यदि किसी भी व्यापार में एक से अधिक व्यापारी होते हैं और उन्हें अपने उत्पादन को ग्राहकों तक पहुँचाना है तो सभी को बराबरी का अवसर मिलना चाहिए। ऐसे में यदि कोई व्यापारी जिसके पास ग्राहकों की ज़रूरी जानकारी पहले से ही मौजूद है, कोई अनुचित रास्ता अपनाता है, तो वह चोरी की श्रेणी में ही आएगा। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब इन डिलीवरी वाली ‘इ-कॉमर्स’ कंपनियों को किसी अदालत या अन्य क़ानूनी पटल द्वारा लताड़ा न गया हो।
आज के युग में हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां सुविधा ही मुख्य मंत्र है। जहां गति ही सर्वोच्च है। इस नये युग में ‘क्विककॉमर्स’ या ‘इ-कॉमर्स’ की सफलता को इससे बेहतर नहीं समझा जा सकता। आज ‘इ-कॉमर्स’ ने हमारे खरीदारी करने के तरीके में क्रांति ला दी है। अब कुछ ‘इ-कॉमर्स’ वाली कंपनियां एक कदम आगे छलांग लगाने जा रहीं हैं जिससे कई मौजूदा और स्थापित उद्योगों को भारी चोट पहुँच सकती है। ग्राहकों को लुभाने की दृष्टि से कुछ ‘इ-कॉमर्स’ कंपनियाँ अनुचित व्यापार के तरीक़ों से मौजूदा उद्योगों के ग्राहकों को छीनने का प्रयास करने जा रही है। इस क्रम में फ़िलहाल कुछ खाना डिलीवर करने वाली ‘इ-कॉमर्स’ कंपनियों की सूची है जो अपने मौजूदा रेस्टोरेंट मालिकों के साथ सीधी टक्कर लेने को तैयार है।
कल्पना कीजिए कि आप अपना मनचाहा स्वादिष्ट भोजन खाना चाहते हैं। अभी तक आप मौजूदा डिलीवरी ऐप्स के ज़रिए अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट से वह भोजन माँगा लेते हैं। रेस्टोरेंट की व्यस्तता, आपके घर से उसकी दूरी और आपके द्वारा मंगाए गये भोजन की मात्रा के अनुसार आपको वह भोजन 20-25 मिनट या उससे अधिक में, घर बैठे ही मिल जाता है। इस व्यवस्था में आपको और आपके पसंदीदा रेस्टोरेंट, दोनों को ही फ़ायदा रहता है। आपको आपका मनपसंद भोजन घर बैठे ही मिल जाता है और आपके पसंदीदा रेस्टोरेंट को उसके जमे-जमाए ग्राहकों से धंधा मिल जाता है। इसके लिए यदि आपको और रेस्टोरेंट मलिक को डिलीवरी वाली ‘इ-कॉमर्स’ कंपनी कुछ कमीशन भी देना पड़े तो वह चुभता नहीं।
जब यह व्यवस्था नई-नई शुरू हुई थी तो ग्राहकों, डिलीवरी करने वाले साथियों और रेस्टोरेंट मालिकों को लुभाने की दृष्टि से, ये कंपनियाँ काफ़ी अच्छे ऑफर्स देते थे। देखते ही देखते इन सभी की संख्या लाखों करोड़ों में पहुँच गई। इसके साथ ही इन डिलीवरी वाली ‘इ-कॉमर्स’ कंपनियों की कमीशन भी बढ़ी। सभी एक दूसरे के फ़ायदे के लिए ज़रिया भी बने। कोरोना काल में तो ये ‘इ-कॉमर्स’ कंपनियाँ काफ़ी मददगार भी साबित हुईं। परंतु अब कुछ ऐसा सुनने में आया है जिससे कि अधिकतर रेस्टोरेंट मलिक इन डिलीवरी ‘इ-कॉमर्स’ कंपनियों के ख़िलाफ़ अदालत का रुख़ भी करने को मजबूर हो रह हैं।
उल्लेखनीय है कि कुछ डिलीवरी ‘इ-कॉमर्स’ कंपनियों ने अपने ही ब्रांड के कुछ व्यंजनों को बाज़ार में उतारने की तैयारी कर ली है। इस नये प्रयोग के तहत जो भी मशहूर व स्वादिष्ट व्यंजन की माँग ग्राहकों से अधिक मिलती थी उन सबसे मिलते-जुलते व्यंजनों को ये कंपनियाँ अपने ही लेबल और ब्रांड का बता कर बाज़ार में उतारने जा रही है। ऐसे में अपने ब्रांड के व्यंजनों को ग्राहकों के बीच लोकप्रिय करने की दृष्टि से वह इन व्यंजनों को मात्र दस से पंद्रह मिनट में ही पहुँचाने का दावा करने जा रही है।
