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19-07-2025 Vol 19

मानवीय करुणा और विडंबना का चित्रकार

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कृष्ण खन्ना ने अपनी कला को इवेंट नहीं बनाया, तमाशा नहीं बनाया। कृष्ण खन्ना बनावटी आधुनिकता के आवरण में लिपटे चित्रकार नहीं थे और यह बात उनके बॉडी लैंग्वेज में भी दिखाई देती है।… अगर चित्रकला की दुनिया में देखा जाए तो कृष्णा खन्ना अपने तमाम साथी कलाकारों से नितांत अलग हैं, उनके यहां आधुनिकता का शोर नहीं है, भय नहीं है, प्रदर्शन नहीं है कोई मुलम्मा नहीं है। शायद यही कारण है कि पांच जुलाई 1925 को पाकिस्तान के लायलपुर में जन्मे कृष्ण खन्ना ने जब अपने जीवन के सौ बसंत पूरे किए तो समकालीन कला की सभी दिग्गज हस्तियां उन्हें अभिनंदित करने के लिए उपस्थित हुईं थीं।

चित्रकार कृष्ण खन्ना के सौ वर्ष पूरे करने पर

अरविंद कुमार

हम लोग अक्सर कला और साहित्य की कृतियों को समीक्षक की नजर से देखते हैं और इस आधार पर उसका आकलन करते हैं, मूल्यांकन करते हैं। हम लोग उन कृतियों को पाठक और दर्शकों की दृष्टि से कम देखते हैं और उसके आधार पर उसका मूल्यांकन लगभग नहीं करते हैं।  लेकिन कुछ कलाकृतियां और रचनाएं ऐसी होती हैं जो पाठक और समीक्षक दोनों की दृष्टियों पर खरा उतरती हैं, उन दोनों के मर्म को छूती हैं। हिंदी में प्रेमचंद इसके सर्वोत्तम उदाहरण हैं तो बंगला में टैगोर और उर्दू में ग़ालिब। अगर भारतीय कला की दुनिया में देखा जाए तो समीक्षक और दर्शकों की नजर ने राजा रवि वर्मा, टैगोर, नंदलाल बसु, यामिनी रॉय, विनोद बिहारी मुखर्जी जैसे अनेक कलाकारों को आत्मसात किया है।

जब से भारतीय समाज में आधुनिकता का प्रवेश हुआ है, साहित्य और कला भी उससे अछूती नहीं रही है। लेकिन उस आधुनिकता को साहित्य और कला में उतारते समय कुछ जटिलताएं और चुनौतियां भी पेश हुईं। एक समय पूरी दुनिया में आधुनिकता का बहुत ही बोलबाला रहा, आधुनिकता ने लेखकों, कलाकारों को प्रभावित ही नहीं किया, बल्कि आक्रांत भी किया है। चित्रकला में भी इसे देखा जा सकता है। लेकिन अब जब आधुनिकता को फिर से परिभाषित किया जा रहा हो, उसकी मीमांसा की जा रही है और आलोचनात्मक दृष्टि से उसका मूल्यांकन किया जा रहा हो तो उस आधुनिकता की सीमाएं भी नजर आ रही हैं। इसके बीच कुछ ऐसे कलाकार हैं जो आधुनिक होते हुए भी एक तरह की परंपरा से भी जुड़े हुए हैं, उनकी आधुनिकता में बाह्य आवरण का आतंक कम है।

अगर चित्रकला की दुनिया में देखा जाए तो कृष्णा खन्ना अपने तमाम साथी कलाकारों से नितांत अलग हैं, उनके यहां आधुनिकता का शोर नहीं है, भय नहीं है, प्रदर्शन नहीं है कोई मुलम्मा नहीं है। शायद यही कारण है कि पांच जुलाई 1925 को पाकिस्तान के लायलपुर में जन्मे कृष्ण खन्ना ने जब अपने जीवन के सौ बसंत पूरे किए तो समकालीन कला की सभी दिग्गज हस्तियां उन्हें अभिनंदित करने के लिए उपस्थित हुईं थीं। गुलाम मोहम्मद शेख से लेकर अर्पिता सिंह, जतिन दास, मनु पारेख, अर्पणा कौर, रामेश्वर ब्रूटा, वसुंधरा तिवारी तक तो कला समीक्षकों में गीता कपूर, गायत्री सिन्हा से लेकर प्रयाग शुक्ल, विनोद भारद्वाज से लेकर ज्योतिष जोशी तक। कृष्ण खन्ना देश के दूसरे ऐसे चित्रकार हैं, जिन्होंने सौ वर्ष पूरे किए हैं। करीब दो दशक पहले भवेश सान्याल भी 102 वर्ष गुजार कर इस दुनिया से अलविदा हुए थे और उनके एक सौ साल होने पर भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया था।

