Wednesday

30-04-2025 Vol 19

अर्जेंटीना में बड़बोले नेता से हड़कंप

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न जाने क्यों मगर अर्जेंटीना में सब कुछ नकारात्मक ही है।इस देश के पास अकूत प्राकृतिक संसाधन हैं और उन्हें प्रोसेस करने के लिए ज़रूरी कारखाने भी। मगर फिर भी वह विकास में फिसड्डी है। आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। और हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। मुद्रास्फीति की दर 120 प्रतिशत है, गरीबी बढ़ रही है और देश तेजी से मंदी की गिरफ्त में जा रहा है। जहाँ अर्थ के क्षेत्र में अर्जेंटीना एक तरह का अपवाद वहीं  राजनैतिक दृष्टि से वह दूसरी तरह का अपवाद है। राजनीति, राजनैतिक संस्थाओं और राजनैतिक दलों के मामले में अर्जेंटीना में काफी स्थिरता है। या कम से कम अब तक थी।

पिछले कुछ समय से इतालवी मूल के दक्षिणपंथी नेता खावीएर मिलेई ने देश के राजनैतिक नेरेटिव में हड़कंप मचा रखा है। उन्होंने इस साल गर्मियों में हुए देश के प्रायमरी चुनाव में जीत हासिल की और राष्ट्रपति पद की दौड़ में वे सबसे आगे नजर आ रहे हैं। वे मानते हैं कि देश का आर्थिक मॉडल, जो अर्थव्यवस्था में राज्य के हस्तक्षेप और जनकल्याणकारी नीतियों पर आधारित है, असफल हो गया है और वे इसे दुरूस्त करेंगे। वे अपने आपको बब्बर शेर कहते हैं और अगस्त में प्रायमरी जीतने के बाद उन्होंने दहाड़ते हुए कहा था ‘‘मैं इस रास्ता भटकी हुई दुनिया का राजा हूं”।

खावीएर मिलेई स्वयं को राजनीति में बाहरी व्यक्ति बताते हैं। वे कंसलटेंट और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में काम कर चुके हैं। उनका वायदा है कि वे देश को “ऐसे परजीवी और अपराधी प्रवृति के राजनीतिज्ञों से मुक्ति दिलाएंगे जो किसी काम के नहीं हैं देश को डुबोने पर आमादा हैं”।और उन्हें जनता का प्यार मिल रहा है। अर्जेंटीना में पिछले दो दशकों में ज्यादातर समय वामपंथी शासन रहा है। पिछली बार ‘टुगेदर फार चेंज’ – जो एक मध्य दक्षिणपंथी गठबंधन था – का शासन सन् 2015 से 2019 तक रहा, जिसके अंत में देश संकट में फँस गया। रैलियों में उनके समर्थक नारा लगाते हैं ‘‘इन सब से हमें छुटकारा दिलवाओ”।

इसमें कोई संदेह नहीं कि अर्जेंटीना डूब रहा है। वेनेजुएला, ज़िम्बाब्वे और लेबनान के बाद सबसे अधिक मुद्रास्फीति अर्जेंटीना में है। सन् 2018 में देश ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से 57 अरब डालर का ऋण लिया। कोष इसमें से जब 44 अरब डालर दे चुका था तब यह स्पष्ट हो गया कि अर्जेंटीना कर्ज चुका नहीं सकेगा। तब  सन् 2022 में ऋण की शर्तें दुबारा तय की गईं। कोष ने अर्जेंटीना से कहा कि वह अपने प्राथमिक घाटे को कम करे, अपने केन्द्रीय बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाए और बजट घाटे की पूर्ति के लिए केन्द्रीय बैंक द्वारा छापी जाने वाली मुद्रा की मात्रा में कमी लाए। लेकिन अर्जेन्टीना इन लक्ष्यों को हासिल करने में असफल रहा। भीषण सूखे के चलते निर्यात में भी बहुत गिरावट आई है।

इन आर्थिक समस्याओं का मुकाबला करने के लिए खावीएर मिलेई ने खर्चे कम करने की एक योजना प्रस्तावित की है जिसके अंतर्गत वे वर्तमान 18 मंत्रालयों में से 10 (जिनमें शिक्षा मंत्रालय भी है) को ख़त्म करना चाहते हैं। खर्च में जीडीपी के 15 प्रतिशत के बराबर की कमी करने और पूंजी संबंधी बंदिशों को उठाना भी उनकी योजना में शामिल है। वे विदेशी व्यापार के लिए देश के दरवाजों को और खोलने तथा घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों के निजीकरण के भी पक्षधर हैं। वे पेसो के बजाए डालर को देश की मुद्रा बनाना चाहते हैं। और उनके सिर्फ आर्थिक विचार ही क्रन्तिकारी नहीं है बल्कि बात इससे भी आगे तक जाती है। उन्होंने गर्भपात पर पाबंदी लगाने, अर्जेंटीना की जनता पर बंदूकें रखने संबंधी सभी नियम-कानूनों को हटाने और मानव अंगों के व्यापार को कानूनी दर्जा देने का वायदा किया है। वे क्लाइमेट चेंज को एक “समाजवादी झूठ” बताते हैं। उनका कहना है कि पोप ‘‘शैतान के दूत हैं, स्त्रियों के प्रति द्वेष रखते हैं और चर्चा में बने रहने के लिए अजीबोगरीब बातें करते हैं।” मिलेई ट्रंप के प्रशंसक हैं तो ब्राजील के राष्ट्रपति जाइर बोलसोनारो, मिलेई के प्रशंसक हैं।

गुस्से से भरे और हैरान-परेशान अर्जेंटीना निवासियों के लिए, मिलेई के ये मौलिक विचार मधुर संगीत की तरह हैं। वे वर्तमान राजनैतिक दलों से कुंठित हैं और भविष्य को लेकर आशंकित हैं – जिसका फायदा अतिदक्षिणपंथी वर्तमान में उठा रहे हैं। इसलिए लोग मिलेई की सारी बेतुकी बातों को नजरअंदाज कर रहे हैं।

बताया जाता है कि सन् 1978 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार के विजेता साईमोन कुज़न्येट्स ने कहा था कि  ‘‘देश चार प्रकार के होते हैं विकसित देश, विकासशील देश, जापान और अर्जेंटीना।” अब तक अर्जेंटीना राजनैतिक स्थिरता कायम रखने में कामयाब रहा है लेकिन यदि मिलेई अगले राष्ट्रपति बनते हैं तो अर्जेंटीना एक और मामले में अपवाद बन जाएगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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