ये सब व्यंजन ‘रेडी-टू-ईट’ की श्रेणी में पहले से ही इन कंपनियों के द्वारा इकट्ठा किए जाएँगे और जैसे ही किसी ग्राहक को इससे मिलते जुलते भोजन का ऑर्डर देना होगा तो ये कंपनियाँ ग्राहकों को मौजूदा रेस्टोरेंट से कम दाम और कम समय में डिलीवर करने की ऑफर देंगी। निश्चित रूप से ज़्यादातर ग्राहक सस्ती और जल्दी के चक्कर में पड़ ही जाएँगे।
सोचने वाली बात यह है कि यदि आप अपने मनपसंद पराँठे को खाना चाहें लेकिन जितना समय आपको उसे बनाने में लगेगा उससे आधे समय में यदि गरमा-गर्म पराँठा आप तक पहुँच जाए तो आप अपनी जेब ढीली करने में देर नहीं लगाएँगे। आजकल के दौर में जब समय ही सब कुछ है और अधिकतर काम आपको कंप्यूटर पर ही करना होता है तो बिना समय बर्बाद किए काम के साथ-साथ भोजन भी मिल जाए तो क्या कहने। परंतु जहां रेस्टोरेंट मलिक इन डिलीवरी ‘इ-कॉमर्स’ कंपनियों के मौजूदा व्यवस्था से खुश थे वहीं वे इन कंपनियों के नये अवतार में आने की खबर से काफ़ी चिंतित हैं।
भारत की नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन (एन॰आर॰ए॰आई) ने डिलीवरी ऐप्स की ‘इ-कॉमर्स’ कंपनियों के ख़िलाफ़ अदालत जाने की पूरी तैयारी कर ली है। वे इसे अनुचित व्यापार प्रथा मानते हैं। एनआरएआई के मुताबिक़ इन डिलीवरी ऐप्स की ‘इ-कॉमर्स’ कंपनियों के पास सभी ग्राहकों के विस्तृत जानकारी होती है। जैसे कि उनके नाम, पता, फ़ोन नम्बर इत्यादि। इतना ही नहीं ग्राहकों द्वारा बार-बार या कब-कब कौनसा भोजन मंगाया जाता है इस सबकी भी जानकारी होती है जो वे रेस्टोरेंट से कभी साझा नहीं करते। एनआरएआई के मुताबिक़ चूँकि रेस्टोरेंट मालिकों के पास उसके डिलीवरी ऐप्स वाले ग्राहकों की सूची नहीं होती, इसलिए उनको यह नहीं पता चलता कि खाना किस ग्राहक ने मंगाया है। ऐसे में यदि ये डिलीवरी ऐप्स वाली ‘इ-कॉमर्स’ कंपनियाँ रेस्टोरेंट के ग्राहकों को तोड़ने का काम कर रही है तो यह अनुचित व्यापार प्रथा है।
यदि किसी भी व्यापार में एक से अधिक व्यापारी होते हैं और उन्हें अपने उत्पादन को ग्राहकों तक पहुँचाना है तो सभी को बराबरी का अवसर मिलना चाहिए। ऐसे में यदि कोई व्यापारी जिसके पास ग्राहकों की ज़रूरी जानकारी पहले से ही मौजूद है, कोई अनुचित रास्ता अपनाता है, तो वह चोरी की श्रेणी में ही आएगा। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब इन डिलीवरी वाली ‘इ-कॉमर्स’ कंपनियों को किसी अदालत या अन्य क़ानूनी पटल द्वारा लताड़ा न गया हो। लेकिन इस ताज़ा मामले में क्या होता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा परंतु एक बात तो तय है कि व्यापार चाहे रेस्टोरेंट का हो या रोज़मर्रा के सामान की ख़रीदारी का, सभी को एक समान अवसर ही मिलना चाहिए। ग्राहक जिसे भी चुने मर्ज़ी उसी की। छल और कपट से किया गया व्यापार ज़्यादा दिन तक नहीं चलता।