दतिया में विकास की इबारत ए बी सी डी से उन्होंने ही शुरू की। नहीं तो जब हम दतिया में होते थे और कोई रिश्तेदार कई सालों बाद आता था तो कहता था अभी भी वैसा ही है!…कोई दो राय नहीं कि दतिया में आजादी के बाद जो भी विकास हुआ है उसका पूरा श्रेय नरोत्तम मिश्रा को जाता है। दतिया गले का हार कहलाता था। अपनी राजशाही ठसक के कारण। …लोग एक दूसरे की मदद करने वाले थे और बिना महत्वाकांक्षा के।
सन् 1980 की बात है। अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने थे। हमारे गृहनगर दतिया का एक सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल उनसे मिलने भोपाल गया था। हम शायद उसके सबसे युवा सदस्यों में से थे। हमने मुख्यमंत्री से कहा कि दतिया मध्य प्रदेश का सबसे पिछड़ा और उपेक्षित जिला है। शब्दों के प्रति बहुत सजग रहने वाले अर्जुन सिंह जी ने कहा कि पिछड़ा मैं मान सकता हूं। मगर मेरे आने के बाद उपेक्षित नहीं!
शब्द अच्छे थे। मगर विकास के लिए प्रयास करना होता हैं। मुख्यमंत्री और वहां आईं प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी भी विकास का आश्वासन देकर गईं। मगर उसके लिए फालोअप करना होता है। भारत में 75 साल में जो विकास हुआ है वह उन जगहों पर हुआ है जहां के जन प्रतिनिधियों को विकास का मतलब मालूम था। केन्द्र और राज्य सरकार के हर बजट से पहले सांसद और विधायक अपने क्षेत्रों के केस बनाने में लग जाते हैं। जो जितनी मेहनत कर लेता है वह अपने क्षेत्र के लिए उतना ले जाता है। और जहां के विधायक और सांसद कुछ नहीं करते हैं तो चाहे इन्दिरा गांधी हों या अर्जुन सिंह या और कोई मुख्यमंत्री कुछ नहीं कर सकते हैं।
बात दतिया की कर रहे थे। बुंदेलखंड की सबसे पुरानी रियासत और इस कहावत के साथ पूरे देश में मशहूर कि “ दतिया गले का हार! “ मगर विकास के परिप्रेक्ष्य में तो इस पूरे इलाके ग्वालियर चंबल संभाग क्षेत्र में एक ही आदमी का नाम आता है माधवराव सिंधिया का। उन्हें विकास पुरुष कहा जाता है। उन्होंने जितना ग्वालियर का विकास किया उतना देश के कम नेता अपने क्षेत्र में कर पाए। उन पर बहुत लिखा है और अभी लिखने को बहुत है मगर फिलहाल कुछ बातें बताकर दतिया और बुंदेलखंड पर वापस आते हैं। वह बातें हैं अपने क्षेत्र के विकास के लिए किसी भी सीमा को न मानना।
एक, ग्वालियर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से 300 किलीमीटर से ज्यादा दूर है। मगर उसे भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल करा लिया था। अगली बात कल्पना से परे। मजाक में मगर अपने क्षेत्र के लिए कुछ भी कर सकते हैं कि इच्छा शक्ति का बड़ा उदाहरण। राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में फेरबदल होना था। माधवराव रेल मंत्री थे। देश की पहली शताब्दी चला चुके थे। दिल्ली ग्वालियर के बीच। फिर वही भोपाल तक ले गए। च्रर्चा हुई कि कोई और बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी। पत्रकार तो लाते ही दूर की कौड़ी हैं। किसी ने कहा कि आपको जहाजरानी मंत्रालय मिल रहा है। क्या करेंगे। सिंधिया ने कहा कि ग्वालियर में बंदरगाह बनाएंगे!
ग्वालियर में बंदरगाह? महाराज वहां तो समन्दर है नहीं। तो जवाब आया वह भी ले आएंगे। यह उसी दिमागी मजबूती का जवाब है जैसा नेपोलियन बोनापोर्ट ने कहा था कहां है आल्पस? वह विशाल पहाड़ जहां उसकी सेना रुक गई थी। और नेपोलियन ने कहां है कहकर अपना घोड़ा चढ़ा दिया था। यहीं से यह कहावत बनी कि नेपोलियन के शब्दकोष में असंभव शब्द नहीं है।
एक आखिर बात और! अभी ऊपर देश की पहली शताब्दी का जिक्र किया। ग्वालियर के लिए चलाई। उस समय 1985 में बने थे मंत्री। ताज एक्सप्रेस दिल्ली से आगरा तक आती थी। सुबह आकर शाम को वापस चली जाती थी। सिंधिया ने कहा दिन भर आगरा में खड़ी रहती है। इसे ग्वालियर तक ले आओ। आगरा में हंगामा हो गया। ताज के नाम की ट्रेन, ग्वालियर क्यों जाएगी। आन्दोलन आगरा बंद! आगरा की जनभावनाएं पूरे उफान पर। कहा ताज भी ले जाओ!
माधवराव सिंधिया से पूछा कि वे ऐसा कह रहे हैं। तो धीरे से बोले मेरे बस में होता तो ले भी आता!
बस! समझ में आ गया होगा कि विकास का नशा काम करने वाले की स्वप्नदर्शिता को कहां तक ले जा सकता है।
अब फिर वापस दतिया पर! जहां इस समय भारी जश्न का माहौल है। जिसे कहते हैं कि ख्वाबो ख्याल में नहीं सोचा था। बुंदेलखंड का पहला एयरपोर्ट वहां बन गया। बुंदेलखंड जहां का सबसे बड़ा शहर झांसी है और जो प्रस्तावित बुंदेलखंड राज्य का जिसमें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों के इलाके शामिल होंगे की संभावित राजधानी के तौर पर देखा जा रहा है उसे छोड़कर दतिया को एयरपोर्ट मिलना बड़ी बात मानी जा रही है।
हमने बात शुरू की थी 1980 से। मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह से अपने संवाद से। उस समय दतिया से कांग्रेस के ही विधायक थे। लेकिन काम न करने के लिए विख्यात। यह सिलसिला पहले से था और बाद में भी बहुत लंबा चला। पूरे बुंदेलखंड की यही दुर्दशा है। राहुल गांधी जब 2007 में यहां के दौरे पर आए थे। हम साथ थे कहा कि यहां के लोग पत्थरों में खेती करते हैं। खेती ही एक मात्र रोजगार का साधन और वह भी बिना सिंचाई सुविधाओं के। जमीन पथरीली। विकास के नाम पर यहां देश में सबसे कम काम हुआ है।
मगर अब मध्यप्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के दतिया में एयरपोर्ट के बन जाने और हवाई जहाज उड़ने और उतरने के बाद यहां विकास की नई संभावनाएं बनने लगी हैं। पीताम्बारा पीठ केवल देश में ही नहीं विदेश में भी प्रसिद्ध है। श्रद्धालुओं के लिए यह बड़ी सुविधा हो गई है।
निश्चित ही तौर पर इस का श्रेय यहां के पूर्व विधायक और मध्य प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को जाता है। वे पिछला चुनाव जरूर हार गए उसकी अलग कहानी है मगर इस बात में कोई दो राय नहीं कि दतिया में आजादी के बाद जो भी विकास हुआ है उसका पूरा श्रेय नरोत्तम मिश्रा को जाता है। दतिया गले का हार कहलाता था। अपनी राजशाही ठसक के कारण। गामा यहां हुए। दशहरा बहुत प्रसिद्ध था। लोग एक दूसरे की मदद करने वाले थे और बिना महत्वाकांक्षा के।
नेता भी ऐसे ही हुए। बस विधायक बना दो। सांसद बना दो। इतनी ही सोच होती थी। हमारे विधायक मित्र हमारे पास जयपुर, जम्मू कश्मीर, दिल्ली आते रहे। दोनों पार्टियों के। दो ही हैं वहां कांग्रेस, भाजपा। हमने कई नेताओं से मिलवाया। विकास पर बात करवाई। मगर विकास, काम करना कभी समझ में आया ही नहीं। विधायक सांसद हो गए बहुत है।
यह क्रम टूटा 2008 में। पास के विधानसभा क्षेत्र डबरा से चुनाव लड़ कर जीतते रहे नरोत्तम मिश्रा चुनाव लड़ने दतिया आ गए। उनकी सीट परिसीमन में रिजर्व घोषित हो गई थी। राजनीतिक रूप से दतिया और मध्य प्रदेश में उनके विरोधी और समर्थक दोनों बहुत हैं। लेकिन जब विकास की बात आती है तो दतिया के लोग यह कहने पर मजबूर होते हैं कि उससे पहले उन्होंने विकास देखा ही नहीं था।
सही बात है। एक दिल्ली मुम्बई मेन रेल्वे लाइन है जो वहां से होकर गुजरी है। उसी पर एकाध ट्रेन को और रुकवाकर हम लोग अपने स्टूडेंट टाइम में सफलता समझ लेते थे। शहर से रेल्वे स्टेशन जाने के लिए रेल्वे फाटक पर देर देर तक तांगे खड़े रहते थे। ओवर ब्रिज ही बड़ी बात लगता था। लेकिन कुछ सालों पहले दतिया में मेडिकल कालेज बन गया। इससे पहले बुंदेलखंड में एक ही और मेडिकल कालेज है झांसी में। दतिया में मेडिकल कालेज बनना भी वाकई कल्पना के बाहर की बात थी।
नरोत्तम के पिछले विधानसभा चुनाव के हार के अलग कारण हैं। कभी लिखेंगे। मगर दतिया में विकास की इबारत ए बी सी डी से उन्होंने ही शुरू की। नहीं तो जब हम दतिया में होते थे और कोई रिश्तेदार कई सालों बाद आता था तो कहता था अभी भी वैसा ही है! तो अब हवाई जहाज वाला हो गया है। झांसी के नेताओं में सभी पार्टियों के वहां तो चार पार्टी हैं, भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस में गहरी मायूसी है। मगर झांसी, दतिया इतने नजदीक हैं कि वे इसे अपना ही एयरपोर्ट मान रहे हैं। अच्छी बात है। अगर बन गया बुंदेलखंड अलग राज्य तो सबका वैसे ही होगा।