कायदे से कृष्ण खन्ना पर भी एक डाक टिकट जारी होना चाहिए था क्योंकि वह इस समय देश के सबसे बड़े और सबसे उम्र दराज चित्रकार हैं, जिन्होंने अपने जीवन के 80 वर्ष रंगों, ब्रशों और कैनवास को समर्पित किया है। वह गहरी मानवीय ऊष्मा, विनम्रता और करुणा से भरे हुए आर्टिस्ट हैं। लेकिन शायद अब निजाम बदल जाने के कारण सत्ता को ऐसे कलाकारों की पहचान नहीं है अन्यथा उन पर भी एक डाक टिकट जारी होता। सत्ता आज भले ही ऐसे कलाकारों को न पूछे लेकिन ऐसे कलाकार लोगों की स्मृतियों में महफूज होते हैं। उनके चाहने वाले की संख्या बहुत बड़ी है और इसका एक सबूत नौ जुलाई को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में दिखाई पड़ा जब रजा फाउंडेशन की ओर से उनका जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाया गया और उसमें काफी लोग मौजूद थे। यह प्यार और सम्मान कला की दुनिया में विरल है। वह क्षण भी दुर्लभ था जब कृष्ण खन्ना खुद मौजूद थे और लोगों ने उन्हें घेर रखा था। प्रसिद्ध कवि, आलोचक, संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने कहा भी कि यह संभवत पहला अवसर है जब इतनी बड़ी संख्या में लोग किसी कलाकार का जन्मदिन मनाने इकट्ठा हुए हैं और उसके अवदान को लेकर इतनी गंभीर और विश्लेषणात्मक चर्चा भी हुई।

इस कार्यक्रम की एक खास विशेषता यह थी कि सात में से पांच वक्ताएं महिला थीं। गीता कपूर, गायत्री सिन्हा से लेकर रुबीना करोड़े, पारुल देव मुखर्जी और नैंसी अदजानिया शामिल हैं। गायत्री सिन्हा का तो कृष्ण खन्ना से पारिवारिक मित्रता रही है, जबकि गीता कपूर 1962 में न्यूयार्क में कृष्ण खन्ना से मिली थीं। सभी वक्ताओं ने कृष्ण खन्ना के जीवन व्यक्तित्व और कला पर गहन विचार किया, उनके चित्रों की व्याख्या की एवम उसकी विशेषताओं के बारे में बारीकी से अच्छा विशेषण किया। सभी वक्ताओं ने अपनी बात उनके चित्रों को सामने पेश कर कही और प्रेजेंटेशन किया। करीब सभी का यह मत था कि वे एक सबाल्टर्न चित्रकार हैं। प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप के किसी अन्य चित्रकार के साथ यह पदबंध नहीं सुनाई पड़ता। सबका मानना था कि उनकी कला में विभाजन के दर्द से लेकर ढाबे में बैठे साधारण व्यक्ति का दर्द छिपा है।

विभाजन पर बने उनके चित्रों को देखकर मंटो, भीष्म साहनी, कृष्णा सोबती की विभाजन पर लिखी कहानियां बरबस याद आ गईं। प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप के ये ये एकमात्र कलाकार थे, जो विभाजन का दर्द झेलकर पाकिस्तान से भारत आए थे। दूसरी गौरतलब बात यह थी कि उनके साथी कलाकार बाद में विदेश गए, जबकि कृष्ण खन्ना बचपन में ही लंदन से पढ़ कर लाहौर लौटे और फिर वहां कालेज से बीए किया। उनके भीतर आधुनिकता की खिड़की पहले खुल चुकी थी और वह एक सजग कलाकार थे। उनकी निगाह आसपास फैले जीवन पर थी।

वे दरअसल जीवन के उल्लास, अवसाद और दुख के कलाकार थे। एक ऐसा जीवन, जिसमें बैंड बाजे वाले, फल वाले, ढाबे वाले और निर्माण मजदूर थे, ट्रक वाले भी शामिल थे और गढ़ी स्टूडियो के आसपास का संसार भी शामिल है, जिसमें कौवे भी हैं। उन्होंने अपनी आंखों से आजाद भारत की बनती हुई दिल्ली को देखा है। गांधी जी की हत्या से विचलित और रोती हुई दिल्ली को देखा है तो ताकत और पैसे से बनते हुए इस महानगर को भी देखा। शायद यही कारण है कि वे समाज और जीवन की इस विडंबना को बहुत अच्छी तरह समझ गए थे। उन्होंने खुद को अपनी कला को बाजार के चकाचौंध से दूर रखा, जबकि हुसैन ने उस मीडिया बाजार का इस्तेमाल भी किया। उन्होंने फिल्मी लटके झटके भी अपनाए। माधुरी दीक्षित, तब्बू को लेकर भी सामने आए। कृष्ण खन्ना ने अपनी कला को इवेंट नहीं बनाया, तमाशा नहीं बनाया। कृष्ण खन्ना बनावटी आधुनिकता के आवरण में लिपटे चित्रकार नहीं थे और यह बात उनके बॉडी लैंग्वेज में भी दिखाई देती है।

Naya India

Naya India, A Hindi newspaper in India, was first printed on 16th May 2010. The beginning was independent – and produly continues to be- with no allegiance to any political party or corporate house. Started by Hari Shankar Vyas, a pioneering Journalist with more that 30 years experience, NAYA INDIA abides to the core principle of free and nonpartisan Journalism.

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