विडंबना ही है कि वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बीच जिस रोज कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय भाव में भारी गिरावट आई और यह प्रति बैरल 60 डॉलर के करीब पहुंच गया, केंद्र ने उसी दिन उपभोक्ताओं पर नया बोझ डाला।
मोदी सरकार ने पेट्रोलियम उपभोक्ताओं पर नया बोझ डाला है। रसोई गैस की कीमत 50 प्रति सिलिंडर बढ़ा दी गई है। यह बढ़ोतरी उज्ज्वला योजना के तहत दिए जाने वाले सिलिंडरों पर भी लागू होगी। उधर पेट्रोल और डीजल पर दो-दो रुपये उत्पाद शुल्क बढ़ाया गया है। विडंबना ही है कि दुनिया में आर्थिक मंदी की गहराई आशंकाओं के बीच जिस रोज कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय भाव में भारी गिरावट दर्ज हुई और यह प्रति बैरल 60 डॉलर के करीब पहुंच गया, केंद्र ने उसी दिन ये बोझ भारतीय उपभोक्ताओं पर डाला। मगर यह अकेली विडंबना नहीं है।
याद कीजिए, इस वर्ष के आम बजट में वित्त मंत्री ने आय कर की सीमा बढ़ा कर 12 लाख रुपये करने का एलान किया था। मकसद उपभोक्ताओं के हाथ में अधिक पैसा छोड़ना बताया गया था, ताकि बाजार में गिर रही मांग को सहारा दिया जा सके। अब दूसरे रास्ते से सरकार ने एक बड़ी रकम आम उपभोक्ताओं से ले लेने की तरकीब लगाई है। ये कदम उस समय उठाए गए हैं, जब चुनावों के समय भाजपा समेत तमाम पार्टियां ईंधन सब्सिडी बढ़ाने की होड़ में जुटी दिखती हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि चूंकि तुरंत कोई चुनाव तय नहीं है, तो सरकार दाम बढ़ा लेने को प्रोत्साहित हुई है। लेकिन ये कदम उठाए क्यों गए हैं? क्या इनका संबंध अमेरिका से चल रही द्विपक्षीय व्यापार वार्ता से है?
खबर है कि अमेरिकी मांगों के अनुरूप सरकार आयात शुल्क में अरबों डॉलर की छूट देने को तैयार हुई है। इसका बोझ सरकारी खजाने पर पड़ेगा। तो क्या उसकी भरपाई परोक्ष करों के जरिए आम भारतीयों से की जा रही है? जाहिर है, इन प्रश्नों पर सरकार कोई सफाई नहीं देगी। जो वजह बतानी है, वो पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी बता चुके हैँ। कहा है कि पेट्रोलियम कंपनियों को 43,000 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा था, जिसकी भरपाई के लिए ये फैसला हुआ है। मगर उत्पाद शुल्क क्यों बढ़ाया गया? वो रकम तो कंपनियों के पास नहीं जाएगी? दरअसल, यह संकेत है कि आने वाले दिनों में कैसी बोझ आम जन पर पड़ने वाली है।