Wednesday

30-04-2025 Vol 19

उफ! ‘हिंदू’ स्वतंत्रता का यह सत्तापथ!

true independence: मोहन भागवत के कहे पर व्यर्थ का बवंडर है। इसकी सघनता से अपना शक है कि मोदी सरकार व भाजपा में उनके विरोधियों ने इस पर तिल का ताड़ बनवाया।

ताकि वे मोहन भागवत को जल्द रिटायर करा सकें। बीबीसी, हिंदी में उनका कहा जस का तस छपा है। गौर करें उनकी इन लाइनों पर, “भारत स्वतंत्र हुआ 15 अगस्त को, राजनीतिक स्वतंत्रता आपको मिल गई।

हमारा भाग्य निर्धारण करना हमारे हाथ में है। हमने एक संविधान भी बनाया, एक विशिष्ट दृष्टि जो भारत के अपने स्व से निकलती है,

उसमें से वह संविधान दिग्दर्शित हुआ, लेकिन उसके जो भाव हैं, उसके अनुसार चला नहीं और इसलिए, हो गए हैं स्वप्न सब साकार कैसे मान लें, टल गया सर से व्यथा का भार कैसे मान लें”।

also read: रणजी ट्रॉफी से बाहर कोहली! अब विराट का इंग्लैंड टेस्ट सीरीज से पत्ता कट….

भागवत ने आगे कहा, ‘ऐसी परिस्थिति समाज की, क्योंकि जो आवश्यक स्वतंत्रता में स्व का अधिष्ठान होता है, वह लिखित रूप में संविधान से पाया है, लेकिन हमने अपने मन को उसकी पक्की नींव पर आरूढ़ नहीं किया है।

हमारा स्व क्या है? राम, कृष्ण और शिव, यह क्या केवल देवी देवता हैं, या केवल विशिष्ट उनकी पूजा करने वालों के हैं? ऐसा नहीं है। राम उत्तर से दक्षिण भारत को जोड़ते हैं’।

भागवत ने फिर यह कहा, ”प्रतिष्ठा द्वादशी, पौष शुक्ल द्वादशी का नया नामकरण हुआ।(true independence)

पहले हम कहते थे वैकुंठ एकादशी, वैकुंठ द्वादशी अब उसे प्रतिष्ठा द्वादशी कहना क्योंकि अनेक शतकों से परतंत्रता झेलने वाले भारत के सच्चे स्वतंत्रता की प्रतिष्ठा उसी दिन हो गई। स्वतंत्रता थी, प्रतिष्ठित नहीं हुई थी”।

15 अगस्त 1947 के सत्य को नकारना या झुठलाना

क्या यह 15 अगस्त 1947 के सत्य को नकारना या झुठलाना है? इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो इतिहास की हूक, आजादी के दौरान और उसके बाद के हिंदू मनोभाव में नहीं था?

निश्चित ही हिंदुओं के कलियुगी बीहड़ में सत्य और झूठ के भेद का आत्मबोध संभव नहीं है। सीधे दो छोर हैं।

एक धर्म को अफीम मानने की सेकुलर प्रगतिशीलता का और दूसरे छोर पर अंध धार्मिकता का! मेरे हिसाब से यह सनातन धर्म की ऋषि वशिष्ठ बनाम ऋषि चार्वाक के दो छोरों की परंपरा याकि बहुलवाद का पर्याय है। जरा अंग्रेजों के समय को याद करें।

उनकी छत्रछाया में नेहरू और मदन मोहन मालवीय, डॉ. राजेंद्र प्रसाद या नेहरू बनाम श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि में साझा था।

आपसी मतभिन्नता, दुराव के बावजूद अंतरिम कैबिनेट में सहभागिता थी। वही अब सन् 2025 में क्या कही है?

स्वतंत्रता ने हिंदुओं की अभिव्यक्ति में भी वह जंगलीपना बनवाया है कि राहुल गांधी, जेएनयू के वामपंथी या मोहन भागवत और योगी यदि आजादी के मंतव्य में अपने मन की बात कहें तो सीधे देशद्रोही और इंडियन स्टेट से लड़ने का गुनाहगार करार होगा!

जाहिर है अंग्रेजों से प्राप्त गुलाम तंत्र, स्टेट ने भारत को वह बीहड़ बना डाला है, जिसमें हिंदू ही हिंदू को बरदाश्त नहीं है।

बल्कि गृहयुद्ध है। इसलिए मेरा मानना है हिंदुस्तान के इतिहास में 15 अगस्त 1947 का दिन वह पड़ाव था, जिससे कलह के अगले गृहयुद्ध का नया सत्तापथ बना।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *