ट्रंप के टैरिफ आक्रमण का कमरतोड़ असर हुआ है। नतीजतन, विभिन्न देश नई परिस्थिति के मद्देनजर भूमंडलीकरण के बाद की दुनिया के अनुरूप अपनी तैयारी कर रहे हैं। मगर भारत में ऐसी किसी योजना का स्पष्ट अभाव है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के भारत पर 26 फीसदी टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने के फैसले की मार भारतीय विक्रेताओं पर पड़ने लगी है। खबर है कि अमेरिकी खरीदार भारतीय विक्रेताओं से पहले तय हो चुके सौदों पर भी फिर से सौदेबाजी कर रहे हैं। पहले तय हो चुकी कीमतों में 10 से 15 फीसदी की रियायत वे मांग रहे हैं। उनका कहना है कि 26 फीसदी टैरिफ का पूरा बोझ वे अकेले नहीं उठाएंगे। जबकि चलन यही है कि दुनिया भर में विक्रेता चाहे कहीं भी हों, खरीदार उनसे पूरा मोल-भाव करने के बाद सौदा तय करते हैं। यानी विक्रेताओं के पास रियायत देने की जितनी गुंजाइश होती है, उसका अधिकतम हिस्सा वे पहले ही वसूल चुके हैं।
टैरिफ दबाव से भारत के निर्यातकों पर संकट, वैश्विक मंदी की आशंका बढ़ी
अब विक्रेता और सस्ते दाम पर सप्लाई करने पर मजबूर हुए, तो वे उसके बोझ को साझा करने के लिए उत्पादकों पर दबाव बनाएंगे। उत्पादक अपना बोझ घटाने के लिए मजदूरों की तनख्वाह घटाएंगे और अपने इनपुट सप्लायरों पर दबाव बनाएंगे। इस तरह आय दमन का दुश्चक्र नीचे तक पहुंच सकता है। उसका असर उपभोग एवं मांग पर पड़ेगा, जिससे निवेश एवं उत्पादन के निर्णय प्रभावित होंगे। स्पष्टतः यह समग्र अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती है। चीन में भी अमेरिकी कंपनी वॉलमार्ट ने सप्लायरों पर ऐसा दबाव डालना शुरू किया था। लेकिन चीन की सरकार ने हस्तक्षेप किया और अमेरिकी कंपनियों को ऐसे व्यवहार से बाज आने को कहा।
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भारत सरकार शायद ऐसा करने की स्थिति में अपने को नहीं पाती। ऐसे में भारत का पूरा निर्यात चक्र भगवान भरोसे ही है। उधर ट्रंप की “कड़वी दवा” के असर से दुनिया भर के शेयर बाजारों में मची अफरातफरी की भारी मार भारत के वित्तीय निवेशकों पर भी पड़ी है। इससे वैश्विक मंदी की आशंकाएं और भी ज्यादा गहरा गई हैं। इस स्थिति में भारतीय सप्लायरों के लिए वैकल्पिक बाजार ढूंढना और कठिन हो गया है। कुल स्थिति यह है कि टैरिफ आक्रमण का कमरतोड़ असर हुआ है। नतीजतन विभिन्न देश नई परिस्थिति के मद्देनजर भूमंडलीकरण के बाद के हालात के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। मगर भारत में ऐसी किसी योजना का स्पष्ट अभाव है।
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