विपक्ष के नकारात्मक रवैए पर विचार की शुरुआत वक्फ संशोधन बिल से करना इसलिए आवश्यक था क्योंकि इस मुद्दे पर विपक्ष ने ऐसा काम किया है, जिसका कोई और उदाहरण शायद ही मिले। वक्फ बोर्ड के कानून में संशोधन का विधेयक पेश होने के बाद विपक्ष के कहने पर उसे संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया और लंबे विचार विमर्श के बाद उसमें एक दर्जन से ज्यादा संशोधन किए गए और उसको तैयार किया गया। पर संसद में बिल पेश होने के से पहले ही विपक्षी पार्टियों ने इस विधेयक के खिलाफ जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया।
संसद का बजट सत्र समापन की ओर बढ़ रहा है। अगर सब कुछ निर्धारित कार्यक्रम के अनुरूप हुआ तो सरकार बजट सत्र के दूसरे चरण के आखिरी हफ्ते में वक्फ संशोधन बिल पेश करेगी। केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने तमाम अटकलों को विराम देते हुए स्पष्ट किया कि सरकार इस महत्वपूर्ण विधेयक को इसी सत्र में प्रस्तुत करेगी। ध्यान रहे इस विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति विचार कर चुकी है और उसमें एक दर्जन से ज्यादा संशोधन सुझाए गए थे।
उन संशोधनों को सम्मिलित करके विधेयक नए रूप में तैयार किया गया है। इसलिए विपक्ष का विरोध विशुद्ध राजनीतिक विरोध प्रतीत हो रहा है। जहां तक भाजपा की सहयोगी पार्टियों का प्रश्न है तो उनके सदस्य संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी में शामिल थे और उनकी ओर से जो भी सुझाव दिए गए उनको विधेयक में सम्मिलित किया गया है। इसलिए यह आशंका निर्मूल है कि सहयोगी पार्टियां इसका विरोध कर सकती हैं। सहयोगी पार्टियां पूरी तरह से सरकार के साथ हैं और सरकार की हर सार्थक व अच्छी पहल का समर्थन कर रही हैं।
संसद के बजट सत्र में विपक्ष के नकारात्मक रवैए पर विचार की शुरुआत वक्फ संशोधन बिल से करना इसलिए आवश्यक था क्योंकि इस मुद्दे पर विपक्ष ने ऐसा काम किया है, जिसका कोई और उदाहरण शायद ही मिले। वक्फ बोर्ड के कानून में संशोधन का विधेयक पेश होने के बाद विपक्ष के कहने पर उसे संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया और लंबे विचार विमर्श के बाद उसमें एक दर्जन से ज्यादा संशोधन किए गए और उसको तैयार किया गया। संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट को सहमति से संसद में स्वीकार कर लिया गया है।
दोनों सदनों में उसे अलग अलग प्रस्तुत किया गया और स्वीकार किया गया। जब विधेयक संसद में पेश होगा तब भी विपक्षी पार्टियों को उस पर अपनी राय रखने का पर्याप्त समय मिलेगा। परंतु विपक्षी पार्टियों ने उसकी प्रतीक्षा नहीं की। उन्होंने सत्र की अवधि में इस विधेयक के खिलाफ जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ साथ 17 मार्च को कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने प्रदर्शन किया। यह संसदीय परंपरा के अनुरूप आचरण नहीं है।
जेपीसी की अनुशंसाओं पर आधारित रिपोर्ट अब संसद की संपत्ति है और उस पर आधारित बिल पेश होना है। जेपीसी की रिपोर्ट का संसद से बाहर विरोध करके विपक्षी पार्टियां असंसदीय आचरण कर रही हैं और अपनी स्थिति हास्यास्पद बना रही हैं।
विपक्ष के नकारात्मक रवैए का यह सिर्फ एक उदाहरण है। ऐसे अनेक कार्य विपक्षी पार्टियों ने संसद के बजट सत्र में किए हैं, जिनसे यह जाहिर हुआ है कि उनके मन में संसदीय परंपराओं, नियमों आदि के प्रति कोई सम्मान का भाव है। स्थिति अब यहां तक पहुंच गई है कि सदन के अलावा स्पीकर या सभापति के कक्ष में भी विपक्षी सांसदों का आचरण आसन का या संसदीय मर्यादाओं को अपमान करने का होता है।
यही कारण रहा कि शुक्रवार, 28 मार्च को राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति की बैठक से सभापति श्री जगदीप धनखड़ उठ कर चले गए। कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में अगले सप्ताह के कामकाज को लेकर बैठक हो रही थी, जिसमें विपक्षी पार्टियां अपनी बात पर अड़ गईं। उनको डुप्लीकेट मतदाता पहचान पत्र के मुद्दे पर चर्चा करानी है और कुछ विधेयकों को जेपीसी या स्थायी समिति को भिजवाना है। विपक्ष के अड़ियल रवैए के कारण बैठक में अव्यवस्था हो गई और सभापति उठ कर चले गए।
इससे पहले शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में भी विपक्ष मर्यादा का पालन नहीं करे। ऐसे ही एक आधारहीन बहस वीर राणा सांगा पर विपक्षी सांसदों ने छेड़ी है। हालांकि सभापति श्री जगदीप धनखड़ ने राणा सांगा को नायक बताया है और कहा है कि सदन में कुछ भी बोलते समय जन भावनाओं का सम्मान और ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने समाजवादी पार्टी के सांसद के वक्तव्य को सदन की कार्यवाही से निकाल दिया है।
सभापति ने कहा, ‘हर परिस्थिति में हमारा आचरण मर्यादित होना चाहिए, संजीदगी का होना चाहिए। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि लोगों की संवेदनाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं। मैं चाहता हूं कि सदन में हम सभी एकजुट होकर यह संकल्प लें कि सदन के सदस्य के रूप में हम संवेदनशील मुद्दों पर मर्यादा बनाए रखेंगे’। परंतु विपक्षी पार्टियों को ऐसी समझदारी की बातों से ज्यादा सरोकार प्रतीत नहीं होता है।
विपक्षी पार्टियों का आचरण संसद के दोनों सदनों में एक जैसा है। लोकसभा में विपक्ष ने अध्यक्ष श्री ओम बिरला पर सवाल उठाया है। विपक्षी सांसदों ने स्पीकर को चिट्ठी लिखी है और आरोप लगाया है कि नेता प्रतिपक्ष श्री राहुल गांधी को नहीं बोलने दिया जाता है। विपक्ष ने अपनी चिट्ठी में और भी कई आधारहीन मुद्दे उठाए हैं, जिनमें श्री राहुल गांधी का माइक बंद करने का मुद्दा भी शामिल है।
वास्तव में विपक्ष के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं है तो वह आधारहीन मुद्दे उठा कर अन्यथा दबाव बनाने की राजनीति कर रहा है। राहुल गांधी को लोकसभा में नहीं बोलने का प्रश्न एक कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह से पूछा गया तो उन्होंने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि हर चर्चा के लिए विपक्ष को समय आवंटित किया जाता है।
कुल समय का 42 फीसदी हिस्सा विपक्ष के लिए आवंटित किया गया लेकिन विपक्ष के नेता सदन में उपस्थित ही नहीं थे तो कोई क्या कर सकता है। इससे नेता प्रतिपक्ष श्री राहुल गांधी की अगंभीरता का अंदाजा होता है। बजट जैसे महत्वपूर्ण सत्र के दौरान भी वे विदेश छुट्टी मनाने चले जाते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री ने उनका नाम नहीं लिया या यह नहीं कहा कि वे कहां छुट्टी मनाने गए थे लेकिन सबको पता है कि वे सदन के बीच वियतनाम चले गए थे। ऐसा लग रहा है कि श्री राहुल गांधी की अपने को विशिष्ठ समझने की सोच अभी खत्म नहीं हुई है।
वे चाहते हैं कि वे जब सदन में आएं और जब बोलना चाहें तो उनको बोलने दिया जाए। ऐसा नहीं होता है। सदन नियमों से संचालित होता है। जब आप विपक्ष के लिए आवंटित समय में उपस्थित नहीं हैं और दूसरे लोग बोल चुके हैं तो सिर्फ इसलिए आपको अतिरिक्त समय नहीं दिया जाएगा कि आप किसी पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे या पोते या परनाती हैं या राजनीतिक दल के नाम पर चल रहे परिवारवादी संगठन के मुखिया हैं।
ऐसा अक्सर देखने को मिलता है कि श्री राहुल गांधी संसद सत्र के दौरान विदेश चले जाते हैं। जिस समय उनकी पार्टी और देश पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह के निधन का शोक मना रहा था उस समय भी वे विदेश में छुट्टी मनाने चले गए थे।
असल में उनको और उनकी पार्टी को और कांग्रेस की पिछलग्गू दूसरी कई विपक्षी पार्टियों को इस बात से नाराजगी हो गई है कि स्पीकर श्री ओम बिरला ने उनको क्यों टोका और संसद की महान परंपरा के अनुरूप काम करने को क्यों कहा? सवाल पूछा जाना या नसीहत दिया जाना उनको पसंद नहीं है। परंतु क्या स्पीकर ने जो सवाल उठाए वो सवाल उठाए जाने योग्य नहीं हैं? स्पीकर महोदय ने क्या गलत कहा कि इस सदन में पहले भी मां-बेटे, माता-पिता, भाई-बहन सांसद रहे हैं और सबने संसदीय परंपरा का पालन किया है।
संसद की मर्यादा और नेता प्रतिपक्ष की भूमिका पर सवाल
स्पीकर महोदय ने मर्यादा का ध्यान रखते हुए किसी विशेष घटना का उल्लेख नहीं किया लेकिन सब लोगों ने देखा है कि श्री राहुल गांधी का सदन में या संसद परिसर में कैसा आचरण होता है। वे अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ सदन में ही भाई-बहन के प्यार का प्रदर्शन करने लगते हैं। पब्लिक डिस्प्ले ऑफ अफेक्शन, पीडीए यानी सार्वजनिक जगहों पर अपने प्यार या लगाव का प्रदर्शन राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा अपेक्षित नहीं होती है।
इस मामले की वास्तविकता यह भी है कि श्री राहुल गांधी अपनी राजनीति के तहत अपनी बहन का कद कम करने के लिए उनको पैट्रोनाइज करते हैं। परंतु ऐसा करना संसद की परंपरा के अनुरूप नहीं है। स्पीकर महोदय ने जब उनको संसद की महान परंपराओं के अनुरूप आचरण की सलाह दी तो पूरी कांग्रेस पार्टी आंदोलित हो गई है।
वास्तविकता यह है कि श्री राहुल गांधी अपने आचरण से निरंतर संसद की मर्यादा कम करते हैं। जब तक वे सिर्फ सांसद थे तब तक फिर भी गनीमत थी लेकिन अब वे नेता प्रतिपक्ष हैं। भारत ने संसदीय प्रणाली के ब्रिटेन के जिस वेस्टमिनिस्टर मॉडल को अपनाया है उसमें नेता प्रतिपक्ष छाया प्रधानमंत्री होता है। उसका आचरण सर्वोच्च परंपराओं के अनुकूल होना चाहिए।
लेकिन राहुल गांधी टीशर्ट पहन कर सदन में आएंगे, जेब में हाथ डाल कर घूमते रहेंगे, सदन में बैठते समय अपनी सीट के पीछे हाथ ऐसे फेंक कर बैठेंगे, जैसे अपने दोस्तों के साथ घर में सोफे पर बैठे हैं, महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा सुनने की बजाय या तो अनुपस्थित रहेंगे या सदन में बैठ कर अपने दो चार साथियों के साथ गपशप करते रहेंगे। ऐसा लगता है जैसे लोकसभा उनके तफरीह की जगह हो। गंभीर विषयों पर चर्चा में हिस्सा लेने और रचनात्मक भूमिका निभाने की बजाय विपक्ष के नेता आसन से लेकर संसद की परंपराओं तक का अपमान करने में लगे रहते हैं।
उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि देश की जनता बहुत बारीकी से इन चीजों को देखती है और इनका ध्यान रखती है। अगर उन्होंने अपने को नहीं बदला तो अगंभीर राजनेता की उनकी छवि स्थायी तौर पर स्थापित होगी। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)
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