भारत इस नतीजे पर है कि पहलगाम हमले को पाकिस्तान के संरक्षण में अंजाम दिया गया। इसलिए इस रास्ते से पाकिस्तान को हटने पर मजबूर करने से पहले रुख नरम ना किया जाए। यह भारत की राष्ट्रीय शक्ति की परीक्षा है।
पहलगाम हमले के बाद भारत ने आतंकवादियों और उनके संरक्षकों को सख्त पैगाम देने के कदम उठाए हैं। मगर उनका असर तभी होगा, जब उनके जरिए आर-पार का परिणाम हासिल किया जाए। तात्पर्य यह कि चूंकि भारतीय जांचकर्ता इस नतीजे पर हैं कि आतंकवादी हमले को पाकिस्तान के संरक्षण में अंजाम दिया गया, तो उचित यह होगा कि इस रास्ते से पाकिस्तान को हटने पर मजबूर करने से पहले रुख नरम ना किया जाए। इस रूप में यह भारत की राष्ट्रीय शक्ति एवं संकल्प की परीक्षा है। अतीत के अनुभवों से स्पष्ट है कि प्रतीकात्मक कार्रवाइयों से भारत विरोधी आतंकवादी ढांचा खत्म नहीं किया जा सका। सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट हमले के बावजूद यह ढांचा बरकरार रहा और हर कुछ अंतराल पर भारत का खून बहाता रहा है, तो अब जरूरत उससे आगे बढ़ने की है।
ठोस परिणाम हासिल करने के लिए जरूरी होगा कि भारत अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के दबाव में ना आए। अब तक की प्रतिक्रियाओं से साफ है कि अमेरिका ने फिलहाल इस मामले से खुद को अलग रखने का फैसला किया है। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का यह कहना कि दोनों देश उनके करीबी हैं और वे ‘इस मामले को खुद हल कर लेंगे’, उनके प्रशासन की अंतरराष्ट्रीय विवादों में ना उलझने की नीति के अनुरूप है। अन्य हलकों से भी भारत को अधिक समर्थन मिलने की आशा नहीं है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पहलगाम संबंधी प्रस्ताव को अपने हक में नरम बनवा लेने में पाकिस्तान कामयाब रहा।
इसमें उसे चीन का साथ मिला। मगर हैरतअंगेज यह है कि पश्चिमी देशों और रूस ने भी पाकिस्तान का नाम लेकर निंदा या भारत की जांच से सहयोग करने की बात को प्रस्ताव से हटाने का विरोध नहीं किया। ईरान, सऊदी अरब, और मिस्र मध्यस्थता की कोशिश कर रहे हैं, ताकि तनाव नियंत्रित हो सके। ये सारी बातें संकेत हैं कि भारत को अपनी राष्ट्रीय शक्ति पर ही भरोसा करना होगा। अच्छी बात है कि इस बारे में राष्ट्रीय राजनीति में पूरी आम सहमति दिखी है। इसलिए केंद्र को अब पाकिस्तान सामने राष्ट्रीय शक्ति के पूर्ण प्रदर्शन के लिए बेहिचक आगे बढ़ना चाहिए।