कांग्रेस की यह बहुत बड़ी सच्चाई है कि इसके नेता किसी के सगे नहीं होते हैं। इन्हें सिर्फ सत्ता दिखती है। निजी लाभ। इसके लिए वे किसी से भी धोखा कर सकते हैं। यह राजा रजवाड़ों वाला खेल है कि कमजोर हुए कि दरबारियों ने की बगावत। 11 साल हो गए सत्ता से बाहर हुए, कांग्रेसियों में बहुत बैचेनी है।… राहुल में बहुत मानवीय गुण हैं। मगर यहां मुकाबला मजबूती का है। मजबूत नेतृत्व दिखाने का।
मनीष तिवारी सफाइयां दे रहे हैं। क्यों? क्योंकि पंजाब जहां वे राजनीति करते हैं वहां भाजपा की कोई जमीन नहीं है। पंजाब में अगर राजनीति करना है तो सम्मान के साथ रहने की एक ही जगह है और वह है कांग्रेस। मुख्यमंत्री रहे दो बार कैप्टन अमरिन्दर सिंह भाजपा में जाकर खत्म हो गए। बलराम जाखड़ के लड़के सुनील जाखड़ जो पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे भाजपा में जाकर शून्य हो गए। इसलिए मनीष तिवारी को बिना कांग्रेस से पूछे उन लोगों के साथ विदेश जाने, जो वहां से रोज कांग्रेस को गालियां देते थे निशिकांत दुबे अब अपने जाने को जस्टिफाई करना (उचित ठहराना) पड़ रहा है।
मंगलवार की शाम प्रधानमंत्री मोदी ने डिनर में कांग्रेस के नेताओं के साथ कैमरे के सामने सबसे ज्यादा समय बिताया। जो फोटो वीडियो वहां से आए उनमें खुद बीजेपी के नेता और उसके सहयोगी दलों के नेता नहीं दिख रहे हैं। बल्कि शशि थरूर, सलमान खुर्शीद, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी और मोदी द्वारा काफी समय से भुलाए रखने के बाद अभी विदेश जाने के लिए मुस्लिम नेता की जरूरत पड़ने से याद किए गए गुलामनबी आजाद ही हाईलाइट किए जा रहे हैं।
ये सब वे नेता हैं जिन्हें कांग्रेस ने सब कुछ दिया। लेकिन इनकी तृष्णा खतम नहीं हुई। सब अनुभवी नेता हैं तो जानते हैं कि वहां मोदी जी देंगे कुछ नहीं और अपमान ज्यादा होगा। इसलिए कांग्रेस में रहकर मोदी जी का काम करना ज्यादा बेहतर है। कांग्रेस के बारे में इन्हें पता है कि बहुत ढीला ढाला संगठन है इनके खिलाफ कुछ नहीं करेगा।
बिल्कुल सही समझते हैं। अभी जब हम यह लिख रहे हैं कांग्रेस ने लक्ष्मण सिंह को पार्टी से 6 साल के निकाल दिया। दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह पूर्व सांसद रहे हैं। भाजपा में जा चुके हैं। उनकी कोई अपनी पहचान नहीं है। न राजनीति में कोई महत्व। वही दिखाने के लिए उन्होंने पहलगाम हमले के बाद उमर अब्दुल्ला और राहुल गांधी के खिलाफ बयान दिया था। ऐसे बयान की कांग्रेस में अनदेखी होती रही हैं। नहीं तो
इससे कई गुना भयानक बयान सलमान खुर्शीद दे चुके हैं कि बटला हाउस एनकाउन्टर के बाद सोनिया गांधी रो रही थीं। और भी तमाम बिना सिर पैर की बातें जैसे फिर राहुल को खुश करने के लिए कहा कि मुझे उनमें राम दिखाई देते हैं। और फिर उनके मित्र आचार्य प्रमोद ने कहा कि उन्हें सलमान खुर्शीद के दिल में राम दिखाई देते हैं।
जाने क्या क्या? खाली इन कांग्रेस के चार पांच चेहरों पर ही लिख दें तो पूरी किताब हो जाएगी। सलमान का उदाहरण दे रहे थे तो यह भी बता दें कि मौखिक बयान अपनी जगह हैं लेकिन किताब में लिखना बड़ी बात है। सलमान ने अपनी किताब ‘सनराइज ओवर अयोध्या’ में हिन्दुत्व की तुलना आतंकवादी संगठनों से की थी। यह भी कह चुके हैं कि मुसलमानों के खून से कांग्रेस के भी हाथ रंगे हुए हैं। और अभी विदेशी दौरे पर इंडोनेशिया में यह कहा कि 370 हटने के बाद कश्मीर में खुशहाली आई है जो कुछ लोगों को अच्छी नहीं लग रही।
पहलगाम हमले के बाद खुशहाली की बात करना! और चलो आपके हिसाब से है भी तो कटाक्ष किस पर? कांग्रेस पर! मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर! तो कह यह रहे थे कि कांग्रेस इन लोगों को नहीं निकालती। लक्ष्मण सिंह को निकालती है। जिनका कोई वजूद नहीं है। एक मात्र पहचान दिग्वजय सिंह के छोटे भाई की है। इन पर कार्रवाई करने से क्या होगा?
अगर करना है तो शशि थरूर और मनीष को तो अभी लोकसभा में जिताया उन्हें छोड़ दीजिए नहीं तो दल बदल कानून के तहत वे पार्टी से निकल कर भी अपनी लोकसभा सीट बचा लेंगे। लेकिन सलमान खुर्शीद और आनंद शर्मा को तो तुरंत पार्टी से निकाल देना चाहिए। देखें भाजपा क्या देती है। पद ओहदा छोड़
दीजिए। सम्मान देखिए कितना मिलता है ? अभी कांग्रेस में हैं तो मोदी जी डिनर में खिलखिलाते हुए कर मिल रहे थे हाथ मिला रहे थे नहीं तो शिवराज सिंह चौहान को देख लीजिए करीब बीस साल मुख्यमंत्री रहे अभी केन्द्रीय मंत्री हैं। मगर हाथ मिलाना तो दूर मोदी जी कभी खिलखिलाते कर भी नहीं मिलते। दूसरे केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जो जब कांग्रेस में थे तो राहुल की प्लेट से उठाकर खाते थे। सोनिया गांधी और प्रियंका के साथ परिवार की तरह अधिकार से बैठते थे। आज मोदी जी छोड़िए अमित शाह के सामने भी सिर उठाकर खड़े नहीं हो पाते।
कांग्रेस में बहुत खराबियां होंगी मगर उसका नेतृत्व सबको समान सम्मान देता है। अभी मनीष का जिक्र कर रहे थे। मनीष के पिताजी को इन्दिरा गांधी ने राज्यसभा दी थी। राजनीति में नहीं थे शिक्षा के क्षेत्र में थे। और राजीव गांधी ने 1989 के लोकसभा चुनाव में युवा मनीष को दूसरे राज्य उत्तरप्रदेश से टिकट दे दी थी। कानपुर देहात से। गुलाम नबी आजाद का तो शायद पहले भी बताया है इन्दिरा गांधी ने 1980 में उन्हें सीधे महाराष्ट्र से लड़वाकर जीता दिया था। 1989 में राजीव गांधी कमजोर हो गए थे तो स्थानीय कांग्रेसियों ने कानपुर देहात से बाहरी उम्मीदवार कहकर मनीष को फार्म ही नहीं भरने दिया गया था।
राहुल गांधी को यह बात भी समझना चाहिए ये कांग्रेसी अगर परिवार भी कमजोर हो जाता है तो उसे भी नहीं बख्शता! खुद को मजबूत रखना और दिखाना बहुत जरूरी है। इन्दिरा जी भी जब 1977 का चुनाव हार गई थीं तो जगजीवन राम, हेमवतीनंदन बहुगुणा जैसे नेता उनका साथ छोड़ गए थे। सोनिया गांधी के खिलाफ राजीव के खास रहे जीतेन्द्र प्रसाद कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ गए थे।
कांग्रेस की यह बहुत बड़ी सच्चाई है कि इसके नेता किसी के सगे नहीं होते हैं। इन्हें सिर्फ सत्ता दिखती है। निजी लाभ। इसके लिए वे किसी से भी धोखा कर सकते हैं। यह राजा रजवाड़ों वाला खेल है कि कमजोर हुए कि दरबारियों ने की बगावत। 11 साल हो गए सत्ता से बाहर हुए, बहुत बैचेनी है। हालांकि यह समय मोदी के लिए अनुकूल नहीं चल रहा है। लेकिन वे लगातार कोशिशें कर रहे हैं। 2011 के बाद जिस तरह कांग्रेस ने हाथ पांव डाल दिए थे वैसे मोदी ने नहीं डाले। मंगलवार की शाम का डिनर इसीलिए था। मोदी जी की छवि चमकाने के लिए। कांग्रेस के नेता भी कैसे उनके सामने नतमस्तक हैं यह बताने के लिए।
पहलगाम के आतंकवादी हमले के बाद मोदी जी के लिए लगातार मुसीबतें बढ़ती चली गईं। उनका सबसे बड़ा दावा मैं बहुत मजबूत हूं, और 56 इंच की छाती, लाल आंखे अब मजाक का विषय बन गईं है। उसके बाद पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों पर सेना का हमला जब उन्हें वापस दिलासा देने जा रहा था तो अचानक एक उनके प्रिय मीडिया के झूठ दावों ने और फिर उनके माई डियर फ्रेंड ट्रंप के सीजफायर के श्रेय लेने के बयानों से वापस उनका ग्राफ गिरना शुरू हो गया।
अभी भी स्थिति यही है। बस फर्क यह है कि मोदी की कोशिशों में कमी नहीं है। वे लगातार अपना पुराना समर्थन पाने के लिए प्रयासरत हैं। अब यह कांग्रेस को सोचना है। राहुल गांधी को और उनकी टीम को कि ऐसे में वे अपनी मजबूत छवि कैसे स्थापित कर सकते हैं। हर समय काल का एक केन्द्रीय मूल्य ( पैमाना) होता है। इस समय है मजबूत नेता।
मोदी की सारी पहचान ही यही है। इसी में डेन्ट लगा है। राहुल में बहुत मानवीय गुण हैं। मगर यहां मुकाबला मजबूती का है। मजबूत नेतृत्व दिखाने का। इन्दिरा गांधी की याद लोगों को क्यों आई? इसीलिए। 1971 के युद्ध के मजबूत नेतृत्व की वजह से। देश के लोगों का सिर ऊंचा हुआ था। राहुल को पार्टी के अंदर यह मजबूत नेतृत्व दिखाना होगा। वही संदेश जाएगा।