हाल कर रहे हैं, इस बारे में खतरे की घंटी पेरिस में सन 2015की सीओपी (कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज) शिखर बैठत में बजा दी गई थी।तब पहली बार दुनिया ने तथाकथित विकास की वजह से जलवायु को हुई हानि की ओर ध्यान दिया। पेरिस सीओपी में अनुमान लगा था कि यदि दुनिया नहीं जागी  और सभी देशों ने आवश्यक नीतिगत फैसले नहीं किए तो सन् 2100 तक ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान औद्योगिकरण से पहले की तुलना में 3 डिग्री सेंटीग्रेड से भी अधिक बढ़ जाएगा।इसके बावजूद तब कोई ठोस कदम नहीं उठे। बस इतना...

  • दुनिया की सुदंरतम जगहों में बरबादी!

    हम अपनी पृथ्वी का क्या बुरा हाल कर रहे हैं, इस बारे में खतरे की घंटी पेरिस में सन 2015की सीओपी (कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज) शिखर बैठत में बजा दी गई थी।तब पहली बार दुनिया ने तथाकथित विकास की वजह से जलवायु को हुई हानि की ओर ध्यान दिया। पेरिस सीओपी में अनुमान लगा था कि यदि दुनिया नहीं जागी  और सभी देशों ने आवश्यक नीतिगत फैसले नहीं किए तो सन् 2100 तक ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान औद्योगिकरण से पहले की तुलना में 3 डिग्री सेंटीग्रेड से भी अधिक बढ़ जाएगा।इसके बावजूद तब कोई ठोस कदम नहीं उठे। बस इतना...

  • पृथ्वी की गर्मी पर दो खलनायकों की गरमागरमी

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  • भारत का हरित विकास और ऊर्जा क्षेत्र में परिवर्तन पर फोक्स: मोदी

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  • हर जगह मौसम की मार

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  • जलवायु परिवर्तन भेद्यता सूचकांक में यूपी के बच्चे शीर्ष पर

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  • भारत के लिए मौसम होगा बड़ी चुनौती

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  • एवरेस्ट भी जलवायु परिवर्तन का मारा!

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  • अगर राजनीतिक साहस हो

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  • यूक्रेन-रूस युद्ध सहित वैश्विक चिंता का समाधान बुद्ध के उपदेशों में: पीएम मोदी

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  • जलवायु परिवर्तन के लिए धन उपलब्ध नहीं कराने पर पश्चिम देशों की खिंचाई

    हम अपनी पृथ्वी का क्या बुरा हाल कर रहे हैं, इस बारे में खतरे की घंटी पेरिस में सन 2015की सीओपी (कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज) शिखर बैठत में बजा दी गई थी।तब पहली बार दुनिया ने तथाकथित विकास की वजह से जलवायु को हुई हानि की ओर ध्यान दिया। पेरिस सीओपी में अनुमान लगा था कि यदि दुनिया नहीं जागी  और सभी देशों ने आवश्यक नीतिगत फैसले नहीं किए तो सन् 2100 तक ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान औद्योगिकरण से पहले की तुलना में 3 डिग्री सेंटीग्रेड से भी अधिक बढ़ जाएगा।इसके बावजूद तब कोई ठोस कदम नहीं उठे। बस इतना...

  • सचमुच, अभी नहीं तो कभी नहीं!

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