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01-07-2025 Vol 19

प्राइवेट स्कूलों की फीस पर कोई अंकुश नहीं!

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स्कूलों को गैर-लाभकारी मॉडल पर काम करना चाहिए, लेकिन कई स्कूलों ने इस नियम का उल्लंघन किया। अप्रैल 2024 में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक अंतरिम आदेश ने शिक्षा निदेशालय (डीओई) के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें इन स्कूलों को फीस वृद्धि के लिए पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता थी। इस फैसले ने स्कूलों को मनमानी वृद्धि के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे अभिभावकों का गुस्सा भड़क उठा।

विद्यालय कभी ज्ञान प्राप्त करने का केन्द्र होते थे अब व्यापारिक दुकान बन गए हैं। 2025 में, दिल्ली के कई प्रमुख प्राइवेट स्कूलों ने बिना उचित अनुमति के फीस में भारी वृद्धि की, जिसके परिणामस्वरूप अभिभावकों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए। एक सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में भारत भर में 44% अभिभावकों ने स्कूल फीस में 50 से 80% तक की वृद्धि की शिकायत की, जबकि 8% ने इसे 80% से अधिक बताया। दिल्ली में, कुछ स्कूलों ने 2020 से 2025 तक 7% से 45% तक की वृद्धि की, जिससे वार्षिक फीस 1.4 लाख रुपये तक पहुंच गई।

दिल्ली के निजी स्कूलों में फीस वृद्धि की समस्या ने अभिभावकों, छात्रों और नीति निर्माताओं के बीच गंभीर चिंता का विषय बन गया है। स्कूलों का यह रवैया न केवल आर्थिक बोझ को बढ़ाता है, बल्कि शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता पर भी सवाल उठाता है। यह वृद्धि विशेष रूप से उन स्कूलों में देखी गई जो दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा रियायती दरों पर दी गई जमीन पर संचालित होते हैं।

इन स्कूलों को गैर-लाभकारी मॉडल पर काम करना चाहिए, लेकिन कई स्कूलों ने इस नियम का उल्लंघन किया। अप्रैल 2024 में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक अंतरिम आदेश ने शिक्षा निदेशालय (डीओई) के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें इन स्कूलों को फीस वृद्धि के लिए पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता थी।

इस फैसले ने स्कूलों को मनमानी वृद्धि के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे अभिभावकों का गुस्सा भड़क उठा। स्कूल प्रशासन अक्सर फीस वृद्धि को उचित ठहराने के लिए परिचालन घाटे, शिक्षकों के वेतन, बुनियादी ढांचे के उन्नयन और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के छात्रों के लिए सरकारी प्रतिपूर्ति में देरी का हवाला देता है।

हालांकि अभिभावक और कार्यकर्ता इस तर्क को पारदर्शिता की कमी के कारण खारिज करते हैं। दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम और नियम (डीएसईएआर), 1973 के तहत सरकारी जमीन पर संचालित स्कूलों को फीस वृद्धि के लिए डीओई से अनुमति लेनी होती है।

दिल्ली में स्कूल फीस वृद्धि पर तनाव

हालांकि कई स्कूलों ने उच्च न्यायालय के आदेशों का लाभ उठाकर इस आवश्यकता को दरकिनार किया। इसके अलावा डीओई की ओर से स्कूलों के वित्तीय रिकॉर्ड की नियमित जांच में देरी और लापरवाही ने समस्या को और जटिल किया। फीस वृद्धि का मुद्दा राजनीतिक विवाद का केंद्र बन गया है। आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी एक-दूसरे पर निष्क्रियता और निजी स्कूलों के साथ सांठगांठ का आरोप लगाते हैं।

फीस वृद्धि का सबसे गहरा प्रभाव मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग के परिवारों पर पड़ा है। दिल्ली के एक अभिभावक के अनुसार उसकी दो बेटियों की स्कूल फीस हर महीने 34,000 रुपये है, जो उसकी मासिक आय का लगभग आधा हिस्सा है। इस तरह की वृद्धि ने ज़्यादातर परिवारों को वित्तीय तनाव में डाल दिया है। इसके अलावा, स्कूलों ने उन छात्रों को परेशान करना शुरू कर दिया, जिनके अभिभावकों ने बढ़ी हुई फीस का भुगतान करने से इनकार किया।

कुछ स्कूलों में तो बच्चों को लाइब्रेरी में अलग-थलग कर दिया गया। कैंटीन तक पहुंच से वंचित कर दिया गया और सहपाठियों के साथ बातचीत करने से भी रोका गया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इसे “अमानवीय और शर्मनाक” करार दिया और स्कूलों को शिक्षा को “पैसे कमाने की मशीन” के रूप में उपयोग करने के लिए स्कूल संचालकों को फटकार भी लगाई। इस तरह की हरकतों का बच्चों पर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।

अप्रैल 2025 में, दिल्ली की नई मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने फीस वृद्धि की शिकायतों की जांच के लिए 600 से अधिक स्कूलों का ऑडिट शुरू किया और 11 स्कूलों को कारण बताओ नोटिस जारी किया। सरकार ने डीओई के तहत जिला-स्तरीय समितियों का गठन किया, जिन्हें उप-मंडल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के नेतृत्व में स्कूलों की जांच करने और 18-सूत्रीय प्रश्नावली के आधार पर अनुपालन की जांच करने का निर्देश दिया गया।

इसके अलावा दिल्ली कैबिनेट ने 29 अप्रैल, 2025 को दिल्ली स्कूल शिक्षा (फीस निर्धारण और विनियमन में पारदर्शिता) विधेयक, 2025 को मंजूरी दी। इस विधेयक का उद्देश्य 1,677 निजी स्कूलों में फीस वृद्धि को विनियमित करना, तीन-स्तरीय समितियों का गठन करना, और गैर-अनुपालन के लिए 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाना है। विधेयक में अभिभावकों, विशेष रूप से महिलाओं और एससी/एसटी समुदायों के प्रतिनिधियों को समितियों में शामिल करने का प्रावधान है, जो पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देता है। यह कितना प्रभावशाली होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

सरकार को डीएसईएआर, 1973 को और सख्त करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी स्कूल, चाहे वे सरकारी या निजी जमीन पर हों, फीस वृद्धि से पहले डीओई से अनुमति लें। नियमित ऑडिट और पारदर्शी वित्तीय रिपोर्टिंग अनिवार्य होनी चाहिए। फीस निर्धारण समितियों में अभिभावकों का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाना चाहिए। राज्यों के मॉडल, जहां दो साल में 15% से अधिक वृद्धि के लिए तीन-चौथाई अभिभावकों की सहमति आवश्यक है, को लागू किया जा सकता है।

स्कूलों को उन छात्रों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने से रोकने के लिए सख्त दिशानिर्देश लागू किए जाने चाहिए, जिनके अभिभावक फीस का भुगतान करने में असमर्थ हैं। बच्चों के अधिकारों की बाल अधिकार संधि (यूएनसीआरसी) के सिद्धांतों को लागू करना चाहिए। फीस वृद्धि को राजनीतिक मुद्दा बनाने के बजाय, सभी दलों को एकजुट होकर दीर्घकालिक समाधान खोजने चाहिए। अन्य राज्यों, जैसे हरियाणा और उत्तर प्रदेश, में लागू उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित समायोजन को दिल्ली में भी लागू किया जा सकता है।

दिल्ली के निजी स्कूलों में फीस वृद्धि की समस्या केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक भी है। यह शिक्षा के मौलिक अधिकार को कमजोर करती है और मध्यम वर्ग के परिवारों पर अनुचित बोझ डालती है। दिल्ली सरकार का हालिया विधेयक एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इसकी सफलता सख्त प्रवर्तन और सभी हितधारकों के सहयोग पर निर्भर करती है। शिक्षा को लाभ का साधन बनाने के बजाय इसे सभी के लिए सुलभ और किफायती बनाने की दिशा में केंद्र सरकार को भी ठोस प्रयास करने चाहिए।

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Pic Credit: ANI

रजनीश कपूर

दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक। नयाइंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर।

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