Wednesday

30-04-2025 Vol 19

शाश्वत ध्वनि नाद की पीठ, अनाहत चक्र

अनाहत नाद अर्थात शाश्वत ध्वनि, ॐ ध्वनि। यह चक्र हृदय के निकट सीने के मध्य भाग में स्थित है। इसे हृदय केंद्र भी कहा गया है। इसका मंत्र यम है। अनाहत चक्र आत्मा की पीठ अर्थात स्थान है। अनाहत चक्र ध्वनि (नाद) की पीठ है। इस चक्र पर एकाग्रता व्यक्ति की प्रतिभा को कलाकार या रचनाकार के रूप में विकसित करने की क्षमता रखती है। इस चक्र से इच्छा पूर्ति करने में सहायक संकल्प शक्ति का उदय होता है।

नवरात्रः चौथा दिन

नवरात्रि के चौथे दिन नवदुर्गाओं में चतुर्थ स्वरूप कूष्माण्डा (कूष्मांडा) देवी की आराधना -उपासना की परिपाटी है। इस वर्ष 2024 में वसंतीय नवरात्र का चौथा दिन 12 अप्रैल दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। इस दिन देवी भगवती के चतुर्थ स्वरूप भयंकर और उग्र रूप वाली देवी कूष्मांडा की पूजा- उपासना की जाएगी। अपनी मन्द हंसी से अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारंण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है।

कुम्हड़ा, लौकी अर्थात कद्दू को संस्कृत में कूष्माण्डा कहते हैं। कुम्हड़ा गोलाकार है। कूम्हड़े की बलि इन्हें प्रिय है। इसीलिए इन्हें कूष्माण्डा नाम से संबोधित किया गया है। यहां इसका अर्थ प्राणशक्ति से है – वह प्राणशक्ति जो पूर्ण, एक गोलाकार, वृत्त की भांति है। पौराणिक मान्यतनुसार जब सृष्टि नहीं थी, और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब देवी कूष्माण्डा ने ही ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। यह सृष्टि की आदिस्वरूपा हैं, और आदिशक्ति भी। इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में है।

सूर्य लोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। इनकी आठ भुजाएँ हैं। इसलिए यह अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं।

इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन शेर है। वासन्तीय व शारदीय नवरात्र पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है। इसलिए इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि अनाहत चक्र तंत्र और योग साधना की चक्र संकल्पना का चौथा चक्र है। अनाहत का अर्थ है -शाश्वत। अनाहत नाद अर्थात शाश्वत ध्वनि, ॐ ध्वनि। यह चक्र हृदय के निकट सीने के मध्य भाग में स्थित है। इसे हृदय केंद्र भी कहा गया है। इसका मंत्र यम है। अनाहत चक्र आत्मा की पीठ अर्थात स्थान है। अनाहत चक्र ध्वनि (नाद) की पीठ है। इस चक्र पर एकाग्रता व्यक्ति की प्रतिभा को कलाकार या रचनाकार के रूप में विकसित करने की क्षमता रखती है। इस चक्र से इच्छा पूर्ति करने में सहायक संकल्प शक्ति का उदय होता है।

अनाहत चक्र का रंग हल्का नीला, आकाश का रंग है। इसका समान रूप तत्त्व वायु है। वायु स्वतंत्रता और फैलाव का प्रतीक है। इसका अर्थ है कि इस चक्र में मानव चेतना अनंत तक फैल सकती है। अनाहत चक्र का प्रतीक चिह्न बारह पंखुडिय़ों वाला कमल है। यह हृदय के बारह दिव्य गुणों- परमानंद, शांति, सुव्यवस्था, प्रेम, संज्ञान, स्पष्टता, शुद्धता, एकता, अनुकंपा, दयालुता, क्षमाभाव और सुनिश्चय आदि दैवीय गुणों का प्रतीक है। हृदय केंद्र भावनाओं और मनोभावों का केंद्र भी है। इसके दूसरे प्रतीक चिह्न में दो तारक आकार के ऊपर से ढाले गए त्रिकोण बनाए जाते हैं। एक त्रिकोण का शीर्ष ऊपर की ओर और दूसरे का नीचे की ओर संकेत करता है।

अनाहत चक्र की ऊर्जा आध्यात्मिक चेतना की ओर प्रवाहित होने पर साधक की भावनाएं भक्ति, शुद्ध, ईश्वर प्रेम और निष्ठा की ओर उन्मुख होती है। और यह सांसारिक कामनाओं की ओर उन्मुख होने पर इच्छा, द्वेष-जलन, उदासीनता और हताशा भाव में वृद्धि होती है। भावनाएं भ्रमित और असंतुलित हो जाती हैं। अनाहत चक्र का प्रतीक पशु कुरंग (हिरण) है, जो अत्यधिक ध्यान देने और चौकन्नेपन का बोधक है। इस चक्र के देवता शिव या पार्वती या विष्णु या लक्ष्मी या ज्योतिर्मय शिवलिंग हैं।

शिव चेतना और पार्वती प्रकृति की प्रतीक हैं। इस चक्र में दोनों को सुव्यवस्था में एक हो जाना चाहिए। अनाहत चक्र ध्वनि अर्थात नाद की पीठ होने के कारण इस चक्र पर एकाग्रता व्यक्ति की प्रतिभा को लेखक या कवि के रूप में विकसित कर सकती है। अनाहत चक्र से उदय होने वाली दूसरी शक्ति संकल्प शक्ति है, जो इच्छा पूर्ति की शक्ति है। किसी इच्छा की पूर्ति करने के लिए उसे अपने हृदय में एकाग्रचित्त करना चाहिए। अनाहत चक्र जितना अधिक शुद्ध होगा उतनी ही शीघ्रता से इच्छा की पूर्ति होगी।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कूम्हड़े की बलि इन्हें प्रिय होने के कारण इन्हें कूष्माण्डा नाम से जाना जाता है। कुम्हड़ा अथवा लौकी प्राणशक्ति, बुद्धिमत्ता और शक्ति को वृद्धि करने वाले हैं। कुम्हड़ा व लौकी का यह गुण है कि यह प्राणों को अपने अंदर सोखती है, और साथ ही प्राणों का प्रसार भी करती है। यह इस पृथ्वी पर सबसे अधिक प्राणवान और ऊर्जा प्रदान करने वाली शाक, सब्ज़ी है। अश्वथ अर्थात पीपल के वृक्ष के चौबीस घंटे ऑक्सीजन देने की भांति ही कुम्हड़ा, लौकी ऊर्जा को ग्रहण या अवशोषित कर उसका प्रसार करते है।

सम्पूर्ण सृष्टि प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष, अभिव्यक्त व अनभिव्यक्‍त एक बड़ी गेंद, गोलाकार कुम्हड़ा के समान है। इसमें छोटे से बड़े तक हर प्रकार की विविधता पाई जाती है। कुम्हड़ा में कू का अर्थ है -छोटा, ष् का अर्थ है- ऊर्जा और अंडा का अर्थ है -ब्रह्मांडीय गोला। सृष्टि अथवा ऊर्जा का छोटा सा वृहद ब्रह्मांडीय गोला। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का संचार छोटे से बड़े में होता है। यह बड़े से छोटा होता है, और छोटे से बड़ा। यह बीज से बढ़ कर फल बनता है, और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है।

इसी प्रकार ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने की और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है, जिसकी व्याख्या कूष्माण्डा करती हैं। देवी को कूष्माण्डा के नाम से संज्ञायित करने का अर्थ यह भी है कि माता हमारे अंदर प्राणशक्ति के रूप में प्रकट रहती हैं। इसलिए मनुष्य को अपने आप को उन्नत करने, और माता के सर्वोच्च बुद्धिमता के रूप अपनी प्रज्ञा, बुद्धि को उसमें समाकर एक कुम्हड़े के समान अपने जीवन में प्रचुरता, बहुतायत और पूर्णता अनुभव करने की कोशिश निरंतर करनी चाहिए।

सम्पूर्ण जगत के हर कण में ऊर्जा और प्राणशक्ति का अनुभव करना चाहिए। क्योंकि इस सर्वव्यापी, जागृत, प्रत्यक्ष बुद्धिमत्ता का सृष्टि में अनुभव करना ही कूष्माण्डा की उपासना है। एक अन्य मान्यतानुसार कूष्माण्डा अर्थात अण्डे को धारण करने वाली। स्त्री और पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है। मनुष्य योनि में स्त्री और पुरुष के मध्य इक्षण के समय मंद हंसी अर्थात कूष्माण्डा देवी के स्वभाव के परिणामस्वरूप उठने वाली आकर्षण और प्रेम का भाव भगवती की ही शक्ति है।

इनके प्रभाव को समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है। ब्रह्मा के दुर्गा कवच में नवदुर्गा नाम से वर्णित नौ विशिष्ट औषधियों में कूष्माण्डा भी शामिल है। कूष्माण्डा नामक औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं, जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्द्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं, जो रक्त विकार और मानसिक रोगों में अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। इस प्रकार की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करना चाहिए।

NI Political Desk

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