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नया भारत किसी दबाव में नहीं आता

भारत ने एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर अपनी विदेश नीति की स्वतंत्रता की घोषणा भी बहुत स्पष्ट शब्दों में कर दी है। रूस के साथ कारोबार को लेकर अमेरिका की ओर से दी गई चेतावनी के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘किसी भी देश के साथ हमारे संबंध उसकी योग्यता पर आधारित हैं और उन्हें किसी तीसरे देश के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। जहां तक भारत और रूस संबंधों का सवाल है, हमारे बीच एक स्थिर और समय की कसौटी पर आजमाई हुई साझेदारी है’

भारत ने दुनिया को यह संदेश दे दिया है कि हमारी आर्थिक, वैदेशिक या सामरिक नीतियां किसी दबाव में तय नहीं होती हैं। यह नया भारत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बन रहा यह नया भारत राष्ट्रीय हितों और देश के 140 करोड़ लोगों के भविष्य को ध्यान में रख कर अपनी नीतियां तय करता है। चाहे पहलगाम कांड के बाद हुए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के बड़े हमले का भय दिखा कर दबाव डालने का मामला हो या रूस के साथ कारोबार की वजह से भारी टैरिफ और जुर्माना लगाने की धमकी हो या व्यापार संधि के लिए दबाव बनाने के मकसद से टैरिफ लगाने का मामला हो, भारत किसी दबाव में नहीं आता है। इन तीनों मामलों में भारत पर दबाव डालने का प्रयास हुआ लेकिन भारत ने राष्ट्रहित को सर्वोपरि रख कर निर्णय किया।

गौरतलब है कि पिछले दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि रूस के साथ कारोबार करने की वजह से भारत के ऊपर जुर्माना लगाया जाएगा। उन्होंने इससे पहले भी कहा था कि रूस से कारोबार करने वाले देशों पर एक सौ फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा। लेकिन भारत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। भारत ने तब भी यही कहा कि कच्चे तेल की खरीद का भारत का निर्णय अपनी ऊर्जा जरुरतों के आधार पर होता है और अब भी भारत ने यही बात कही है। इस बीच सूत्रों के हवाले से यह खबर आई कि भारत की कंपनियों ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है। इस खबर के बाद भारत विरोधियों ने, दुर्भाग्य से उसमें कई विपक्षी पार्टियां भी शामिल हैं, कहना शुरू कर दिया कि अमेरिका के डर से भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी तंज किया कि ‘सुना है कि भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है’। लेकिन यह बात भी गलत साबित हुई है।

भारत सरकार के सूत्रों ने बताया है कि रूस से तेल खरीदना बंद नहीं किया गया है। यह भी कहा गया है कि भारतीय कंपनियां अब भी रूस से कच्चा तेल खरीद रही हैं। यह ध्यान रखने की बात है कि रूस से तेल खरीदने पर कोई पाबंदी नहीं है। यूक्रेन के साथ रूस का युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका, यूरोप और ब्रिटेन ने रूस के ऊपर कई पाबंदियां लगाईं लेकिन तेल की बिक्री पर पाबंदी नहीं लगाई क्योंकि उससे यूरोप और ब्रिटेन में ही हाहाकार मच जाता। बहरहाल, भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि रूस से तेल खरीदने का निर्णय अपनी ऊर्जा जरूरतों से निर्धारित होगा, किसी बाहरी दबाव से नहीं। इसका अर्थ है कि अगर भारत को आवश्यकता है और रूस अंतरराष्ट्रीय बाजार से कम दाम पर कच्चा तेल बेच रहा है तो भारत उसे खरीदेगा। टैरिफ या जुर्माना लगाने की धमकी से भारत को नहीं रोका जा सकता है।

भारत ने एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर अपनी विदेश नीति की स्वतंत्रता की घोषणा भी बहुत स्पष्ट शब्दों में कर दी है। रूस के साथ कारोबार को लेकर अमेरिका की ओर से दी गई चेतावनी के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘किसी भी देश के साथ हमारे संबंध उसकी योग्यता पर आधारित हैं और उन्हें किसी तीसरे देश के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। जहां तक भारत और रूस संबंधों का सवाल है, हमारे बीच एक स्थिर और समय की कसौटी पर आजमाई हुई साझेदारी है’। भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि रूस से तेल खरीदने का भारत का निर्णय किसी  दबाव से प्रभावित नहीं होगा। इस संदर्भ में मीडिया की ओर से पूछे गए सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय ने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा ‘आप हमारी ऊर्जा जरूरतों को लेकर समग्र दृष्टिकोण से परिचित हैं। हम बाजार में उपलब्ध विकल्पों और वैश्विक स्थिति को ध्यान में रख कर निर्णय करते हैं’। भारत की यही नीति दूसरे मामलों में भी है। दुनिया के देशों के साथ मुक्त व्यापार संधि में भी नया भारत सबसे पहले देश और अपने नागरिकों के हितों को रखता है।

