कामदेव को अनंग भी कहा जाता है। अनंग का अर्थ होता है- बिना अंग वाला अर्थात जिसके कोई शरीर नहीं हो, वह अनंग कहलाता है। भगवान शिव ने उनकी समाधि में विघ्न डालने के कारण रुष्ट होकर अपने तृतीय नेत्र से कामदेव को भष्म कर कामदेव पत्नी रति के रुदन को देखकर व देवताओं की प्रार्थना पर कामदेव को अनंग रूप दिया था।
2 दिसम्बर– उत्तर अनंग त्रयोदशी
भारतीय संस्कृति में प्रेम, काम, वासना और रूप के देव माने जाने वाले काम के देवता कामदेव जीवन के संचार के पुनः जोड़ने वाले देवता के रूप में प्रतिष्ठित, विराजित व पूजित हैं। कामदेव को भारतीय सभ्यता- संस्कृति और अध्यात्म में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। प्रेम का देवता मानकर कामदेव की अत्यंत प्राचीन काल से पूजा- अर्चना किये जाने की भारत में लंबी परिपाटी रही है। वर्तमान में भी प्रेम प्राप्ति, और प्रेमी- प्रेमिका के संबंध को मधुरमय बनाने तथा पति- पत्नी के दाम्पत्य संबंध को प्रेममयी बनाये रखने के लिए कामदेव की पूजन- अर्चा की जाती है। प्राचीन काल से ही भारत में काम को निकृष्ट नहीं मानकर उसे दैवी स्वरूप प्रदान किया गया है। और उसे कामदेव के रूप में मान्यता दी गई है।
भगवान शिव के द्वारा अपनी क्रोधाग्नि में काम को भस्म करने के बाद उसे अनंग रूप में पुनः जीवित करना उसकी विकृतता की नहीं, बल्कि महता को स्थापित करता है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में काम का साहचर्य उत्सव मनाने योग्य माना गया है। जब तक काम मर्यादा में रहता है, उसे भगवान की विभूति माना जाता है, लेकिन जब और जैसे ही वह मर्यादा छोड़ देता है तो आत्मघाती बन जाता है, शिव का तीसरा नेत्र (विवेक) उसे भस्म कर देता है। भगवान शिव द्वारा किया गया काम संहार का मूल भाव यही है। उनकी पत्नी रति हैं, जिनके द्वारा यह भूतल सृजित है।
कामदेव को अनंग भी कहा जाता है। अनंग का अर्थ होता है- बिना अंग वाला अर्थात जिसके कोई शरीर नहीं हो, वह अनंग कहलाता है। भगवान शिव ने उनकी समाधि में विघ्न डालने के कारण रुष्ट होकर अपने तृतीय नेत्र से कामदेव को भष्म कर कामदेव पत्नी रति के रुदन को देखकर व देवताओं की प्रार्थना पर कामदेव को अनंग रूप दिया था। भारतीय पंचांग में भगवान शिव से संबंधित व्रत प्रदोष काल व त्रयोदशी से जुड़े हुए हैं। त्रयोदशी की तिथि के साथ ही अधिकांश प्रदोष व्रत का संयोग जुड़ा हुआ होता है। अनंग देव से संबंधित व्रत भी भगवान शिव से संबंधित होने के कारण त्रयोदशी तिथि से संयुक्त है। बिना अंग वाले अनंग देव के पूजन का उत्तम दिवस अनंग त्रयोदशी कहलाता है।
अनंग देव के पूजन का दिन अनंग त्रयोदशी व्रत वर्ष भर प्रत्येक चंद्र मास की शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को किये जाने का विधान है, परंतु स्थान एवं मतांतर भेद के कारण विशेष रूप से अनंग त्रयोदशी व्रत गुजरात, महाराष्ट्र आदि कुछ क्षेत्रों में मधुमास अर्थात चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाई जाती है, जबकि उत्तर भारत में यह मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी को हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। वर्ष 2025 में मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी तिथि का समय 02 दिसम्बर 2025 दिन सोमवार के अपराह्न 03:57 से शुरू होगा और इसकी समाप्ति 03 दिसम्बर मंगलवार को अपराह्न 12:26 बजे होगी।
अनंग त्रयोदशी व्रत भगवान शिव एवं आदि शक्ति माता भगवती पार्वती से संबंधित है। व्रत के जनक भगवान कामदेव एवं उनकी पत्नी भूतल सृजिनी रति की कृपा प्रसाद पाने के लिए किया जाता है। यह व्रत पुनः जीवन के संचार को जोड़ने वाला है, जिससे संबंधित अनेक कथाएं पौराणिक ग्रंथों में अंकित प्राप्य हैं। त्रयोदशी व प्रदोष काल के संयुक्त होने से अनंग त्रयोदशी व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है। त्रयोदशी तिथि में प्रदोष व्रत का संयोग जुड़े होने पर यह समय शिवभक्ति के लिए सोने में सुहागा की भांति हो जाती है, और इसका फल उत्तम फलदायिनी सिद्ध होता है। महादेव एवं भोले बाबा के रूप में प्रतिष्ठित भगवान शिव प्रदोष एवं त्रयोदशी के व्रत का पालन करने वाले सभी भक्तों को वांछित फलों को देते हैं। जिससे दुःख दारिद्रय समाप्त होते हैं।
इस अनंग त्रयोदशी के व्रत के पालन से अनेक कष्टों से मुक्ति मिलती है। वैवाहिक जीवन अत्यंत सुखद हो उठता है। पति एवं पत्नी की कलह को विराम मिलता है। निः संतान दम्पत्ति संतान सुख की अनुभूति प्राप्त करते हैं। इस व्रत के पालन से पुण्य प्रभाव प्राप्त होती है। विधि- विधानपूर्वक विश्वास एवं आस्था के साथ इस व्रत का पालन करने से तन एवं मन के कष्टों से छुटकारा प्राप्त होता है। प्रेम और काम के देवता कामदेव की पत्नी रति को प्रेम, जुनून और मिलाप की देवी माना गया है। मान्यता है कि कामदेव- रति की पूजा-अर्चना से पति-पत्नी के बीच कभी कोई मतभेद नहीं होता और दोनों के बीच उत्तम शारीरिक संबंध पैदा होते हैं, जो एक खुशहाल दाम्पत्य जीवन के लिए अति आवश्यक भी हैं।
मान्यतानुसार कामदेव की पत्नी के पूजन व उनका ध्यान कर किये गए मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे – मंत्र के लगातार इक्कीस दिनों तक एक माला अर्थात 108 बार जप से पति-पत्नी के बीच की समस्त प्रकार की दूरियां व नोक -झोक समाप्त हो जाती है और दोनों में नजदीकियां बढ़ जाती हैं।
अनंग त्रयोदशी व्रत से संबंधित प्रचलित कथा तारकासुर और देवताओं से संबंधित है। कथा के अनुसार प्राचीन काल में वरदान की शक्तियों के बल पर तारकासुर नामक राक्षस देव आदि लोकों में अत्याचार एवं क्रूरता को बढ़ा दिया, जिससे चहुओर हाहाकार सा मच गया। यह देख देवों नें परम पिता ब्रह्मा से इसका निदान पूछा तो पितामह ने देवताओं को बताया कि इसका निदान शिव के पुत्र कर सकते है। किन्तु शिव को कोई सन्तान नहीं थी, और शिव ध्यान लगाकर बैठे हैं।
इसके लिए उन्हें समाधि से जगाना आवश्यक था, ताकि वे उठकर उनसे व्याह की आशा लिए तपस्या में रत्त सती से व्याह कर पुत्र उत्पन्न कर सकें। परंतु किसी की भी हिम्मत उनके पास जाने की नहीं हो रही थी। शिव की समाधि को तोड़ने के लिए इंद्र के द्वारा कामदेव एवं रति को नियुक्त किया गया। कामदेव ने शिव की समाधि को भंग करने का प्रयास किया, तो क्रोध में आकर शिव ने उन्हें भस्म कर दिया। किन्तु बाद में पूरी बात समझ में आने पर भोलेनाथ ने कामदेव को जीवित कर उन्हें अनंग कर दिया। तब से यह कथा अनंग त्रयोदशी के रूप में प्रचलित है।
गरुड़ पुराण के अनुसार उत्तर अनंग त्रयोदशी व्रत भगवान शिव के उपासकों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है। मान्यतानुसार एक वर्ष तक उत्तर अनंग त्रयोदशी व्रत का नियमित रूप से पालन करने वाले व्यक्ति को सौभाग्य, स्वास्थ्य, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी रति ने अपने पति कामदेव को वापस पाने के लिए यह पावन व्रत किया था और भगवान शिव की आराधना की थी। उनके समर्पण से प्रसन्न होकर, शिव ने उन्हें आश्वासन दिया कि कामदेव भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में पुनर्जन्म लेंगे।
उत्तर अनंग त्रयोदशी व्रत के दिन भगवान शिव के साथ ही भगवान कामदेव और उनकी पत्नी रति की भी पूजा किये जाने का विधान है। भगवान कामदेव को कंदर्प भी कहा जाता है। उत्तर अनंग त्रयोदशी व्रत के दिन उज्जैन में कंदर्प ईश्वर के दर्शन प्राप्त करना बहुत पुण्यदायी होता है। मान्यता है कि इस दिन इस स्थान के दर्शन करने वाले व्यक्ति को मृत्यु के बाद देव लोक में स्थान मिलता है। उत्तर अनंग त्रयोदशी व्रत के दिन इस मंदिर में भव्य उत्सव आयोजित किए जाते हैं।


