यह फिल्म एक नहीं कई वार करने आई है। वह भी एक ऐसे समय में, जब हमें कश्मीर घाटी में एक हृदय विदारक घटना का सामना करना पड़ा है। ऐसे में ‘केसरी 2’ फिल्म का आना दर्शकों के दिलों को सीधे सीधे फिल्म से जोड़ने और उन्हें, उस समय के हत्याकांड की मार्मिकता को स्वाभाविक तौर से, आज में महसूस करवाने में पूरी तरह से सक्षम है।
सिने-सोहबत
किसी भी फ़िल्म के साथ एक ज़रूरी फैक्टर ये देखना भी होता है कि फ़िल्म की रिलीज़ के समय माहौल कैसा है! ख़ासकर जब फ़िल्म देशभक्ति की भावना से भरी हो तब तो इसकी प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। आज के सिने-सोहबत में हम विमर्श करेंगे हाल ही में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘केसरी चैप्टर 2’ पर।
इस महीने 18 अप्रैल को रिलीज़ हुई यह फिल्म जलियांवाला बाग हत्याकांड की 106वीं सालगिरह पर भारतीय सिनेमा द्वारा दी गई श्रद्धांजलि है। धर्मा प्रोडक्शन के बैनर तले बनी करण सिंह त्यागी द्वारा निर्देशित यह पहली फिल्म है और मुझे यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि अपनी पहली ही कोशिश में निर्देशक ने अपने कौशल का बेहतरीन नमूना पेश किया है।
‘केसरी चैप्टर 2’ एक बेहद ही दिलचस्प और दर्शकों की आत्मा पर चोट करती एक मार्मिक फिल्म है। निर्देशक करण सिंह त्यागी ने यह दिखा दिया है कि वह नए जरूर हैं लेकिन किसी भी दृष्टि से कमज़ोर या कम टैलेंटेड नहीं हैं।
दरअसल, यह फिल्म एक मशहूर किताब ‘द केस दैट शूट द एंपायर’ पर बनी है, जिसे लिखा है रघु पलट और पुष्पा पलट ने। सी शंकर नायर और 1919 जलियांवाला बाग नरसंहार को केंद्र में रख कर बनाई गई यह फिल्म अपने ठोस ऐतिहासिक होने को खुद ही निरस्त करती है और साफ़ शब्दों में कहती है कि यह इतिहास में झांकने की एक छोटी सी खिड़की भर है। फिर भी, जलियांवाला बाग हत्याकांड की मार्मिकता और श्री सी शंकर नायर के जुझारू, अडिग व निडर व्यक्तित्व का चित्रांकन करने में ‘केसरी 2’ पूरी तरह से सफल रही है।
समय समय पर हिंदी फिल्मों में कोर्ट रूम ड्रामा आते रहे हैं लेकिन इस फ़िल्म में अदालत में होने वाली जो दिलचस्प बहस है वो बहुत सालों के बाद देखने को मिली है।
फिल्म में उस कालखंड के भारत और लोगों के रहन-सहन के साथ-साथ पैट्रियोटिज्म की सशक्त भावना को भी बहुत ही मार्मिक व सार्थक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
फिल्म के कलाकारों की बात की जाए तो आर माधवन और अक्षय कुमार तो पहले से ही काफ़ी वरिष्ठ कलाकारों की श्रेणी में जाने माने जाते हैं। लेकिन अनन्या पांडे ने भी इस फिल्म में कमाल का काम किया है।
शाश्वत सचदेव, कविता सेठ और कनिष्क सेठ द्वारा तैयार किया गया संगीत भी बहुत ही बेहतरीन और फिल्म को आत्मा प्रदान करने वाला बन पड़ा है। केवल मसाबा गुप्ता पर फ़िल्माया गया गाना नहीं भी होता तो शायद दर्शक उसे मिस नहीं करते।
इस फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत ही कसी हुई है और इसके शानदार संवाद इस फिल्म को कहीं से भी बोझिल या उदासीन बनने नहीं देते। हालांकि ‘केसरी 2’ को ऐतिहासिक प्रमाण के नजरिए से देखा जाए तो कई जगह पर इसकी प्रमाणिकता पर दर्शकों के पॉइंट ऑफ़ व्यूज़ अलग अलग हो सकते हैं लेकिन इसे सिर्फ एक दिलचस्प फिल्म के तौर पर देखा जाए तो ‘केसरी 2′ देख कर मज़ा बहुत आएगा।
‘केसरी 2’ में दिखाया गया मामला, जलियांवाला बाग हत्याकांड के बहुत साल बाद लंदन में लड़ा गया। फिल्म की शुरुआत में जलियांवाला बाग की लोमहर्षक घटना दिखाने और शंकर नायर का हल्का सा परिचय देने के बाद फिल्म की कहानी अदालत में जा पहुंचती है और उसके बाद पूरी फिल्म में जो कोर्ट रूम ड्रामा परोसा गया उसे दर्शक दम साधे देखता रहता है। फिल्म के प्रभावी संवादों ने इसका असर और भी गहरा कर दिया है। निर्देशक करण सिंह त्यागी ने पूरी फिल्म पर अपनी पकड़ बनाए रखी है वह कहीं भी आत्ममुग्धता के चक्कर में फ़िल्म को बिगाड़ने से बचे और बस जरूरत भर कहते हुए फिल्म पर अपना असर छोड़ते चले गए हैं।
नरसंहार के दृश्य सरदार उधम सिंह सरीखे भले ही ना हों लेकिन दर्शकों की छाती पर बखूबी प्रहार करते हैं।
यह फिल्म एक नहीं कई वार करने आई है। वह भी एक ऐसे समय में, जब हमें कश्मीर घाटी में एक हृदय विदारक घटना का सामना करना पड़ा है। ऐसे में ‘केसरी 2’ फिल्म का आना दर्शकों के दिलों को सीधे सीधे फिल्म से जोड़ने और उन्हें, उस समय के हत्याकांड की मार्मिकता को स्वाभाविक तौर से, आज में महसूस करवाने में पूरी तरह से सक्षम है। देश में आज राष्ट्रवाद की भावना अपने चरम पर है। इसे महज़ इत्तेफाक ही कहेंगे राष्ट्रीयता की भावना से भरी ये फ़िल्म अभी सिनेमाघरों में है।
कसे हुए संपादन का भी फिल्म को भरपूर साथ मिला। पिछली वाली केसरी में “तेरी मिट्टी में मिल जवां…..” की गूंज है तो इस बार की ‘केसरी 2’ में “ओ शेरा…..” की दहाड़ है। कैमरा, लोकेशन, कॉस्ट्यूम और सेट्स आदि मिलकर एक सौ बरस पहले का माहौल जीवंत करते हैं।
फिल्म का क्लाइमेक्स देखकर तो लगता है कि यह दर्शकों की आत्मा को कचोटने ही आई है। अक्षय कुमार केरल वासी कम, पंजाबी ही ज़्यादा लगे हैं। हालांकि उन्होंने अपने काम में समर्पण और ईमानदारी दिखाई है। माधवन ने भी पूरी फिल्म में अंडरप्ले करते हुए अपने किरदार को असरदार बनाए रखा है। अनन्या पांडे, रेज़िना कैसेंड्रा और अमित स्याल ने भी बहुत प्रभावी अभिनय किया है। कृष राव, जसप्रीत सिंह समेत बाकी कलाकारों का काम भी अच्छा रहा।
फिल्म का नाम ‘केसरी 2’ से बेहतर हो सकता था। यह तो सीधे-सीधे ‘केसरी’ फिल्म की सफलता को भुनाने की कोशिश भर लगती है, जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। फिल्म खुद में ही बहुत मजबूत और दिलचस्प है। अगर फिल्म का जलियांवाला बाग नरसंहार से जुड़ा कोई नाम होता तो बेहतर होता।
जलियांवाला बाग में उस शाम जो हुआ वह हम हिंदुस्तानियों के सीने में एक ऐसी फांस की तरह अटका पड़ा है कि कल को अगर ब्रिटिश हुकूमत हमें आकर “सॉरी” भी बोल दे, तो भी हमारा जख्म भरेगा नहीं।
दरअसल, यह जख्म बने भी रहने चाहिए। ताकि हमारी आने वाली नस्ल इस सच से रूबरू हो सके कि आज़ादी के लिए हमारे पूर्वजों ने क्या क्या सहा था। यह फिल्म दरअसल उन जख्मों की रिमाइंडर है।
‘केसरी 2’ खत्म होती है तो पर्दे पर उन सैकड़ों शहीदों के नाम आने लगते हैं जो उस दिन वहां मारे गए थे। उस हृदय विदारक दृश्य को देखते हुए ऐसा लगता है जैसे आसुओं ने आंखों को ही अपना पालना बना लिया है। ‘केसरी 2’ एक खूबसूरत फिल्म, जो न सिर्फ अपने दर्शकों को बांध कर रखती है बल्कि द्रवित भी कर देती है। नज़दीकी सिनेमा हॉल में लगी है, देख लीजिएगा। (पंकज दुबे मशहूर बाइलिंग्वल उपन्यासकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो ‘स्मॉल टाउंस बिग स्टोरी’ के होस्ट हैं।)