Wednesday

30-04-2025 Vol 19

सोशल सेक्टर भी बंजर हुआ

245 Views

एक समय था, जब भारत में सोशल सेक्टर सबसे अधिक फलता फूलता हुआ था। चारों तरफ सामाजिक कार्यकर्ताओं की बहार थी। महिला व बाल अधिकार हों या आदिवासी व दलितों के अधिकार की बात हो, भले यह पश्चिम से आई विचारधारा थी लेकिन भारत में इनकी चर्चा होने लगी थी और सामाजिक संगठन लोकतंत्र के पांचवें स्तंभ के रूप में स्वीकार किए जाने लगे थे। राजनीति पर उनका असर होता था। इसी तरह धार्मिक व आध्यात्मिक जागरण भी समानांतर चल रहा था। धर्मगुरू सामाजिक व राजनीतिक स्पेस में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। याद करें कैसे 2014 से पहले जब देश में भ्रष्टाचार की कथित कहानियां खुलनी शुरू हुई तो कितने सामाजिक आंदोलन हुए थे।

महाराष्ट्र के रालेगण सिद्धि से नई दिल्ली में आकर अन्ना हजारे ने धरना दिया था। इंडिया अगेंस्ट करप्शन नाम से संस्था बनी थी और पूरा देश इसके पीछे आंदोलित हुआ था। जंतर मंतर से लेकर रामलीला मैदान तक में हुए प्रदर्शनों में कितने ही सामाजिक कार्यकर्ता उभरे थे। लेकिन कहां हैं आज वो सामाजिक कार्यकर्ता? अन्ना हजारे कहां हैं? उनके बाद रामदेव ने रामलीला मैदान में रैली की थी और केंद्र सरकार ने उनको वहां से खदेड़ने के लिए आधी रात को जालियांवाला बाग किस्म का माहौल बना दिया था। श्री श्री रविशंकर धूमकेतु की तरह उभरे थे। वे नक्सलियों से वार्ता कर रहे थे तो देश के लोगों को आर्ट ऑफ लिविंग सीखा रहे थे। इनसे पहले देश में सूचना अधिकार कार्यकर्ता अरुणा रॉय की तूती बोलती थी तो नर्मदा आंदोलन का नेतृत्व करने वाली मेधा पाटकर के किस्से सुनाए जाते थे। सुंदर लाल बहुगुणा की कहानियां होती थीं। भुखमरी और पोषण को लेकर अलख जगाने वाले ज्यां द्रेज के चर्चे होते थे। सुनीता नारायण को दूरदराज के गांवों में लोग जानते थे। मैगसेसे जीतने वाले राजेंद्र सिंह से लेकर संदीप पांडेय तक की चर्चा होती थी। महाश्वेता देवी से लेकर अमर्त्य सेन जैसे सार्वजनिक बुद्धिजीवियों की चर्चा होती थी।

अब किस सामाजिक कार्यकर्ता की चर्चा होती है? कहीं कोई आंदोलन दिख रहा है? छत्तीसगढ़ से लेकर झारखंड और उत्तराखंड से लेकर हिमाचल प्रदेश तक में जंगल और पहाड़ काटे जा रहे हैं। प्राकृतिक आपदा से हजारों जानें हर साल जा रही हैं। लेकिन कहीं कोई आंदोलन नहीं है। कोई सामाजिक कार्यकर्ता या सार्वजनिक बुद्धिजीवी प्रदर्शन करता नहीं दिख रहा है। लोग भी सोशल मीडिया में पोस्ट देख कर या लिख कर क्रांति कर रहे हैं। धार्मिक व आध्यात्मिक स्पेस में जरूर हलचल है लेकिन वहां भी सिर्फ जोकर किस्म के कुछ लोग सक्रिय हैं, जो अंधविश्वास फैला रहे हैं या नाच गाकर हिंदुओं को बरगला रहे हैं और लाखों करोड़ों की कमाई कर रहे हैं।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *