Sunday

13-07-2025 Vol 19

नरेंद्र भाई की संजीवनी हैं राहुल?

90 Views

जैसे भगत-टोली शोर मचाती है कि देश के पास नरेंद्र भाई का विकल्प कहां है, मैं भी फुसफुसा कर पूछना चाहता हूं कि विपक्ष के बरामदे में राहुल गांधी का प्रतिस्थापन कौन है? सो, राहुल को कोसने का शगल पाले बैठे लोग भी जानते हैं कि नरेंद्र भाई की छप्पन इंची छाती के सामने अपना सीना ठोक कर खड़े हो जाने का जो जलवा इन ग्यारह वर्षों में राहुल ने दिखाया है, वह किसी भी और के बूते की बात नहीं थी।

राहुल गांधी आज के प्रतिपक्ष की ताक़त हैं या कमज़ोरी? उन की उपस्थिति नरेंद्र भाई मोदी की राजनीतिक शक्ति को दुर्बल करती है या उसे और बलवान बना देती है? उन की प्रतिपक्षी अगुआई विपक्षी दलों की शिराओं में दौड़ रही ऊर्जा की रवानी बढ़ाती है या उसे अवरुद्ध करती है? विपक्ष के कैनवस पर उन की रहनुमा-भूमिका से नरेंद्र भाई के रोंगटे डर के मारे खड़े हो जाते हैं या वे लिहाफ़ ओढ़ कर सोने के लिए अपने को और आश्वस्त महसूस करने लगते हैं? इन तमाम प्रश्नों का अंतर्व्यूह भेदना अगर अंटार्कटिक के बर्फ़ीले रेगिस्तान को पार करने सरीखा मुश्क़िल नहीं है तो सैल्यालेंडफ़ास झरने के पानी में बहने की तरह गुदगुदा भी नहीं है।

कइयों को लगता है कि राहुल आज के विपक्ष की कमज़ोरी हैं, उन की उपस्थिति नरेंद्र भाई को बलवान बनाती है, उन की प्रतिपक्षी अगुआई से विपक्ष की ऊर्जा अवरुद्ध होती है और विपक्ष की उन की रहनुमाई के चलते नरेंद्र भाई और निश्चिंत हो कर सो रहे हैं। ऐसा मानने वालों की दलील है कि जैसे ही आप नरेंद्र भाई के बरक्स राहुल को खड़ा पाते हैं, नरेंद्र भाई का क़द अपने आप ही सुरसाई आकार ले लेता है। नरेंद्र भाई की ‘चौबीस गुणा सात’ सक्रियता, उन के वक्तृत्व कौशल और उन की निणर्य क्षमता के तराजू पर लोग राहुल को तोलने लगते हैं। जब ऐसा होता है तो नरेंद्र भाई को दस में से दस अंक मिल जाते हैं और राहुल चार अंक पर ठहर जाते हैं।

ये तर्काधीश ज़ोरशोर से उद्घोषणा करते नहीं थकते है कि जब तक राहुल विपक्ष का प्रतीक हैं, तब तक नरेंद्र भाई को बार-बार, हर बार, प्रधानमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता है। सो, देश भले ही नरेंद्र भाई से कितना ही उकता गया हो, सामने अगर राहुल रहेंगे तो भारत के लोग, मन मार कर भी, ‘मोदी-मोदी’ का आलाप करते रहेंगे। ये दलीलवीर रातदिन यह विमर्श रचने का काम कर रहे हैं कि अगर नरेंद्र भाई की विदाई का दिन देखना है तो विपक्ष को राहुल के नेतृत्व से मुक्त होना होगा।

मगर मेरी सियासी दानिशवरी मुझे इस का ठीक उलट दृश्य दिखाती है। मैं मानता हूं कि राहुल आज के प्रतिपक्ष की सब से बड़ी ताक़त हैं। उन की उपस्थिति से ही नरेंद्र भाई की राजनीतिक चूलें हिली हुई हैं। उन की प्रतिपक्षी अगुआई ही विपक्षी ऊर्जा का रक्तबीज है। विपक्ष के दरीचे में उन की रहनुमा-भूमिका की वज़ह से ही नरेंद्र भाई भीतर से थरथर हैं। इस एक दशक के सियासी शफ़क़ से राहुल के चेहरे को हाशिए पर ठेल कर, आकार लेने वाले संभावित नज़ारे की, कल्पना तो कर के देखिए – आप के होश फ़ाख़्ता हो जाएंगे। 11 बरस से दन-दन करते नरेंद्र भाई और जनतंत्र के बीच अगर राहुल गांधी और उन की कांग्रेस न खड़ी होती तो स्वेच्छाचारिता का सैलाब कब का सब-कुछ लील चुका होता।

प्रतिपक्ष के तमाम दिग्गजों के प्रति अपने संपूर्ण सम्मान-भाव की गठरी सिर-माथे लिए घूमते हुए मैं आप से पूछना चाहता हूं कि अगर नरेंद्र भाई की डोली तब तक विदा नहीं होगी, जब तक राहुल विपक्ष का प्रतीक हैं तो ऐसा कौन है, जिसे विपक्ष अपना शुभंकर बना ले तो नरेंद्र भाई अपना झोला ले कर कल सुबह फ़कीरधाम को रवाना हो जाएंगे? क्या शरद पवार वह चेहरा हो सकते हैं? क्या ममता बनर्जी वह शख़्सियत हो सकती हैं? क्या अरविंद केजरीवाल को देश इस यज्ञ का अश्व-मेध मान लेगा? क्या उद्धव ठाकरे ऐसे चक्रवर्ती साबित हो सकते हैं? क्या तेजस्वी यादव वह महारथी बन सकते हैं? क्या अखिलेश यादव अपनी मुट्ठी बंद कर उस पर फूंक मार कर ‘गिली गिली गाला’ बोल देंगे तो नरेंद्र भाई अंतर्ध्यान हो जाएंगे?

