india GST : अब जीएसटी आंकड़ों को जीडीपी आकलन का पैमाना बनाया जा सकता है। सरकार में समझ बनी है कि जीएसटी की उगाही आर्थिक गतिविधियों का संकेत है। मगर जीएसटी के साथ एक पेच है, जिस बारे में कुछ नहीं कहा गया है।
खबर है कि जीडीपी की गणना की अगली शृंखला में जीएसटी की उगाही को एक पैमाना बनाया जा सकता है। नए पैमानों पर मापी गई जीडीपी की अगली शृंखला फरवरी 2026 से लागू होने वाली है।
सरकारी हलकों में समझ बनी है कि जीएसटी की उगाही निजी उपभोग को मापने का बेहतर पैमाना है। जीएसटी के आंकड़ों से सरकारी उपभोग का भी सही अंदाजा लगता है। जीएसटी की जितनी उगाही होती है, उसमें लगभग साढ़े नौ प्रतिशत हिस्सा सरकारी उपभोग का है।
उपभोग के सही आकलन से जीडीपी वृद्धि दर में अनुमान में सुधार होगा। समझ यह है कि उपभोग आर्थिक गतिविधियों का संकेत देता है। (india GST)
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मगर जीएसटी के साथ एक पेच है (india GST)
मगर जीएसटी के साथ एक पेच है, जिस बारे में अधिकारियों ने कुछ नहीं कहा है। पेच यह है कि महंगाई बढ़ने के साथ जीएसटी की उगाही बढ़ जाती है। इसलिए कि जीएसटी वस्तुओं या सेवाओं के दाम पर प्रतिशत के हिसाब से लगता है। (india GST)
मान लें कोई वस्तु या सेवा अगर 100 रुपये की है। उस पर जीएसटी की दर 18 फीसदी है, तो वह उपभोक्ता को 118 रुपये में मिलेगी। उसकी कीमत दस फीसदी बढ़ जाए, तो उसका दाम 110 रुपये हो जाएगा, और वह 129.80 रुपये में मिलेगी।
इस तरह 1.80 रुपये की सरकारी आमदनी बढ़ जाएगी। इसी तरह जीएसटी की दर बढ़ जाए, तो बिना उपभोग बढ़े सरकार को अधिक आय होगी। (india GST)
इन दोनों स्थितियों में आर्थिक गतिविधियों में कोई बदलाव नहीं आएगा। मगर बिगड़ते हालात के बीच बेहतर आर्थिक सूरत पेश करने के लिए बेसब्र सरकार के पास आखिर पैमानों को बदलने के अलावा रास्ता क्या है!
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ये खबर आ चुकी है कि यह योजना अपनी मौजूदा अवधि के साथ समाप्त हो जाएगी। 2021 में ये स्कीम शुरू हुई, तो जीडीपी में मैनुफैक्चरिंग का योगदान 15.4 प्रतिशत था, जो अब 14.3 फीसदी हो चुका है। ऐसे में सब कुछ पैमानों में हेरफेर पर ही आ टिका है, तो इसमें हैरत की कोई बात नहीं है।