Wednesday

30-04-2025 Vol 19

एक विलक्षण लेखक विनोद कुमार शुक्ल

विनोद कुमार शुक्ल ऐसे कवि हैं, जिन्होंने मुक्तिबोध से प्रभावित होते हुए अपनी राह खुद बनाई। उन पर मुक्तिबोध का उस तरह असर दिखाई नहीं देता है। हालांकि मुक्तिबोध ने जब शुक्ल से उनके युवा दिनों में उनकी कविताएं सुनी थी तो उन्होंने उनसे यह सवाल किया था पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है, जो हिंदी का काफी प्रसिद्ध वाक्य बन गया।

हिंदी के यशस्वी लेखक विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने पर साहित्य जगत में अभूतपूर्व स्वागत हुआ है। हिंदी की दुनिया में यह भी कहा जा रहा है कि भारतीय ज्ञानपीठ ने श्री शुक्ल को पुरस्कार देकर अपनी खराब होती हुई छवि को सुधारने की भी कोशिश की है। दरअसल पिछले वर्ष भारतीय ज्ञानपीठ ने रामभद्राचार्य को संस्कृत साहित्य में योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा था, जिसकी काफी तीखी आलोचना भी हुई थी। आलोचना का कारण रामभद्राचार्य की वैचारिकी थी। वे राम मंदिर आंदोलन से जुड़े ही थे लेकिन उनकी दलित विरोधी और मुस्लिम विरोधी बयानों को देखकर हिंदी साहित्य जगत में काफी विरोध हुआ और यह सवाल उठा कि दक्षिणपंथी मानसिकता के लेखक को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार क्यों दिया गया क्योंकि इससे पहले किसी बड़े लेखक ने ऐसे बयान नहीं दिए थे।

इस घटना को देखते हुए इस वर्ष जब श्री शुक्ल को यह पुरस्कार मिला तो साहित्य की दुनिया में हर्ष की लहर दौड़ गई। सोशल मीडिया पर लोगों ने प्रतिक्रियाएं दी कि भारतीय ज्ञानपीठ ने इस बार एक अच्छा निर्णय लिया है और अपनी पुरानी छवि को बरकार रखा है तथा साहित्य में गुणवत्ता की भी पहचान की है। हालांकि श्री शुक्ल जब 90 छूने लगे तो उन्हें यह पुरस्कार मिला। पिछले 60 वर्षों से साहित्य की दुनिया में सक्रिय हैं श्री शुक्ल। मुक्तिबोध के जमाने से लिख रहे हैं और उनकी मुक्तिबोध से मुलाकात भी हुई थी। वे उसी राजनांदगांव के हैं, जहा के मुक्तिबोध थे। इस समय हिंदी में तीन-चार लेखक ही बचे हैं, जिनके मुक्तिबोध से सम्बंध थे लेकिन विनोद कुमार शुक्ल ऐसे कवि हैं, जिन्होंने मुक्तिबोध से प्रभावित होते हुए अपनी राह खुद बनाई। उन पर मुक्तिबोध का उस तरह असर दिखाई नहीं देता है। हालांकि मुक्तिबोध ने जब शुक्ल से उनके युवा दिनों में उनकी कविताएं सुनी थी तो उन्होंने उनसे यह सवाल किया था पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है, जो हिंदी का काफी प्रसिद्ध वाक्य बन गया।

विनोद कुमार शुक्ल ने 60 के दशक में लिखना शुरू किया था और उनकी पहली काव्य पुस्तिका ‘लगभग जय हिंद’ 1971 में प्रकाशित हुई थी, जिसे अशोक वाजपेयी ने पहचान सीरीज में छापा था। लेकिन उन्हें कवि के रूप में पहचान उनके पहले कविता संग्रह ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह’ से बनी। इससे पहले 1979 में वे ‘नौकर की कमीज’ जैसा विलक्षण उपन्यास लिख चुके थे। उनके इस कविता संग्रह के शीर्षक ने लोगोँ का ध्यान खींचा और वह बहुत ही आकर्षक लगा था। इतना लंबा शीर्षक आज तक किसी कविता संग्रह का नहीं है। असल में शुक्ल जी ने कविता का अपना एक नया मुहावरा विकसित किया और पुराने शिल्प को तोड़ा। वे कविता में एक नया संसार विकसित करते हैं और कविता के प्रचलित उपकरणों के जरिए कविता नहीं लिखते हैं। वह कविता में बहुत कुछ तोड़ते और जोड़ते हैं। उनकी यह अदायगी लोगों को पसंद आई। लेकिन विनोद कुमार शुक्ल केवल एक महत्वपूर्ण कवि के रूप में ही नहीं जाने गए, बल्कि एक उपन्यासकार के रूप में भी उनकी प्रतिष्ठा काफी बड़ी है।

‘नौकर की कमीज’ जैसा उनक़ा उपन्यास मील का पत्थर माना गया जो हिंदी में अपने तरह का अनूठा उपन्यास है। उन्होंने इस उपन्यास को जिस तरह विकसित किया है उसकी कला से लोग अभी भी गहरे रूप से प्रभावित है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के जीवन को देखा है और इस उपन्यास में उसकी एक झलक दिखलाई पड़ती है। लेकिन जो लोग जीवन संघर्ष या सामाजिक संघर्ष और राजनीतिक संघर्ष को थोड़ा मुखर रूप से देखना चाहते हैं उनको निराशा हो सकती है क्योंकि इसमें ऐसी कोई मुखरता उपन्यास में दिखाई नहीं देती है। फिर भी उसे उपन्यास को अगर आप एक उपन्यास के नए ढांचे के विकास के रूप में देखें तो अपने किस्म का अनोखा उपन्यास है। उसके बाद भी उन्होंने दो और महत्वपूर्ण उपन्यास लिखे, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’।

इन उपन्यासों के बारे में कहा गया कि यह उपन्यास कम कविता अधिक हैं और उन्होंने इसमें उपन्यास के प्रचलित ढांचे को तोड़ा है। दरअसल विनोद कुमार शुक्ल अपनी हर रचना में एक नया शिल्प रचते हैं, नवाचार करते हैं और पुराने ढांचे को तोड़ते हैं। वह नया कुछ सृजन करते हैं और इसी नए सृजन में उनकी सृजनात्मक छिपी हुई है और उसका एक अर्थ भी छिपा हुआ है।

विनोद जी जबलपुर से नेहरू कृषि संस्थान से कृषि विज्ञान में एमएसी पढ़ कर निकले और रायपुर में उन्होंने नौकरी की और वही एक कृषि कॉलेज में आजीवन लेक्चरर बनकर रह गए। श्री शुक्ल हिंदी के ऐसे लेखक हैं, जो साहित्य की गुटबाजी या राजनीति या सत्ता वर्ग से जोड़ तोड़ आदि से दूर रहे। उन्होंने अपनी निष्ठा को बनाए रखा और अंतर्मुखी स्वभाव को बरकरार रखा। उनके इस व्यक्तित्व को उनके लेखन में भी देखा जा सकता है। अज्ञेय और निर्मल वर्मा के बाद अगर हिंदी में कोई लेखक हुआ, जिसने अपनी रचना में अपनी निजता को, एकांत को, अंतःपुर को बचाए रखा तो वे विनोद कुमार शुक्ल हैं।

शुक्ल का महत्व इस बात से भी है कि जिस तरह रेणु ने अपने समय में साहित्य को नया आस्वाद दिया इस तरह से विनोद कुमार शुक्ला ने भी साहित्य को एक नया आस्वाद दिया है। हालांकि उन पर यह भी आरोप लगाते रहे हैं कि उनकी रचनाएं बहुत अधिक संप्रेषित नहीं करती हैं। वह केवल कवियों के लिए कविताएं लिखते हैं और उनकी कविता पढ़ने और समझने के लिए एक खास तरह की समझ और आस्वाद का विकसित होना बहुत जरूरी है। हालांकि शुक्ल का एक पाठक वर्ग भी है और उनके फैन्स भी काफी हैं। भारतीय ज्ञानपीठ ने श्री शुक्ल को यह सम्मान देकर खुद को भी सम्मानित किया है।

विनीत नारायण

वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी। जनसत्ता में रिपोर्टिंग अनुभव के बाद संस्थापक-संपादक, कालचक्र न्यूज। न्यूज चैनलों पूर्व वीडियों पत्रकारिता में विनीत नारायण की भ्रष्टाचार विरोधी पत्रकारिता में वह हवाला कांड उद्घाटित हुआ जिसकी संसद से सुप्रीम कोर्ट सभी तरफ चर्चा हुई। नया इंडिया में नियमित लेखन। साथ ही ब्रज फाउंडेशन से ब्रज क्षेत्र के संरक्षण-संवर्द्धन के विभिन्न समाज सेवी कार्यक्रमों को चलाते हुए। के संरक्षक करता हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *