बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण का तमाशा चल रहा है। समूचा बिहार इस तमाशे का रंगमंच बना है। कहीं खेतों के बीच बूथ लेवल अधिकारी यानी बीएलओ चटाई या चादर बिछा कर बैठा है उसको घेर कर लोग बैठे हैं और फॉर्म भरने का काम चल रहा है। इसी तरह खलिहानों में, बागीचों में और लोगों के घरों के दरवाजों पर जमावड़ा लगा है या बीएलओ के घरों के बाहर वैसे ही भीड़ खड़ी है, जैसी बाढ़ राहत हासिल करने के लिए खड़ी होती है। बीएलओ फॉर्म भर रहे हैं। ज्यादातर लोगों के पास जरूरी दस्तावेज नहीं हैं। लेकिन बीएलओ उनसे फॉर्म ले रहे हैं। उधर प्रखंड और शहरी निकायों के कार्यालयों में भीड़ लगी है। लोग आवास और जाति का प्रमाणपत्र बनवाने के लिए आवेदन जमा कर रहे हैं और बदले में आश्वासन हासिल कर रहे हैं। इस बीच पुनरीक्षण अभियान खत्म होने के समय नजदीक आ रहा है। चुनाव आयोग दावा कर रहा है कि 84 फीसदी से ज्यादा लोगों ने फॉर्म भर कर जमा कर दिया है। इतना ही नहीं आयोग ने 84 फीसदी फॉर्म भरे जाने के आधार पर यह भी बता दिया कि कितने लोगों का नाम मतदाता सूची से कटने जा रहा है।
सोचें, कितना कार्यकुशल है चुनाव आयोग कि उसने मतगणना प्रपत्र बांटने के बाद आठ दिन में 84 फीसदी लोगों के प्रपत्र जमा करा लिए, उनको कंप्यूटर में फीड कर दिया और उनको शॉर्टलिस्ट भी कर लिया! चुनाव आयोग ने बताया है कि 35 लाख 70 हजार नाम हटा दिए जाएंगे। इतना सटीक आंकड़ा चुनाव आयोग ने कैसे निकाला है यह किसी को पता नहीं है। लेकिन आयोग की ओर से बताया जा रहा है कि 12 लाख 55 हजार 622 लोग मृत पाए गए हैं, 17 लाख 37 हजार 337 लोग स्थायी रूप से दूसरी जगह चले गए हैं और पांच लाख 76 हजार 470 लोग दूसरी जगह मतदाता बन गए हैं।
यह संख्या 35 लाख 70 हजार बनती है, इतने नाम मतदाता सूची से कट जाएंगे। चुनाव आयोग की ओर से ऐलान कर दिया गया है कि छह करोड़ 95 लाख 36 हजार 230 लोगों की स्थिति स्पष्ट है। यानी वे बिहार के मतदाता हैं। मतगणना प्रपत्र जमा होना शुरू होने यानी सात जुलाई के बाद महज आठ दिन में इतने फॉर्म जमा करना, उनके आंकड़े कंप्यूटर में फीड करना, सारे दस्तावेज अपलोड करना और उनका विश्लेषण करके और उसके बाद इतना सटीक आंकड़ा जारी करना कि कितने लोग मृत पाए गए, कितने बाहर चले गए और कितने दूसरी जगह मतदाता बन गए, एक चमत्कार की तरह है। महान साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल के शब्दों में थोड़ा हेरफेर करके कह सकते हैं कि, ‘भगवान ने चमत्कार दिखाने के लिए फिर बिहार की भूमि को ही चुना’!
चुनाव आयोग का यह आंकड़ा कई सवाल खड़े करता है। पहला सवाल तो यही है कि उसे इतनी हड़बड़ी में यह आंकड़ा जारी करने की क्या जरुरत है कि कितने लोगों के नाम कटेंगे? उसी के हिसाब से 15 जुलाई तक 84 फीसदी फॉर्म जमा हुए थे यानी 16 फीसदी फॉर्म जमा होने बाकी हैं तो क्या उनमें से किसी का नाम नहीं कटेगा? उनमें भी तो मृतक या स्थायी रूप से दूसरी जगह चले गए लोग हो सकते हैं या बहुत से लोग 25 जुलाई तक फॉर्म नहीं जमा करा पाएंगे? फिर आय़ोग ने उनका भी आंकड़ा आने का इंतजार क्यों नहीं किया? इसी तरह जिन करीब सात करोड़ लोगों की स्थिति स्पष्ट होने की बात चुनाव आयोग ने कही है क्या उनके दस्तावेजों की जांच हो चुकी है?