पता नहीं विपक्ष के नेता और विशेष कर कांग्रेस पार्टी के नेता  राहुल गांधी इस बात को क्यों नहीं समझते हैं। हर बार गलत साबित होने के बावजूद वे एक ही बात दोहराते हैं। तीन दिन के ऑपरेशन सिंदूर के बाद हुए सीजफायर को लेकर वे बार बार कहते रहे हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्यापार रोकने या टैरिफ लगाने का दबाव डाल कर भारत को सीजफायर के लिए मजबूर किया। यह बात तो पूरी तरह से गलत साबित हो गई क्योंकि अगर यह बात सही होती तो अमेरिका के साथ भारत की व्यापार संधि नहीं अटकती और भारत के ऊपर 25 फीसदी का टैरिफ नहीं लगता। अगर भारत ने टैरिफ के दबाव में सीजफायर किया होता तो भारत के ऊपर टैरिफ लगता ही नहीं। लेकिन भारत के ऊपर 25 फीसदी टैरिफ लगा है और जुर्माने की धमकी मिली है इसका मतलब है कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान किसी भी बाहरी दबाव में आने से इनकार कर दिया था।   प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने इसका जिक्र भी लोकसभा में किया। पहलगाम कांड और ऑपरेशन सिंदूर पर लोकसभा में हुई चर्चा का जवाब देते हुए   प्रधानमंत्री ने कहा, ‘अमेरिका के उप राष्ट्रपति लगातार फोन करते रहे लेकिन बात नहीं हो पाई क्योंकि मैं भारतीय सेना के साथ मीटिंग में थे। बाद में मैंने उप राष्ट्रपति को फोन किया तो उन्होंने कहा कि पाकिस्तान बहुत बड़ा हमला करने की तैयारी कर रहा है। हमने कहा कि उसके ऊपर ज्यादा बड़ा हमला होगा’। इसके बाद पाकिस्तान के खिलाफ वह कार्रवाई हुई, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की होगी। चंद घंटों के अंदर वह सीजफार के लिए गिड़गिड़ाने लगा। यह आज के नए भारत की ताकत है और नए भारत का तेवर है।

इस तरह रूस के साथ कारोबार और पाकिस्तान के साथ सीजफायर के मामले में स्पष्ट हो गया है कि भारत ने किसी दबाव में निर्णय नहीं किया। अब तीसरा मामला अमेरिका के साथ व्यापार संधि का है। यह तय मानना चाहिए कि भारत इस मामले में भी अपने राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रख कर निर्णय करेगा। भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा के तुरंत बाद भारत सरकार के वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय की ओर से कहा गया कि, ‘भारत अपने किसानों, व्यापारियों और एमएसएमई सेक्टर के हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है’। इसका मतलब है कि कोई भी समझौता ऐसा नहीं होगा, जिसमें इन समूहों के हितों को नुकसान पहुंचे। बाद में विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया कि ‘सरकार राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए सभी जरूरी फैसले करेगी, जैसे कि उसने ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौते में किया था’। यह ध्यान रखने की जरुरत है कि भारत और अमेरिका के बीच रक्षा को लेकर एक मजबूत साझीदारी है, जो दोनों के साझा हितों पर आधारित है। भारत सरकार ने अमेरिका के साथ संबंधों को लेकर भी स्पष्ट किया है कि ‘भारत और अमेरिका के बीच एक व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है, जो साझा हितों, लोकतांत्रिक मूल्यों और मजबूत जनसंपर्क पर आधारित है। यह रिश्ता कई बदलावों और चुनौतियों के बावजूद मजबूत बना रहा है। हम अपने साझा एजेंडे पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं और हमें विश्वास है कि यह संबंध आगे भी प्रगति करेगा’। यह भारत की ओर से उत्तम कूटनीति का प्रदर्शन है।

भारत और अमेरिका के संबंध समय की कसौटी पर खरा उतरे हैं और आगे भी दोनों देश अपने साझा हितों के आधार पर इस संबंध को बनाए रखेंगे। इसी सिद्धांत के आधार पर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संधि होगी। संधि ऐसी होगी, जिसमें दोनों का फायदा हो। ध्यान रहे कूटनीति बयानबाजी से या टेलीविजन की बहसों से या नारेबाजी से नहीं चलती है। उसमें सबसे महत्वपूर्ण तत्व धैर्य का होता है।   प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी के निर्देश पर अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता कर रही टीम ने धैर्य बनाए रखा है। बाहरी दबावों और बयानों से अप्रभावित हुए बगैर भारत के हितों को आगे रखा है। किसानों, व्यापारियों और एमएसएमई सेक्टर के हितों की रक्षा के लिए भारत की टीम व्यापार संधि की शर्तों पर शांति के साथ परंतु मजबूती से मोलभाव कर रही है। जहां तक कृषि और डेयरी सेक्टर का मामला है तो भारत अपनी जगह से एक इंच भी पीछे नहीं हटेगा। ध्यान रहे दुग्ध उत्पादों का मामला भारत की सांस्कृतिक व धार्मिक संवेदनशीलता से जुड़ा हुआ है। भारत किसी भी परिस्थिति में मांसाहारी दुग्ध उत्पाद अपने देश में बेचने की अनुमति नहीं दे सकता है। वैसे भी इस पूरे प्रकरण में भारत को बहुत ज्यादा चिंता करने की जरुरत नहीं है क्योंकि अमेरिका के लगाए टैरिफ का भारत की जीडीपी पर ज्यादा से ज्यादा 0.2 प्रतिशत का प्रभाव पड़ना है। तभी जिस तरह से ब्रिटेन के साथ साझा हितों पर आधारित संधि हुई है या जिस तरह की वार्ता यूरोपीय संघ के साथ चल रही है वैसे ही अमेरिका के साथ भी साझा हितों पर आधारित संधि होगी। अगर दबाव में संधि होनी होती तो अब तक हो चुकी होती। संधि में देरी हो रही है तो इसका कारण यह है कि भारत किसी बाहरी दबाव की बजाय अपने नागरिकों के हितों को प्राथमिकता देकर संधि करना चाहता है। इसलिए हमें किसी दूसरे देश के नेता के बयानों को सुनने की बजाय अपनी सरकार पर भरोसा करना चाहिए।  (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

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