सात सौ साल की गुलामी के बाद वक्फ के पास 50 हजार एकड़ जमीन थी लेकिन आजादी के बाद 75 साल में वह बढ़ कर 39 लाख एकड़ हो गई! इसका स्पष्ट अर्थ है कि कानून से मिली ताकत के दम पर सरकारी और आम लोगों की संपत्तियां वक्फ को दान दी गईं और उन पर कब्जा किया गया। इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि वक्फ की संपत्ति में दोगुने से ज्यादा की बढ़ोतरी पिछले 10-12 वर्षों में हुई, जब डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2013 में वक्फ कानून में संशोधन किया।
वक्फ संशोधन बिल का संसद से पास होना देश के इतिहास का एक अहम पड़ाव है। यह विधेयक ऐसी विसंगतियों को दूर करता है, जिनका जन्म ही तुष्टिकरण की राजनीति के गर्भ से हुआ है। कांग्रेस पार्टी ने आजादी के बाद से लगातार चंद ताकतवर लोगों को खुश करने के लिए वक्फ से जुड़े कानूनों को समय समय पर संशोधित किया और उसे ऐसे अधिकार दिए, जो संविधान से संचालित किसी भी लोकतांत्रिक व सभ्य समाज में किसी भी संस्था को नहीं दिए जा सकते हैं। भारत के संविधान ने जो अधिकार सरकार को नहीं दिए थे वह अधिकार कांग्रेस की सरकारों ने वक्फ बोर्ड को दिया था। भारत का संविधान सरकार को किसी की संपत्ति हड़प लेने का अधिकार नहीं देता है लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने वक्फ बोर्ड को अधिकार दिया कि वह किसी भी संपत्ति पर अधिकार कर सकता है। उसे कोई भी संपत्ति दान में लेने का भी अधिकार दिया गया है। वक्फ संशोधन बिल लोकसभा में पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने इसका उल्लेख किया और कहा कि इस कानून की धारा 40 सबसे खतरनाक है, जिसे सरकार हटा रही है। इस धारा के तहत ही किसी भी संपत्ति पर कब्जे का अधिकार वक्फ बोर्ड को मिला था और इसी का प्रभाव यह हुआ कि वक्फ की संपत्ति में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी होती गई।
अन्यथा कोई कारण नहीं था कि वक्फ की संपत्ति, जो आजादी के समय 50 हजार एकड़ थी, वह आजादी के 75 साल बाद बढ़ कर 39 लाख एकड़ हो जाए। यह बेतहाशा बढ़ोतरी इसलिए हुई क्योंकि बिना किसी दस्तावेज के जमीनें दान की जाने लगीं। अगर ऐसा नहीं होता तो इतनी जमीनें कहां से आतीं? दान का जो बुनियादी सिद्धांत है वह ये है कि आप अपनी संपत्ति, अपनी कमाई ही किसी को दे सकते हैं। सभी धर्मों में दान का सिद्धांत है और हर जगह यही नियम लागू होता है कि आप अपनी चीज ही दान कर सकते हैं। यह नहीं हो सकता है कि आप अपने पड़ोसी की संपत्ति दान कर दें और जिसको दान करें वह एक निश्चित कानून के जरिए इतना सक्षम हो कि उस संपत्ति पर उसका अधिकार हो जाए। वक्फ के मामले में ऐसा ही हुआ है। आजादी के बाद इस देश में मुसलमानों के पास इतनी संपत्ति और इतनी जमीनें नहीं थी कि उसमें से 39 लाख एकड़ वे लोग दान कर दें। सामान्य समझ वाले किसी व्यक्ति को भी यह बात समझ में आएगी कि आजादी से पहले दो सौ साल अंग्रेजों का राज था और उससे पहले करीब पांच साल सौ साल मुगल, लोधी, तुर्क जैसे इस्लामिक शासकों ने देश को गुलाम बना कर रखा था। इसका मतलब है कि सात सौ साल की गुलामी के बाद वक्फ के पास 50 हजार एकड़ जमीन थी लेकिन आजादी के बाद 75 साल में वह बढ़ कर 39 लाख एकड़ हो गई! इसका स्पष्ट अर्थ है कि कानून से मिली ताकत के दम पर सरकारी और आम लोगों की संपत्तियां वक्फ को दान दी गईं और उन पर कब्जा किया गया।
इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि वक्फ की संपत्ति में दोगुने से ज्यादा की बढ़ोतरी पिछले 10-12 वर्षों में हुई, जब डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2013 में वक्फ कानून में संशोधन किया। 2014 में लोकसभा के चुनाव होने वाले थे और उससे चंद महीने पहले यूपीए सरकार ने वक्फ कानून को बदल कर उसमें ऐसे प्रावधान किए कि उसकी संपत्ति दोगुनी से ज्यादा बढ़ गई। केंद्रीय गृह मंत्री माननीय श्री अमित शाह जी ने लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान अपने भाषण में बताया कि 2013 में डॉ. मनमोहन सिंह सरकार ने जब इस कानून को बदला उस समय वक्फ बोर्ड के पास 18 लाख एकड़ जमीन थी और उसके बाद अगले 10-12 साल में इसमें 21 लाख एकड़ जमीन और जुड़ गई। फिर वही सवाल है कि मुसलमानों के पास कहां से इतनी जमीन आ गई कि उन्होंने 10 साल में 21 लाख एकड़ जमीन वक्फ को दान कर दी? जाहिर है सरकारी जमीन, सामूहिक इस्तेमाल के लिए छोड़ी गई जमीन, विवादित जमीन या निजी लोगों की जमीनें वक्फ को दान दे दी गई। चूंकि वक्फ कानून में यह प्रावधान किया गया था कि वक्फ कोई भी संपत्ति दान में ले सकता है, किसी भी संपत्ति पर दावा कर सकता है और उसके दावे वाली जमीन का विवाद सिर्फ एक खास ट्रिब्यूनल में सुना जाएगा, जिसके फैसले को किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकेगी, इसलिए उसकी संपत्ति में बेहिसाब बढ़ोतरी हुई।
इसी की ओर ध्यान दिलाते हुए माननीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी ने कहा कि अगर यूपीए सरकार ने 2013 में वक्फ कानून में संशोधन नहीं किया होता तो अब भाजपा सरकार को इस कानून को बदलने वाला संशोधन लाने की जरुरत ही नहीं पड़ती। इससे स्पष्ट है कि केंद्र सरकार को इस कानून की जरुरत क्यों पड़ी। जब पानी सर के ऊपर से गुजरने लगा तो इस कानून को बदला गया। इसमें भी सरकार ने यह प्रावधान किया है कि कानून पिछली तारीख से लागू नहीं होगा। यानी जिस दिन राष्ट्रपति की मंजूरी मिलेगी और सरकार इस कानून को लागू करने के नियमों की घोषणा करेगी उस दिन से ही यह लागू होगा। इससे भी बहुत कुछ बदल जाएगा। सार्वजनिक संपत्तियों पर वक्फ का कब्जा बंद होगा। ट्रिब्यूनल में लंबित मामलों की सुनवाई अदालतों तक जाएगी। अनेक विवादित संपत्तियों का इस देश के कानून के मुताबिक निपटारा होगा। कुल मिल कर कह सकते हैं कि वक्फ बोर्ड कानून और संविधान के दायरे में आएगा। अगर यह कानून नहीं बनता तो केंद्रीय कानून मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने जो आशंका जताई कि ‘हम जहां खड़े होकर इस बिल पर चर्चा कर रही हैं उस पर भी वक्फ का दावा हो जाता’ वह आशंका भी सही साबित हो जाती। फिर भी अगर इस कानून को पिछली तारीख से लागू किया जाता है तो ज्यादा बेहतर होता। अगर सरकार इसे आजादी के समय से यानी 1947 या संविधान लागू होने के समय यानी 1950 से अमल में लाना नहीं चाहती थी तब भी 2013 से तो लागू किया ही जा सकता था। 2013 की समय सीमा इसलिए अहम है क्योंकि उस समय की कांग्रेस सरकार ने विशुद्ध रूप से तुष्टिकरण और राजनीतिक लाभ लेने के उद्देश्य से इस कानून में बदलाव किया था। चुनाव से चंद महीने पहले इसे बदला गया था। इसलिए अगर इस कानून को 2013 से लागू किया जाता तो जो 21 लाख एकड़ जमीन इस अवधि में वक्फ के कब्जे में गई है उसे छुड़ाया जा सकता था। यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि भारत में जमीन सबसे मूल्यवान वस्तु है क्योंकि आबादी के अनुपात में भारत का क्षेत्रफल बहुत कम है। आने वाले समय में सामरिक और रणनीतिक शक्ति उसके हाथ में होगी, जिसके पास जमीन होगी। और वास्तविकता यह है कि भारत के क्षेत्रफल का पांच फीसदी हिस्सा वक्फ बोर्ड के पास है।
अच्छी बात यह है कि अब इसके प्रबंधन की एक पारदर्शी और संविधान सम्मत व्यवस्था बनाई गई है। यहां यह बात भी समझने की है कि वक्फ कोई धार्मिक कामकाज करने वाली संस्था नहीं है। यह मस्जिद, मदरसों आदि का नियंत्रण करने या धार्मिक फतवे जारी करने वाली संस्था भी नहीं है। यह सिर्फ जमीन और संपत्तियों के प्रबंधन के लिए बनाया गया एक बोर्ड है। परंतु दुर्भाग्य से राजनीतिक दलों और बड़े स्वार्थ समूहों ने इसे धर्म से जोड़ दिया है। इस कानून में बदलाव को मुसलमानों के धर्म, धर्मस्थलों और धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप के तौर पर प्रचारित किया गया। परंतु यह सचाई नहीं है। सचाई यह है कि वक्फ दान में मिली संपत्तियों का प्रबंधन करने वाली एक संस्था है, जिसके प्रबंधन को पारदर्शी बनाने और कामकाज को बेहतर बनाने के मकसद से कानून में बदलाव किया गया है। इसलिए यह समझ लेना चाहिए कि इस कानून का मजहब या मजहबी काम से कोई वास्ता नहीं है। मुस्लिम समाज के लोगों को भी ऐसे लोगों से सावधान हो जाना चाहिए, जो वक्फ कानून को धर्म में हस्तक्षेप बता कर इसके खिलाफ लोगों को भड़का रहे हैं। वे किसी का भला नहीं करना चाहते हैं। वे सिर्फ अपना भला करना चाह रहे हैं। बिहार के महामहिम राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान साहब ने जो कहा उसे ध्यान से सुनने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि वक्फ से किसी गरीब मुसलमानों को मदद नहीं मिलती है। वक्फ के पास एक लाख 20 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति है और उससे साल में सिर्फ दो सौ करोड़ रुपए की कमाई होती है। क्या ऐसा हो सकता है? एक रिपोर्ट के मुताबिक वक्फ के पास जितनी संपत्ति है उसका ठीक से प्रबंधन हो तो हर साल 12 हजार करोड़ रुपए की कमाई होगी। निश्चित रूप से अब भी कमाई हजारों करोड़ रुपए की होती है, जो चंद लोगों की जेब में जाती है। नए कानून से इसे ठीक किया जा सकेगा और तब मुस्लिम समाज का ज्यादा भला होगा।
नए कानून में प्रबंधन को पूरी तरह से पारदर्शी बना दिया गया है। नए कानून के जरिए पहली बार वक्फ बोर्ड में दो महिलाओं को सदस्य बनाया जाएगा। पहली बार पिछड़े मुस्लिम समाज के लोगों को इसमें जगह दी जाएगी। बोहरा और अगखानी मुस्लिम समुदायों के लिए अलग वक्फ बोर्ड बनाने का प्रावधान किया गया है। केंद्र सरकार सेंट्रल वक्फ काउंसिल में तीन सांसदों को रख सकेगी, जो जरूरी नहीं है कि मुस्लिम ही हों। एक बड़ा बदलाव यह किया गया है कि नियंत्रक व महालेखापरीक्षक यानी सीएजी या सरकार की तरफ से नियुक्त ऑडिटर वक्फ की संपत्ति का ऑडिट करेंगे। राज्यों में भी सरकारें सर्वे कमिश्नर की जगह कलेक्टर को अधिकार देंगी और वक्फ बोर्ड को कलेक्टर कार्यालय में संपत्ति का पंजीयन कराना होगा। यह भी प्रावधान किया गया है कि जब तक कलेक्टर किसी विवाद में फैसला नहीं करेंगे तब तक उसे वक्फ की संपत्ति नहीं माना जाएगा। नए कानून के मुताबिक अब कोई भी संपत्ति बिना दस्तावेज के वक्फ की संपत्ति नहीं मानी जाएगी। सरकार ने किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करने वाली धारा 40 को समाप्त कर दिया है और यह कानून बनाया गया है कि वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकेगी। नए कानून में एक प्रावधान यह भी किया गया है कि कानून बनने से पहले या बाद में भी अगर किसी सरकारी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बताया गया है तो उसे नहीं माना जाएगा। यानी सरकारी संपत्ति पर वक्फ के सभी दावे खारिज कर दिए जाएंगे। यह ऐतिहासिक कानून है, जिससे अनेक विसंगतियां दूर होंगी। इसलिए खुले दिल से इसका स्वागत कीजिए। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)