देश के किसी दूसरे देश की विधानसभा वैसे नहीं चलती होगी, जैसे दिल्ली की विधानसभा चलती है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार ने अलग ही तरीका विकसित किया है। उन्होंने यह रास्ता दिखाया कि विधानसभा का एक सत्र बुलाओ तो उसका सत्रावसान मत करो ताकि बीच में बिना उप राज्यपाल की अनुमति के विशेष सत्र बुलाया जा सके और उसमें मुख्यमंत्री केजरीवाल का भाषण कराया जा सके। एक तरीका केजरीवाल की सरकार ने यह और निकाला है कि विधानसभा की कार्रवाई से प्रश्न काल ही हटा दिया जाता है। सोचें, बिना प्रश्न काल के सत्र का क्या मतलब है? इस साल का अंत आ गया है लेकिन इस साल विधानसभा के जितने भी सत्र बुलाए गए हैं उनमें प्रश्न काल नहीं था। तभी इस बार 29 नवंबर से शीतकालीन सत्र शुरू होने की खबर आई तो मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि इस बार सत्र में प्रश्न काल जरूर रखा जाए।
पता नहीं केजरीवाल की सरकार इस पर ध्यान देती है या नहीं। लेकिन हैरानी इस बात पर है कि 70 सदस्यों की विधानसभा में आम आदमी पार्टी के 62 विधायक हैं। भाजपा के सिर्फ आठ ही विधायक हैं। इसके बावजूद सरकार को स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से सदन नहीं चलाना होता है। सरकार दावा करती है कि उसके जैसा काम ब्रह्मांड की कोई सरकार नहीं कर रही है फिर भी विपक्ष को सवाल नहीं पूछने दिया जाता है। सरकार को तो आगे बढ़ कर प्रश्न करवाने चाहिए थे, ताकि अपनी उपलब्धियां बता सके। इतना ही नहीं दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के कामकाज को नियंत्रक व महालेखापरीक्षक यानी सीएजी की रिपोर्ट ही सदन में पेश नहीं कर रही है। विपक्ष मांग कर रहा है कि 12 रिपोर्ट है, जिसे पेश किया जाए लेकिन सरकार नहीं पेश कर रही है। सोचें, लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करने वाले समूह में आम आदमी पार्टी भी है, जिसको लग रहा है कि संसद में ठीक से कामकाज नहीं हो रहा है। लेकिन जहां अपनी सरकार है वहां एक काम लोकतांत्रिक तरीके से नहीं करना है।