क्या सात करोड़ लोगों ने चुनाव आयोग की ओर से निर्धारित किए गए 11 दस्तावेजों में से कोई न कोई दस्तावेज जमा करा दिया है और वो सही पाए गए हैं? अगर ऐसा है तो यह और भी बड़ा चमत्कार है क्योंकि बिहार की ज्यादातर आबादी के पास आधार, मनरेगा और राशन कार्ड के अलावा दूसरे दस्तावेज नहीं हैं। तो क्या चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की सलाह के मुताबिक चुपचाप आधार, मनरेगा और राशन कार्ड को स्वीकार कर लिया है? अगर ये कार्ड स्वीकार कर लिए जाते हैं तो फिर पुराने स्टैंड का क्या होगा कि इनसे नागरिकता का सत्यापन नहीं हो सकता है?
अगर चुनाव आयोग की मानें कि सिर्फ 35.70 लाख लोगों के नाम कटेंगे और वह भी मृत होने, शिफ्ट हो जाने या दूसरी जगह मतदाता बन जाने के आधार पर तो इसका मतलब है कि नागरिकता प्रमाणित करने में असफल रहने के आधार पर किसी का नाम नहीं कट रहा है! फिर सवाल है कि चुनाव आयोग के सूत्रों के हवाले से यह बात कैसे मीडिया में आई कि बूथ लेवल अधिकारियों ने घर घर जाकर जो सर्वेक्षण किया उसमें बहुत से विदेशी मिले हैं? पिछले दिनों चुनाव आयोग के सूत्रों के हवाले से यह खबर आई थी कि बीएलओ को घर घर सर्वेक्षण के दौरान बहुत से बांग्लादेशी, रोहिंग्या और नेपाली मिले, जिनके नाम मतदाता सूची में थे।
अगर ऐसा है तो चुनाव आयोग यह क्यों नहीं बता रहा है कि कितने विदेशी नागरिकों के नाम मतदाता सूची से काटे जाएंगे? ध्यान रहे चुनाव आयोग ने 2019 में संसद को बताया था कि भारत के मतदाता सूची में विदेशी नागरिकों के नाम गगण्य हैं। आयोग ने बताया था कि 2018 में सिर्फ तीन ऐसे मामले सामने आए थे। सोचें, अगर 2019 तक पूरे देश में विदेशी नागरिक का नाम मतदाता सूची में शामिल होने के सिर्फ तीन मामले थे तो उसके बाद पांच साल में सिर्फ बिहार में ही कैसे ऐसे मामलों की बड़ी संख्या हो गई? क्या बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों के मतदाता होने का मामला सही है या सिर्फ धारणा बनाने के लिए इसका प्रचार किया गया है? यह सवाल इसलिए है क्योंकि चुनाव आयोग इस आधार पर किसी का नाम कटने की बात नहीं कर रहा है। अभी तक न विदेशी नागरिक होने के आधार पर किसी का नाम कट रहा है और न दस्तावेज कम होने के आधार पर किसी का नाम कट रहा है।
चुनाव आयोग की ओर से सीधे या सूत्रों के हवाले से बताई जा रही खबरों से इतर बिहार में जमीनी स्थिति बिल्कुल अलग है। जमीन पर अफरा तफरी मची है। लोग बेचैन होकर बूथ लेवल अधिकारियों को खोज रहे हैं। बूथ लेवल अधिकारी अपने घरों में बैठे हैं। वे फॉर्म भरने के लिए सुविधा शुल्क या चाय पानी का पैसा मांग रहे हैं। ऑनलाइन फॉर्म भरने के लिए 20 रुपए से लेकर 50 रुपए तक प्रति फॉर्म वसूले जा रहे हैं। कई जगहों पर बूथ लेवल अधिकारियों ने सफाईकर्मियों के हाथों लोगों के घरों पर फॉर्म भिजवा दिए और लोगों से व्हाट्सऐप पर आधार की फोटो मंगवा रहे हैं।
विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण यानी एसआईआर के नियम में भरे हुए फॉर्म की दो प्रति हर मतदाता तक पहुंचानी है ताकि फॉर्म भरने के बाद एक प्रति पावती के रूप में मतदाता के पास रहे। लेकिन शायद ही किसी मतदाता के पास मतगणना प्रपत्र की दो प्रति पहुंची है। गिनती के मतदाताओं को पावती मिली है। रिसीविंग मांगने पर बूथ लेवल अधिकारी कह रहे हैं कि उनके ऊपर भरोसा कीजिए। अनेक इलाकों में लोग पार्षद या मुखिया के यहां फॉर्म लेकर पहुंच रहे हैं। मुखिया और पार्षद उनका फॉर्म बीएलओ को भेज रहे हैं। ज्यादातर में कोई दस्तावेज नहीं होता है और लोगों को पता नहीं होता है कि उनका फॉर्म जमा हुआ या नहीं। कुल मिला कर गहन पुनरीक्षण के नाम पर बिहार में तमाशा चल रहा है। चुनाव आयोग ने इतने गंभीर और जरूरी काम को प्रहसन बना दिया है।