Wednesday

30-04-2025 Vol 19

दावों-प्रतिदावों के बीच मतदान…!

भोपाल। इन दिनों देश पूरी तरह चुनावी रंग में रंगा हुआ है, देश की आधी लोकसभा सीटों के लिए चुनाव निपट चुका है और अगले तीन सप्ताह में शेष सीटों पर भी मतदान हो जाएगा, इस बार का यह माहौल इसलिए भी अजीब नजर आ रहा है क्योंकि चुनाव आयोग ने इसे काफी लम्बा कर दिया है, सात चरणों में 513 सीटों के चुनाव होना है और अभी चार दौर सम्पन्न हुए है, तीन दौर बाकी है, किंतु इस बार यह अलग है कि मतदान की प्रक्रिया खत्म होने के बाद परिणामों के लिए ज्यादा इंतजार नही करना पड़ेगा। आखरी दौर के बाद एक-दो दिनों में ही परिणाम सामने आ जाएगें, किंतु जिन मतदाताओं ने पहले या दूसरे चरण में मतदान किया, उनके लिए जरूर यह इंतजार भारी पड़ रहा है, ऐसा लगता है कि इस बार चुनाव आयोग ने आम वोटर के बजाए राजनीतिक दलों की सुविधाओं का ज्यादा ध्यान रखा और ऊपर से यह कहा जा रहा है कि चुनाव आयोग स्वतंत्र है और उस पर सरकार का कोई नियंत्रण नही है।

अरे…., राजनेतागणों भारत का आम मतदाता अब उतना भोला, मासूम और अनजान नही रहा, जितना आम लोग समझ रहे है, वह वास्तव में अब हर राजनीतिक उठापटक को ध्यान से सभी दृष्टिकोण से देखता-समझता है और उस पर चिंतन भी करता है, इसी कारण अब आशा के विपरीत चुनाव परिणाम भी आने लगे है और यही स्थिति रही तो कोई आश्चर्य नही होगा कि मतदाता चुनाव की पूरी प्रक्रिया को ही बदल दे और सत्तातुर लोग हाथ मलते रह जाऐ? वैसे यदि यही सब चलता रहा तो वह दिन ज्यादा दूर नही है, जब मतदाता सब पर भारी पड़ सकता है।
यह माना कि हमारा भारत पूरे विश्व के देशों के लिए गणतंत्र या प्रजातंत्र का गुरू या जनक माना जाता है, और कई देशों ने हमसे बहुत कुछ सीखा भी है।

किंतु अब स्वयं भारतवासी यह महसूस करने लगे है कि पचहत्तर सालों से चली आ रही इस चुनाव प्रणाली में कई दोष समाहित हो चुके है और देश के भविष्य के हित में अब इस प्रक्रिया में बदलाव जरूरी है, अब एक बार सत्ता पा लेने वाला शख्स ‘कुर्सी’ को अपनी ‘बपौती’ मानकर उसी पर विराजे रहना चाहता है, जवाहर, इंदिरा के बाद अब मौजूदा स्थिति में भी इसी के दाव खेले जा रहे है, आज के माहौल में आए दिन यही सब देखने को मिल रहा है, लेकिन मौजूदा राजनेताओं को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ‘प्रजातंत्र’ में ‘तंत्र’, ‘प्रजा’ के बाद आता है और इस प्रणाली में ‘प्रजा’ ही सर्वोच्च तथा प्रमुख है, राजनीति या राजनेता नही और साथ ही देश का आम वोटर भी पहले आम चुनाव (1951) का वोटर नही रहा वह भी काफी जागरूक व समझदार चिंतक हो गया है, इसलिए अब राजनेताओं को भी अपने आपको समय व परिस्थिति के अनुरूप ढालना होगा, वर्ना विश्व में कई देशों में इस स्थिति के उदाहरण सामने है, प्रजा ही सर्वेसर्वा होती है और वही अपने भविष्य का फैसला करती है, इसलिए आज की राजनीति को भी समय व स्थिति के अनुरूप चलना पड़ेगा।

यदि इन्ही सब बातों को ध्यान में रखकर आज की राजनीति आगे बढ़ती है तो वह सफलता की सही डगर पर चल सकती है, वर्ना अब ‘पटरी’ से नीचे गाड़ी को उतरने में देर नही लगती, इस बात का हर किसी को ध्यान रखना जरूरी है।

ओमप्रकाश मेहता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *