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22-06-2025 Vol 19

विपक्ष को कूटनीति का सबक मिला

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उम्मीद करनी चाहिए कि भारत का विपक्ष भी इस बात को समझेगा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सरकार की लड़ाई नहीं है, बल्कि देश की लड़ाई है। पाकिस्तान की ओर से पैदा किया जा रहा खतरा सिर्फ सरकार के लिए चुनौती नहीं है, बल्कि देश के लिए है और दुनिया के देशों को इतने गंभीर और अति संवेदनशील मसले पर भारत के साथ खड़ा करना सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि देश की जिम्मेदारी है, जिसमें विपक्ष भी शामिल है।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में विपक्ष का व्यवहार क्या वैसा ही होना चाहिए, जैसा अभी विपक्ष कर रहा है? यह बड़ा प्रश्न है क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में विपक्ष से न्यूनतम रचनात्मकता और जिम्मेदारी की उम्मीद की जाती है। परंतु ऐसा लग रहा है कि विपक्ष ने अपना उत्तरदायित्व पूरी तरह से भूला दिया है। उसने भारत की विदेश नीति और सामरिक नीति को भी घरेलू राजनीति की तरह ही विवाद का विषय बना दिया है। पहलगाम में निर्दोष भारतीय पर्यटकों का धर्म पूछ कर उनका नरसंहार किए जाने के बाद विपक्ष का जो शुरुआती रवैया था वह उम्मीद जगाने वाला था। विपक्ष ने सरकार के साथ खड़े होने का फैसला किया था। लेकिन बहुत जल्दी उसने सहमति और जिम्मेदारी का भाव खत्म कर दिया और इतने संवेदनशील मुद्दे पर भी टकराव व विवाद की राजनीति शुरू कर दी। परंतु अब उसे एक बड़ा सबक मिल गया है। उम्मीद करनी चाहिए कि वह इस सबक को याद रखेगा और आने वाले दिनों में विपक्ष के तौर पर उसको अपनी जिम्मेदारियों का भी अहसास होगा।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपक्ष ने न तो अपनी सेना पर भरोसा किया, न विदेश सेवा के अपने अधिकारियों पर भरोसा किया और न देश के राजनीतिक नेतृत्व पर भरोसा किया। उसने भरोसा किया पाकिस्तान की सेना पर, वहां की मीडिया पर और अमेरिका के राष्ट्रपति की बातों पर। लेकिन अब सब गलत साबित हो गए हैं। अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी मान  लिया है कि भारत और पाकिस्तान ने आपस में बात करके सीजफायर का फैसला किया। इससे पहले वे कहते रहे थे कि उन्होंने परमाणु शक्ति संपन्न दोनों देशों यानी भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराया। इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कहा कि व्यापार और टैरिफ लगाने की धमकी देकर उन्होंने सीजफायर कराया। भारत ने उनके इस बयान को कई बार खारिज किया और कहा कि सीजफायर का फैसला पाकिस्तान के अनुरोध पर किया गया। आमतौर पर विपक्ष से उम्मीद की जाती है कि वह सामरिक व विदेश नीति के मामले में सरकार की बातों पर विश्वास करे और उसका समर्थन करे क्योंकि ऐसे मामलों में दुनिया के सामने देश के एकजुट होने का मैसेज बनवाना होता है। लेकिन भारत में विपक्ष ने इस मामले में जिम्मेदारी भरा व्यवहार नहीं किया।

अंत में   प्रधानमंत्री   नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से टेलीफोन पर बात की और करीब 35 मिनट की इस बातचीत में उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर फैलाए जा रहे तमाम भ्रम को दूर कर दिया। गौरतलब है कि कनाडा में जी-7 की बैठक छोड़ कर राष्ट्रपति ट्रंप वापस लौट गए थे। उसके बाद बुधवार, 18 जून को प्रधानमंत्री   नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से फोन पर बातचीत की। करीब 35 मिनट की इस बातचीत में    प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति ट्रंप को ऑपरेशन सिंदूर के बारे में बताया। इस बातचीत की जानकारी देते हुए विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा कि प्रधानमंत्री   नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर से जुड़े किसी भी विषय में व्यापार से संबंधित कोई चर्चा नहीं हुई। उन्होंने दोहराया कि पाकिस्तान के कहने पर ही भारत ने सीजफायर किया था। भारत कभी किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता और आगे भी नहीं करेगा। इस बातचीत की खास बात यह रही कि    प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब भारत आतंकवाद की घटनाओं को प्रॉक्सी वॉर नहीं, बल्कि सीधे युद्ध की कार्रवाई के रूप में देखेगा। और सबसे अच्छी बात यह रही कि राष्ट्रपति ट्रंप ने इन बातों को और भारत के रुख को समझा और आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई के प्रति समर्थन जताया।

निश्चित रूप से राष्ट्रपति ट्रंप को इसका अंदाजा होगा कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर जिस तरह की बातें कही हैं उनसे भारत में नाराजगी होगी। तभी उन्होंने    प्रधानमंत्री   नरेंद्र मोदी को कनाडा से लौटते हुए अमेरिका में रूकने और साथ में भोजन करने का न्योता दिया। लेकिन    प्रधानमंत्री ने विनम्रतापूर्वक उसे ठुकरा दिया। इससे पहले जी-7 की बैठक में    प्रधानमंत्री ने किसी भी देश का नाम लिए बगैर अमेरिका और यूरोप के देशों को बहुत साफ संदेश दिया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई चुनिंदा तरीके से नहीं लड़ी जा सकती है। उन्होंने दो टूक अंदाज में कहा कि आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले देशों का सम्मान किया जा रहा है। उनका इशारा पाकिस्तान को दिए जा रहे महत्व की ओर था।    प्रधानमंत्री ने दुनिया के देशों को आगाह करते हुए कहा कि यह रवैया बहुत घातक है कि जब तक आतंकवाद उनके दरवाजे पर दस्तक नहीं देगा वे तब तक आंख बंद किए रहेंगे। दुनिया के देशों ने भारत की इस चिंता को समझा है।

उम्मीद करनी चाहिए कि भारत का विपक्ष भी इस बात को समझेगा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ सरकार की लड़ाई नहीं है, बल्कि देश की लड़ाई है। पाकिस्तान की ओर से पैदा किया जा रहा खतरा सिर्फ सरकार के लिए चुनौती नहीं है, बल्कि देश के लिए है और दुनिया के देशों को इतने गंभीर और अति संवेदनशील मसले पर भारत के साथ खड़ा करना सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि देश की जिम्मेदारी है, जिसमें विपक्ष भी शामिल है। इसी भावना के तहत केंद्र सरकार ने पहलगाम कांड और ऑपरेशन सिंदूर के बारे में दुनिया को जानकारी देने के लिए सात प्रतिनिधिमंडल दुनिया के 33 देशों के दौरे पर भेजा। इन प्रतिनिधिमंडलों में सरकार के साथ साथ विपक्ष के सदस्यों को भी शामिल किया गया। न सिर्फ शामिल किया गया, बल्कि तीन प्रतिनिधिमंडलों की अध्यक्षता विपक्षी सांसदों को सौंपी गई। अमेरिका गए सबसे अहम प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता कांग्रेस के सांसद   शशि थरूर कर रहे थे। परंतु विपक्ष ने सरकार की इस भावना का भी अनादर किया। कांग्रेस पार्टी ने प्रतिनिधिमंडलों का दौरा शुरू होने से पहले ही अपनी पार्टी की आंतरिक राजनीति के आधार पर सदस्यों के चयन का विवाद छेड़ दिया और कांग्रेस के नेता   शशि थरूर के ऊपर तरह तरह के आरोप लगाने लगे, जबकि उन्होंने बार बार कहा कि वे किसी पार्टी या सरकार का पक्ष रखने नहीं जा रहे हैं, बल्कि देश का पक्ष रखने जा रहे हैं। फिर भी उनके खिलाफ विषैला प्रचार किया गया।

बहरहाल, विपक्ष इस मामले में पूरी तरह से एक्सपोज हो गया है। ध्यान रहे भारत की ओर से पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों पर की गई सैन्य कार्रवाई का पूरा ब्योरा या तो विदेश सचिव ने रखा या भारत के सैन्य अधिकारियों ने रखा। लगातार तीन दिन तक विदेश सचिव और सेना की दो महिला अधिकारियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और उसके बाद तीनों सेनाओं के तीन वरिष्ठ अधिकारियों ने प्रेस को सब कुछ बताया। मीडिया के सामने पूरी टाइम लाइन रखी गई कि 10 मई को पाकिस्तान के सैन्य अभियान के महानिदेशक यानी डीजीएमओ ने सुबह 10 बजे भारत के डीजीएमओ को फोन किया। लेकिन उस समय भारत के डीजीएमओ किसी मीटिंग में थे तो बात नहीं हो सकी। उसके बाद साढ़े तीन बजे बात हुई, जिसमें पाकिस्तान ने हमला रोकने की गुहार लगाई और सीजफायर का प्रस्ताव दिया। भारत के डीजीएमओ ने ऊपर के अधिकारियों और राजनीतिक नेतृत्व से बात करके पांच बजे सीजफायर का फैसला किया। इसमें कहीं कोई संशय या दुविधा नहीं थी कि पाकिस्तान ने घुटने टेके और तब भारत ने सीजफायर किया। दुर्भाग्य की बात है कि भारत की विपक्षी पार्टियों ने विदेश सेवा के अपने वरिष्ठ अधिकारियों और सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की बात नहीं मानी और अमेरिका के राष्ट्रपति के बयानों के आधार पर अपने सरकार पर सवाल उठाने लगे। विपक्ष का यह आचरण सरकार के लिए नहीं, बल्कि सेना और कूटनीतिक अधिकारियों के लिए शर्मिंदगी की बात थी। विपक्ष ने अपने मामूली राजनीतिक लाभ के लिए सेना और विदेश नीति का संचालन करने वाले अधिकारियों को कठघरे में खड़ा कर दिया। विपक्ष को इस आचरण के लिए देश उसे कभी माफ नहीं करेगा।

अगर राष्ट्रपति ट्रंप से कनाडा के अल्बर्टा में हुए जी-7 देशों की बैठक के दौरान    प्रधानमंत्री की मुलाकात होती तो आमने सामने बात होती। दोनों के बीच दोपक्षीय वार्ता होने वाली थी। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप बैठक छोड़ कर अचानक अमेरिका वापस लौट गए। तभी टेलीफोन पर दोनों की बात हुई और ऑपरेशन सिंदूर को लेकर फैलाए जा रहे तमाम भ्रम को दूर कर दिया गया। ध्यान रहे आजादी के बाद से भारत में यह अघोषित सिद्धांत रहा है कि कूटनीति और सामरिक नीति पर विपक्ष हमेशा सरकार का साथ देता है। मौजूदा विपक्ष ने इस अघोषित सहमति को तोड़ा है। इससे कोई अच्छी मिसाल नहीं बनेगी। तभी विपक्ष को अपने इस आचरण पर विचार करना चाहिए। अपनी गलती को समझना चाहिए। उसे समझ लेना चाहिए कि कूटनीति वैसी नहीं होती है, जैसी दिख रही होती है। अब राष्ट्रपति ट्रंप ने यह मान लिया है कि भारत और पाकिस्तान ने बातचीत करके सीजफायर किया और यह भी मान लिया है कि भारत और अमेरिका बड़ी व्यापार संधि करने जा रहे हैं। यह व्यापार संधि भारत की बड़ी कामयाबी होगी। राष्ट्रपति ट्रंप ने बढ़ाए गए टैरिफ पर 90 दिन की जो रोक लगाई थी वह नौ जुलाई को खत्म हो रही है। उससे पहले भारत के साथ व्यापार संधि हो जाने की संभावना है। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

एस. सुनील

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