तो जैसे भगत-टोली शोर मचाती है कि देश के पास नरेंद्र भाई का विकल्प कहां है, मैं भी फुसफुसा कर पूछना चाहता हूं कि विपक्ष के बरामदे में राहुल गांधी का प्रतिस्थापन कौन है? सो, राहुल को कोसने का शगल पाले बैठे लोग भी जानते हैं कि नरेंद्र भाई की छप्पन इंची छाती के सामने अपना सीना ठोक कर खड़े हो जाने का जो जलवा इन ग्यारह वर्षों में राहुल ने दिखाया है, वह किसी भी और के बूते की बात नहीं थी। बुरा न मानें, विपक्ष के कई सूरमाओं को नरेंद्र भाई के हंटर के आगे गीला होते और उन की पुचकार के सामने गिलगिल होते क्या हम ने नहीं देखा है? दिल पर हाथ रख कर बताइए, और भी हैं, लेकिन क्या राहुल उन सभी के बनिस्बत, उस अग्रिम पंक्ति में अनवरत नहीं खड़े हुए हैं, जिन-जिन को नरेंद्र भाई के हथकंडे कभी विचलित नहीं कर पाए?

इसलिए जिन्हें राहुल गांधी में खोट-ही-खोट नज़र आते हैं और नरेंद्र भाई में ब्रह्मा-विष्णु-महेश की छटा के दर्शन होते हैं, उन के तर्कों-कुतर्को का तो कोई कैसे जवाब दे? राहुल में उम्मीद की ज़रा-सी भी लकीर देखने वालों को तो भाड़े की लीचड़-पलटन की अधिकतम मुमकिन निकृष्ट भाषा, गलीज़ व्यवहार और गलाज़त सनी नफ़रत के थपेड़े झेलने ही हैं। मगर बावजूद इस के मैं आप को बताना चाहता हूं कि राहुल-शून्य विपक्ष में एक भी कहार ऐसा नहीं है, जो नरेंद्र भाई की पालकी को अपने कंधे पर ढो कर अरण्य-रोदन स्थली पर छोड़ आए।

मैं नहीं कहता कि राहुल पुरुषोत्तम हैं। मैं नहीं कहता कि वे सर्वोत्तम हैं। मैं नहीं कहता कि वे महामानव हैं। मैं नहीं कहता कि वे सर्वज्ञाता हैं। वे जैसे भी हैं, नरेंद्र भाई से बेहतर हैं। वे जैसे भी हैं, अपने प्रतिपक्षी सहयोगियों के मुकाबले ज़्यादा ज़हीन हैं। लेकिन हां, राहुल को ख़ुद में कुछ संशोधन करने की ज़रूरत है। उन्हें व्यक्ति-चयन के अपने कौशल को ज़रा परिष्कृत करना चाहिए। अलग-अलग कामगार तबकों के लोगों से समय-समय पर मिलते रहने का उन का उपक्रम स्वागतेय है, लेकिन उन्हें अपनी पार्टी में स्वातःसुखाय बेगारी कर रहे लोगों के लिए भी मिलने-जुलने के दरवाज़े थोड़े खुले रखने चाहिए।

राहुल की निर्णय क्षमता को ले कर मेरे मन में कभी कोई संशय नहीं रहा। मगर फ़ैसलों पर फ़ौरी अमल के रास्ते में होने वाली किलेबंदी को ध्वस्त करने की कोई कारगर क्रिया-विधि शायद वे अब तक ईजाद नहीं कर पाए हैं। वे यह यंत्र रच लेंगे तो, ख़ुद का तो करेंगे ही, सब का बहुत भला करेंगे। अगर राहुल की सचमुच इच्छा हो जाए तो द्वारपाल-मुक्त कांग्रेस की स्थापना भी वे चुटकी बजाते कर सकते हैं। चूंकि घोड़ों की तीन तरह की किस्मों का मर्म अब वे अच्छी तरह समझ चुके हैं, सो, अगर वे यह शोधपरक खोजी निग़ाह ज़रा अपने आसपास भी दौड़ा लें तो कोई हर्ज़ नहीं है।

इन छुटुर-पुटुर नुक्सों की मरम्मत के लिए राहुल को किसी तपस्या-स्थली जाने की दरकार नहीं है। इस के लिए उन्हें कोई कुंडलिनी जागरण नहीं करना है। उन्हें महज़ इतना करना है कि वे 12 बरस पहले पार्टी-उपाध्यक्ष बनने के बाद कही अपनी इस बात को लगातार याद करते रहें कि ‘आज से मैं किसी का वकील नहीं रहा। अब मैं न्यायाधीश की भूमिका में हूं। मेरे लिए सब बराबर हैं।’ जिस दिन यह मनोभाव कांग्रेसी आंगन में परावर्तित हो जाएगा, राहुल गांधी के मन की कांग्रेस स्वयमेव अवतरित हो जाएगी। वह कांग्रेस, जिसे लोगों का ऐतबार हासिल करने के लिए आज की तरह पापड़ नहीं बेलने पड़ेंगे।

पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *